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गर्मी से जूझते तिब्बती ग्लेशियर

१५ अगस्त २०१४

पूरी पृथ्वी पर तिब्बत ही ऐसा इलाका है जहां दुनिया के सबसे ज्यादा ग्लेशियर हैं और जहां से ब्रह्मपुत्र और कई और नदियां निकलती हैं जो करोड़ों एशियाई लोगों के जीवन की रीढ़ हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/Rolf Wilms

चीन के एक अखबार के मुताबिक पिछले 50 सालों से ये ग्लेशियर पिछले दो हजार सालों के किसी भी स्तर से ज्यादा गर्म रहे.

चीन की विज्ञान अकादमी के तिब्बती पठार अनुसंधान संस्थान के शोध के मुताबिक इस सदी में भी तापमान और उमस में वृद्धि होने की संभावना है, जिस कारण ग्लेशियर कम हो जाएंगे और मरुस्थलीकरण बढ़ेगा. विज्ञान और तकनीक समाचार पत्र की वेबसाइट ने रिपोर्ट के हवाले से लिखा, "पिछले 50 वर्षों में औसत वैश्विक स्तर से तापमान में वृद्धि की दर दो गुना है."

ग्लेशियर के कम होने से एशिया की कई मुख्य नदियों में पानी की सप्लाई बाधित हो सकती है. एशिया की कई नदियां इसी पठार से निकलती हैं. जिनमें चीन की पीली और यांग्तजी नदी शामिल हैं, भारत की ब्रह्मपुत्र और दक्षिण पूर्व एशिया में मेकांग और साल्वीन नदियां शामिल हैं.

मई में चीनी वैज्ञानिकों ने कहा था कि तिब्बती ग्लेशियर 15 फीसदी सिकुड़ गए हैं जो कि पिछले 30 सालों में करीब आठ हजार वर्ग किलोमीटर है. नई रिपोर्ट के मुताबिक तिब्बती पठार पर जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधि के संयोजन के कारण ऐसी आशंका है कि बाढ़ और भूस्खलन के मामले बढ़ जाएंगे. हालांकि रिपोर्ट कहती है कि बढ़ते तापमान ने स्थानीय पारिस्थितिकी को बेहतर बनाया है.

वैज्ञानिकों ने सरकार से आग्रह किया है क्षेत्र के नाजुक वातावरण पर इंसानी प्रभाव को कम करने की दिशा में कदम उठाए. लेकिन बीजिंग वहां बड़े बड़े हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्टस बना रहा है, 2020 तक कई बड़े मेगा डैम के निर्माण की योजना है. भारत भी अपनी बिजली की मांग को देखते हुए ब्रह्मपुत्र नदी पर कई हाइड्रो प्लांट्स बना रहा है. भारत सरकार के पास 100 से अधिक प्रस्ताव विचाराधीन हैं.

रिपोर्ट: आमिर अंसारी (रॉयटर्स)

संपादन: आभा मोंढे