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समाज

बॉन जलवायु सम्मेलन की एबीसी

६ नवम्बर २०१७

जर्मनी के बॉन में हो रहे जलवायु सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं. इस सम्मेलन में कौन कौन हिस्सा ले रहा है, इसके क्या मायने हैं और इससे क्या क्या उम्मीदें लगाई जा रही हैं, जानिए यहां..

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UN-Klimakonferenz 2017 in Bonn | DW Welcome COP23
तस्वीर: DW/J. Löbner

पेरिस समझौते के दो साल बाद अब सबकी निगाहें जर्मनी के बॉन पर टिकी हैं. दुनिया भर से लोग आ रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के बड़े बड़े मुद्दों पर चर्चा हो रही है. यह जर्मनी में होने वाला अब तक का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है. इस सम्मेलन से जुड़े पांच सीधे सवाल सवाल और उनके जवाब..

सम्मेलन में कौन कौन मौजूद होगा?

यह सम्मेलन 6 से 17 नवंबर तक चलेगा. इस दौरान 197 देशों से करीब 25,000 लोग बॉन में मौजूद होंगे. इनमें मंत्री, पर्यावरण विशेषज्ञ, कार्यकर्ता और कई सिलेब्रिटी भी शामिल हैं. जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों यहां मौजूद होंगे. नोबेल पुरस्कार विजेता अल गोर, हॉलीवुड के मशहूर अभिनेता लिओनार्डो डिकैप्रियो और आरनॉल्ड श्वार्जनेगर और भारत से जैकलीन फर्नांडिस भी यहां होंगे.

अध्यक्ष फिजी और मेजबान बॉन कैसे?

जलवायु सम्मेलन की मेजबानी आम तौर पर अध्यक्ष देश ही करता है. इस बार किसी एशियाई देश को चुना जाना था. फिजी को अध्यक्षता देने का फैसला इसलिए किया गया ताकि दुनिया का ध्यान जलवायु परिवर्तन के बुरे असर की ओर लाया जा सके. लेकिन फिजी जैसे छोटे से देश में इस स्तर पर कॉन्फ्रेंस कराना मुश्किल है. इसी वजह से जर्मनी ने मेजबानी करने की पेशकश की. जलवायु परिवर्तन के लिये संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएफसीसीसी का सचिवालय भी बॉन में ही स्थित है. इससे पहले 2001 में यहां जलवायु सम्मेलन हो चुका है और कॉप1 भी 1995 में बॉन में ही आयोजित हुआ था. उस समय अंगेला मैर्केल जर्मनी की पर्यावरण मंत्री थीं.

बॉ़न में शुरू हुआ जलवायु सम्मेलन

पेरिस समझौते के दो साल बाद, अब और क्या होना बाकी है?

हर साल दुनिया भर के देश किसी एक समझौते पर पहुंचने के इरादे से सम्मेलन में मिलते हैं. दिसंबर 2015 में आखिरकार पेरिस में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में समझौता हुआ और उसे अब तक की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि माना गया. अब तक 169 देश इससे जुड़ चुके हैं. देशों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने पर सहमति बनाई. लेकिन इस मकसद को हासिल कैसे किया जाएगा, नये नियमों को अमल में कैसे लाया जाएगा, इस पर चर्चा होनी अभी बाकी है. इस बीच अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से अलग कर लिया है.

तो क्या अब तक निर्धारित लक्ष्य अव्यवहारिक हैं?

पेरिस संधि का लक्ष्य है कि औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में इस शताब्दी के अंत तक धरती का तापमान दो डिग्री से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिए. अगर इसे 1.5 किया जा सके, तो और भी अच्छा क्योंकि तब दुनिया को कई तरह की त्रासदियों से बचाया जा सकेगा. ध्रुवों की बर्फ को पिघलने से रोका जा सकेगा, बाढ़ और सूखे के खतरे टल सकेंगे और फिजी जैसे देश, जो अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं, उन्हें भी बचाया जा सकेगा. लेकिन अब तक जिस लिहाज से कार्बन उत्सर्जन हो रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि धरती का तापमान तीन डिग्री तक बढ़ जाएगा. ऐसे में पेरिस संधि में निर्धारित लक्ष्य पूरे नहीं हो सकेंगे.

बॉन सम्मेलन में ठीक ठीक तौर पर क्या होगा?

पेरिस संधि के लक्ष्यों को पूरा करने पर बॉन में चर्चा होगी. यह जरूरी है कि एक ड्राफ्ट तैयार हो सके और सभी देश उससे सहमत हों. इस ड्राफ्ट में सभी देशों के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाएगा. ऐसा ना होने पर बैठक को विफल माना जाएगा. हालांकि जानकारों का मानना है कि सभी दलों को एकमत करना बेहद मुश्किल है और ऐसे में अगर कई कमियों वाला एक ड्राफ्ट भी तैयार हो पाता है, तो भी इसे एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जाएगा.

आईबी/एनआर (डीपीए)