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68 साल में 68 फीसदी आरक्षण

ओंकार सिंह जनौटी२६ सितम्बर २०१५

भारत में आरक्षण, पिछड़ों को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाने के लिए आया. विचार था कि धीरे धीरे सर्वहारा वर्ग के हालात बेहतर होंगे और आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा, लेकिन आज स्थिति बिल्कुल उलट है.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल में बड़ा फैसला करते हुए कहा कि सरकारी काडर के सिर्फ एक पद के लिए नियुक्ति में आरक्षण आधार नहीं हो सकता है. जस्टिस दीपक मिश्रा और पीसी पंत की बेंच ने कहा, "यह बहुत स्पष्ट है कि काडर की सिंगल पोस्ट के लिए आरक्षण देने से जनता का सामान्य वर्ग पूरी तरह वंचित हो जाएगा." हालांकि सर्वोच्च अदालत ने यह भी साफ किया कि, काडर की अकेली पोस्ट, रिजर्व श्रेणी के योग्य सरकारी कर्मचारी को विभागीय पदोन्नति देकर भरी जा सकती है.

राजस्थान की बीजेपी सरकार ने 22 सितंबर 2015 को विधान सभा में गुर्जर और अन्य समुदायों को पांच फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पास किया. इन्हें विशेष पिछड़ा वर्ग में रखा गया है. सवर्णों को खुश रखने के लिए राज्य सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग को भी 14 फीसदी आरक्षण देना तय किया है. 49 फीसदी आरक्षण पहले से था, 19 प्रतिशत नया आरक्षण आया है, यानि कुल मिलाकर राजस्थान में रिजर्वेशन 68 फीसदी होने जा रहा है.

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तस्वीर: DW/J. Singh

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की सरकार 2008 में भी बिल्कुल ऐसा ही बिल पास कर चुकी थी. उस बिल में गुर्जरों और सामान्य पिछड़ा वर्ग को 5 व 14 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव था. लेकिन तब हाई कोर्ट ने उस विधेयक पर रोक लगा दी. इस बार सरकार ने फिर कानूनी शब्दों को बदलते हुए दो अलग अलग बिल पेश किए हैं. सु्प्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता.

राजस्थान से पहले तमिलनाडु भी ऐसा करने की कोशिश कर चुका है. यह आरक्षण की राजनीति की ही देन है कि 1947 में आजाद हुए देश में 68 साल बाद खुद को पिछड़ा साबित करने की होड़ छिड़ी है.

2011 में केंद्र सरकार ने भी अन्य पिछड़े वर्ग को दिये जाने वाले 27 फीसदी आरक्षण में से 4.5 फीसदी आरक्षण अल्पसंख्यक पिछड़ा वर्ग को देने की तैयारी की थी. सरकार का तर्क था कि मुस्लिम समुदाय का पिछड़ा वर्ग, हिन्दू समुदाय के पिछड़े वर्ग से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा है, इसीलिए उसे अतिरिक्त आरक्षण देना चाहिए. चुनाव आयोग ने इस पर रोक लगा दी. बाद में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने भी इस सब कोटे को खारिज कर दिया, अदालत ने कहा कि इसका आधार समझ से परे है और यह सिर्फ धार्मिक आधार पर लिया गया है.