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अपनी जेब संभालिए, बढ़ रहे हैं तेल के दाम

१७ मई २०१८

कच्चे तेल के लिए एशिया की भूख लगातार बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम चढ़ रहे हैं, जिसके चलते कच्चे तेल पर एशिया का सालाना खर्च जल्द एक ट्रिलियन डॉलर को पार कर सकता है.

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Irak OPEC Ölförderung
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/N. al-Jurani

नवंबर 2014 के बाद पहली बार कच्चे तेल के दाम 80 डॉलर प्रति बैरल को छूते नजर आ रहे हैं. जनवरी से लेकर अब तक दामों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. दुनिया का लगभग सारा तेल कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता है. वह भी लगातार मजबूत हो रहा है जिसका असर तेल आयात पर निर्भर एशियाई देशों पर हो सकता है. इससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है जिससे कंपनियां और आम ग्राहक, दोनों ही प्रभावित होंगे.

कनाडा के एक निवेश बैंक आरबीसी कैपिटल मार्केट ने अपने एक नोट में चेतावनी दी है, "तेल के दामों में हो रही बढ़ोत्तरी से एशिया सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है." दुनिया भर में हर दिन 10 करोड़ बैरल तेल की खपत होती है. इसमें 35 प्रतिशत तेल अकेला प्रशांत एशिया क्षेत्र करता है. वहीं तेल उत्पादन के मामले में एशिया की हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी कम है.

एशिया में चीन सबसे ज्यादा तेल आयात करता है. अप्रैल के आंकड़े बताते हैं कि उसने हर दिन 96 लाख बैरल तेल मंगाया. यह पूरी दुनिया में इस्तेमाल होने वाले तेल का 10 फीसदी है. मौजूदा कीमतों के आधार पर देखें तो चीन हर दिन तेल आयात पर 76.8 करोड़ डॉलर खर्च कर रहा है जबकि एक महीने का खर्चा 23 अरब डॉलर और एक साल का खर्चा 280 अरब डॉलर बैठता है.

तेल के बढ़ते दामों का असर अन्य एशियाई देशों पर भी पड़ेगा. इनमें भारत और वियतनाम जैसे देश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. ये देश न सिर्फ आयात किए जाने वाले तेल पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं, बल्कि तेल के दामों में होने वाली अचानक वृद्धि से निपटना भी उनके लिए मुश्किल होगा. आरबीसी का कहना है, "गरीब देशों के पास कर्ज लेने की सीमित क्षमता होती है, इसलिए तेल के बढ़ते दामों के बीच उन्हें वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है."

अगर ईंधन पर सब्सिडी नहीं दी गई तो गरीब देशों में आम ग्राहकों और उद्योगों पर बढ़ते दामों का बुरा असर होगा. एक रिसर्च बताती है कि भारत, वियतनाम या फिर फिलीपींस जैसे देशों में लोगों के वेतन का 8 से 9 प्रतिशत ईंधन पर खर्च होता है. वहीं जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे अमीर देशों में यह खर्च वेतन का 1 से 2 प्रतिशत होता है.

तेल के दामों में इजाफे से ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक कंपनियों पर खास तौर से असर पड़ता है. एशिया में ऐसी ही एक बड़ी कंपनी है फिलीपींस में कुरियर एलबीसी एक्सप्रेस होल्डिंग्स. कंपनी के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर वी रे जूनियर का कहना है, "एलबीसी तेल के दामों में उतार चढ़ाव पर लगातार नजर बनाए हुए है. हम इस बात की तैयारी कर रहे हैं कि तेल के बढ़ते दामों से एयरलाइन, शिपिंग लाइन या फिर ट्रक कंपनियों पर हमारा खर्च कितना बढ़ेगा."

वहीं कई कंपनियों का कहना है कि उनका खर्च जितना बढ़ेगा, वे उसे ग्राहकों पर डाल देंगी. फिलीपींस में चेल्सी लॉजिस्टिक कंपनी का कहना है कि बढ़ते दामों का असर निश्चित रूप से पड़ेगा लेकिन "हम कीमतों में बदलाव कर उसे ग्राहक की तरफ बढ़ा देंगे". लेकिन कुछ कंपनियों को यह भी डर है कि ग्राहकों पर ज्यादा बोझ डाला गए तो वे उन्हें खो देंगी. मुंबई में 50 ट्रक वाली प्रवीण रोडवेज कंपनी के मालिक आशीष सावला कहते हैं कि उनकी कंपनी का आधा से ज्यादा खर्च डीजल पर होता है, लेकिन बढ़ते खर्च को ग्राहकों पर डालना मुश्किल होगा. वह कहते हैं, "एक साल में डीजल के दाम 16 प्रतिशत बढ़ गए हैं लेकिन मैं किराए को पांच प्रतिशत नहीं बढ़ा सकता हूं. अगर मैंने किराया बढ़ाया तो ग्राहक सस्ते रेल ट्रांसपोर्ट को इस्तेमाल करने के बारे में सोचेंगे."

अनिल मित्तल मुंबई में एक कंटेनर लॉजिस्टिक कंपनी चलाते हैं और बॉम्बे गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के सदस्य हैं. वह कहते हैं कि उनकी कंपनी पहले ही "बहुत कम मार्जिन पर" काम कर रही है. उनके मुताबिक, "डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी का हमारे कारोबार पर बहुत असर पड़ा है.". वह कहते हैं कि उनके जैसी छोटी कंपनियों के लिए बैंकों का लोन चुकाना मुश्किल हो रहा है जो उन्होंने ट्रक खरीदने के लिए लिया था.

इन सब हालात में अर्थशास्त्री तेल पर निर्भरता घटाने पर जोर देते हैं. आरबीसी कैपिटल मार्केट का कहना है, "यह बहुत जरूरी है कि एशिया तेल पर अपनी निर्भरता कम करे और ऊर्जा कुशलता बढ़ाए. ताकि भविष्य में वह तेल के दामों में होने वाली वृद्धि के झटकों से बचा रहे."

एके/एमजे (रॉयटर्स)