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ह्यूमन प्रोजेक्ट में हजारों करेंगे डाटा शेयर

२० जून २०१७

इन निजी जानकारियों को अलग-अलग तरह के शोध में इस्तेमाल किया जायेगा. इनमें सेलफोन की लोकेशन, क्रेडिट कार्ड की डीटेल और ब्लड सैंपल जैसी व्यक्तिगत जानकारियां भी शामिल होंगी.

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Symbolbild: Junger Mann bei Psychiaterin
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Brichta

इस पूरी रिसर्च को ‘द ह्यूमन प्रोजेक्ट' नाम दिया गया है और इसके लिए शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों को अगले साल न्यूयॉर्क से इकट्ठा करने की तैयारी शुरू भी कर दी है. हर साल डेढ़ करोड़ डॉलर के बजट वाले इस शोध का लक्ष्य सारी जानकारियों को साथ लाकर इंसान के स्वास्थ्य, उम्र, शिक्षा और जीवन के दूसरे पहलुओं को बेहतर ढंग से जानना है. 

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और प्रोजेक्ट के निदेशक पॉल ग्लिमकर कहते हैं कि परियोजना की व्यापक जानकारी देते हुए कहते हैं, "ये हमारा ढांचा है, समग्र तस्वीर को एक साथ लाना." बिग डाटा हेल्थ पर पहले भी स्टडी हुई है और नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हेल्थ इस साल दस लाख लोगों की एक परियोजना शुरू कर रहा है, लेकिन बिग डाटा पत्रिका के मुख्य संपादक डॉ. वसंत धर ह्यूमन प्रोजेक्ट के बारे में कहते हैं, "यह बहुत ही महात्वाकांक्षी है."

इस रिसर्च में हिस्सा लेने के लिए लोगों को आमंत्रित किया जायेगा. शोधकर्ता लोगों का ऐसा समूह तैयार कर रहे हैं, जो जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता हो. रिसर्च में भाग लेने वाले लोगों की सभी तरह की जांच की जाएगी, जिसमें खून, आईक्यू और आनुवंशकीय जांच शामिल होगी. शोधकर्ता लोगों से चिकित्सा, वित्त और शिक्षा से संबंधी सभी रिकॉर्ड्स भी मांगेंगे. इसके अलावा शोध में शामिल लोग अपने सेलफोन से जुड़े लोकेशन, मैसेज और नंबर जैसे आंकड़े भी देंगे. 

20 साल तक चलने वाली इस परियोजना में अन्य जानकारियों पाने के लिए प्रतिभागियों को पहना जा सकने वाला एक्टिविटी ट्रैकर दिया जाएगा, वजन नापने की खास मशीनें दी जायेंगी. इसके अलावा हर तीन साल पर उनके ब्लड और यूरीन सैंपल लिये जाएंगे. इस शोध के लिए प्रतिभागियों को नामांकन के लिए प्रति परिवार 500 डॉलर भी दिये जाएंगे. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि नतीजे स्वास्थ्य, व्यवहार और परिस्थियों के तालमेल को समझने में मदद करेंगे, जिससे अस्थमा और अल्जाईमर जैसी बीमारियों के बारे में शोध करने में मदद मिलेगी.

जब इतना सारा डाटा इकट्ठा किया जाएगा तो डाटा सुरक्षा का मामला मामूली महत्व का नहीं है. पॉल ग्लिमकर का कहना है कि इस रिसर्च में सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं. शोधकर्ता रिसर्च करने की जगह के अलावा इन जानकारियों को कहीं भी नहीं देख पाएंगे. काम करने की जगह पर कम्प्यूटर इंटरनेट से भी नहीं जुड़े होंगे. इस शोध में बहुत सी व्यक्तिगत जानकारियां शामिल होने की वजह से यहां सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये जा रहे हैं.

पॉल ग्लिमकर अपनी परियोजना की तुलना हृदय रोग संबंधी महत्वपूर्ण अध्ययन 'फ्रैमिंघम हार्ट स्टडी' से करते हैं. यह शोध 1948 में किया गया था जिसमें 15000 लोग शामिल थे. उनकी वर्षों तक निगरानी की गयी थी और नतीजों में यह बात सामने आयी थी कि ब्लड प्रेशर, कोलेस्टरॉल और स्मोकिंग दिल की बीमारियों की वजह बनते हैं. प्रो. ग्लिमकर कहते हैं, "यदि हमारे काम को भी 'फ्रैमिंघम हार्ट स्टडी' की तरह देखा जाए तो यह अपने आप में कितनी बड़ी उपलब्धि होगी."

एसएस/एमजे (एपी)