1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

इन पांच कानूनों में बदलाव की जरूरत

१६ जनवरी २०१८

तीन तलाक विधेयक पर खूब चर्चा हो रही है लेकिन ऐसे और भी कई कानून हैं, जिन्हें बदलने की सख्त जरूरत है. कुछ साल पहले सरकार की एक समिति की ओर से इन्हें चिन्हित किया गया था. लेकिन अब तक इन पर कोई बहस शुरू नहीं हुई है.

https://p.dw.com/p/2qtmg
Indien Pakistan Symbolbild Vergewaltigung
तस्वीर: Getty Images

ये पांच कानून हैं: वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाना, पति व उनके रिश्तेदारों की ओर से की गई क्रूरता की परिभाषा स्पष्ट करना, दहेज विरोधी कानून में त्रुटियों को दूर करना, शादी के लिए महिला और पुरुष की एक समान उम्र तय करना और शादी के मामले में दखल देने वाली खाप पंचायतों को गैरकानूनी करार देना.

2013 में गठित एक समिति ने महिलाओं और आपराधिक कानून के संबंध में अपनी समीक्षा में कई सिफारिशें कीं. ये सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सभी महिलाओं को कानून और न्याय प्रणाली के माध्यम से मदद करने को लेकर की गई हैं. इनमें कुछ ही सिफारिशों को अब तक अमल में लाया गया है.

वैवाहिक दुष्कर्म का मुद्दा

मौजूदा कानून में वैवाहिक दुष्कर्म के शिकार के लिए कोई प्रावधान नहीं है. भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 375 के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद में रखा गया है. सीमित की रिपोर्ट के मुताबिक, वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद मानना विवाह की पुरानी धारणा को दिखाता है, जिसके तहत पत्नियों को उनके पतियों की जायदाद समझा जाता था. इसलिए सहमति का मूल्यांकन करते समय अपराधी और पीड़ित के बीच संबंध अप्रासंगिक होना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट करुणा नंदी ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाने की वकालत की है. उनका कहना है कि वैवाहिक दुष्कर्म के मामले को पति और उनके रिश्तेदारों की क्रूरता से संबंधित आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दायर किया जाना चाहिए. नंदी ने बताया, "वैवाहिक दुष्कर्म की पीड़िताओं को इन कानूनों के तहत अन्य पीड़ितों से अलग बताया गया है और इनके लिए अनिवार्य मुफ्त स्वास्थ्य सेवा और कानूनी सहायता का प्रावधान भी मौजूद है. लेकिन इन मामलों में न्याय का दायरा सीमित है."

क्रूरता की परिभाषा

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरपी) के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016 में महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराधों के कुल 32,25,652 मामलों में से 1,10,378 मामले आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दर्ज किए गए थे, जो कुल मामलों का लगभग 34 फीसदी है. महिला आयोग की वकील फ्लेविया एग्नेस ने कहा, "अपराध के मामलों की यह संख्या उन मामलों की अपेक्षा कम है जो कि दर्ज ही नहीं हुए, क्योंकि अधिकतर शोषित महिलाओं को वापस भेज दिया जाता है, बशर्ते उनको शारीरिक चोट नहीं पहुंची हो."

समिति की ओर से क्रूरता की परिभाषा की समीक्षा कर उसमें महिलाओं के खिलाफ घरों में होने वाली हिंसा के विविध रूपों को शामिल करने की सिफारिश भी की गई है. समिति ने यह भी कहा कि इसका प्रावधान घरेलू हिंसा से महिला का बचाव कानून (पीडब्ल्यूडीएवी) 2005 के तहत घरेलू हिंसा की परिभाषा के समान होना चाहिए. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सव्रेक्षण 2015-16 के आंकड़ों में 31 फीसदी विवाहित महिलाओं को शारीरिक यौन या मानसिक रूप से पति की प्रताड़ना का शिकार बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार 27 फीसदी महिलाएं शारीरिक हिंसा का शिकार हैं.

स्त्रीधन और दहेज में फर्क

दहेज निरोधक कानून 1961 के तहत दहेत देने या लेने पर रोक है. इस कानून को तोड़ने वालों के लिए पांच साल की सजा का प्रावधान है. समिति ने एनसीडब्ल्यू की ओर से दहेज रोधी कानून में संशोधन के प्रस्ताव को दोहराया, जिसमें इसकी परिभाषा को व्यापक बनाने की बात कही गई है. समिति ने स्त्रीधन को दहेज की परिभाषा में शामिल करने की सिफारिश भी की है. साथ ही स्त्रीधन का वारिस पति को बनाए जाने वाले प्रावधान को हटाने को कहा है.

जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 498-ए के तहत दहेज के मामले में पति और उसके परविार को तत्काल गिरफ्तार करने के प्रावधान को हटा दिया था. अदालत ने यह फैसला दहेज के ज्यादातर मामलों में आरोपी के बरी करार दिए जाने की रिपोर्ट के मद्देनजर लिया. हालांकि एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2005 से 2015 के दौरान 88,467 महिलाओं की मौत दहेज से संबंधित मामलों में हुई, यानि रोजाना 22 मौतें.

शादी की समान न्यूनतम उम्र

बाल विवाह निषेध कानून 2006 के तहत बाल विवाह को गैरकानूनी करार दिया गया है. लड़के के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की के लिए 18 साल रखी गई है. समिति ने दोनों की शादी के लिए न्यूनतम उम्र एक समान रखने की सिफारिश की है. शहरी इलाकों में लड़कियों की कम उम्र में शादी की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसके उलट ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शादी अब ज्यादा उम्र में होने लगी है.

वहीं ऑनर किलिंग के फतवे जारी करने वाले खाप को भी अपराध की श्रेणी में लाने की बात की गई है. महिलाओं की असमान आर्थिक, सामाजिक और राजनीति स्थिति का कारण है पितृसत्तात्मक समाज, जहां महिलाओं के बारे में रूढ़िवादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है. समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, "ऑनर किलिंग महज सजा नहीं है, बल्कि निर्मम हत्या है. अक्सर लड़कियों की हत्या की जाती है." एनसीआरबी के आंकड़ों बताते हैं कि 2014 से 2016 के बीच ऑनर किलिंग के मामलों में दोगुना इजाफा हुआ. साल 2015 में ऑनर किलिंग के 192 मामले दर्ज किए गए.  समिति ने रिपोर्ट में कहा, "महिलाओं के प्रति हिंसा को कठिन सामाजिक व्यवस्था के रूप में स्वीकार किया गया है जिसके जरिये महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम महत्व दिया जाता है. इस प्रकार महिलाओं के गुणात्मक अधिकार का उल्लंघन होता है."

अलिसन सल्दाना (आईएएनएस)