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नोटबंदी से परेशानियों के सिवाय कुछ हासिल नहीं होगा: एक्सपर्ट

२५ नवम्बर २०१६

भारत में नोटबंदी के फैसले से लगभग हर कोई प्रभावित हो रहा है. अर्थशास्त्री राजीव विश्वास यकायक इस फैसले को लागू करने पर सवाल उठाते हैं.

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Indien Geldverleiher in Ahmedabad
तस्वीर: REUTERS/File Photo/A. Dave

सरकार का कहना है कि नोटबंदी से कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी, लेकिन बैंकों और एटीएम मशीनों के सामने लगी लाइनें बता रही है कि स्थिति अब भी सामान्य नहीं हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 50 दिन में सब कुछ ठीक होने की बात कही है, वहीं जानकार कह रहे है कि हालात सामान्य होने में महीनों लग सकते हैं. अर्थशास्त्री राजीव विश्वास का कहना है कि लगता है मोदी सरकार किसी और दुनिया में सोचती है, तभी तो उन्हें इस बात की जरा परवाह नहीं दिखती है कि नोटबंदी के फैसले से जनता को कितनी मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं.

डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "रातोरात देश के 86 प्रतिशत नोटों को रद्दी में तब्दील करने से जनता को बड़ा धक्का लगा है क्योंकि अब भी भारत में 50 प्रतिशत लोगों के पास बैंक खाते नहीं हैं, डिजिटल मनी की तो बात ही छोड़िए. गांवों में तो बैंकों की सुविधा बहुत ही कम लोगों के पास है. ऐसे लोग सिर्फ कैश पर निर्भर होते हैं. आम लोगों को दूध, सब्जी और राशन जैसी जरूरी चीजें खरीदने में दिक्कतें आ रही हैं.”

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वह कहते हैं कि भारत अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से अब भी एक गरीब देश है जहां 2015 में प्रति व्यक्ति सालाना आय 1,600 डॉलर थी. जिस तबके पर नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार पड़ी है, वो हैं गरीब. ये लोग आम तौर पर अपनी बचत बैंक में जमा करने की बजाय अपने ही पास ही नोटों की शक्ल में रखते हैं. अब अगर नोट अवैध घोषित हो गए हैं तो ये लोग उस पैसे से कुछ नहीं खरीद सकते हैं.

राजीव विश्वास कहते हैं कि शहरी मध्य वर्ग की नौकरशाही के मुताबिक चल रही केंद्र की मोदी सरकार और दूर दराज के गावों में रहने वाले लोगों की जिंदगी के सच के बीच बहुत फासला है. विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत के 27 करोड़ लोग बेहद गरीबी में रहते हैं. राजीव कहते हैं, "कौन सा बैंक झुग्गी बस्ती में रहने वाले आदमी को क्रेडिट कार्ड देगा, जो अपनी जिंदगी का एक दिन सिर्फ एक डॉलर पर काट रहा है? मोदी सरकार समझ ही नहीं सकती कि नोटबंदी से आम लोगों को कितनी मुसीबत झेलनी पड़ रही है. सरकार जनता की दिक्कतों से बेपरवाह किसी और ही दुनिया में रहती है.”

Rajiv Biswas
अर्थशास्त्री राजीव विश्वासतस्वीर: IHS

राजीव विश्वास कहते हैं कि पुरानों नोटों की जगह नए नोट लाने और जाली मुद्रा से निपटने में कुछ गलत नहीं है. हर देश ऐसा करता है लेकिन वहां व्यवस्थित तरीके से लोगों के पुराने नोटों को बदला जाता है. "जिस गरीब देश की आधे से ज्यादा जनता सिर्फ कैश पर निर्भर है, वहां रातोरात 86 प्रतिशत नोटों को रद्दी में तब्दील करने का फैसला समझ से परे है."

राजीव विश्वास नोटबंदी को "मास्टरस्ट्रोक" बताने के दावों पर भी सवाल उठाते हैं. वो कहते हैं, "यह मानना मुश्किल है कि नोटबंदी से कालेधन की समस्या एकदम खत्म हो जाएगी, क्योंकि जो लोग गैरकानूनी लेन-देन में शामिल हैं वे तो कोई और रास्ता निकाल लेंगे, जैसे विदेशी मुद्रा या फिर कालाधन.”

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तो फिर कालेधन से कैसे निपटा जाए, इस पर राजीव विश्वास का कहना है, "दुनिया के बहुत सारे देशों में भ्रष्टाचार और कालेधन की समस्या है. भारत में इसे खत्म करने के लिए भारतीय नौकरशाही के कई स्तरों पर काम करना होगा. इसे केंद्र और फिर राज्य सरकारों से धीरे धीरे खत्म करना होगा. बड़े आपराधिक गुटों से भी निपटना होगा. वो कालेधन और जाली करंसी में अहम भूमिका निभा रहे हैं.”

विश्वास कहते हैं कि अगर राजनीतिक इच्छा शक्ति भी हो तो भ्रष्टाचार और कालेधन की समस्या को खत्म करने में कई साल लग जाएंगे. रातोरात नोटबंदी के फैसले से यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए समस्या की इस जड़ खत्म हो जाएगी.

(राजीव विश्वास एचआईएस ग्लोबल इनसाइट में एशिया पैसेफिक चीफ इकॉनोमिस्ट हैं. वो एशिया मेगाट्रेंड्स (पालग्रावे, 2016) के लेखक भी हैं.)