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कला

बीएचयू छात्रों की पेंटिंग्स को लगे पंख

फैसल फरीद
१४ दिसम्बर २०१७

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के जिन आर्ट छात्रों की पेंटिंग्स कोने में धूल फांकती रहती थीं, अब वे हजारों में बिक रही हैं. जानिए कैसे हुआ यह संभव, इस खास रिपोर्ट में.

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Kunststudenten an der Universität Banaras Hindu
तस्वीर: DW/F. Fareed

कला अनमोल होती है. नामी चित्रकारों की बनाई पेंटिंग्स बहुत महंगी बिकती हैं. कुछ तो बहुमूल्य हो जाती हैं और कई प्रदर्शनियों की शान बन जाती हैं. लेकिन हर कलाकार की किस्मत ऐसी नहीं होती. शुरुआती दिनों में तो बिल्कुल नहीं, जब उसकी कला के कद्रदान कम होते हैं और अक्सर आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है.

विश्व प्रसिद्ध बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स के छात्र भी खूबसूरत पेंटिंग्स बनाते हैं. इन्हीं पेंटिंग्स के मूल्यांकन पर उन्हें प्रैक्टिकल और परीक्षा में अंक मिलते हैं. एग्जाम होने के बाद ये पेंटिंग या तो छात्र अपने साथ ले जाते हैं या फिर ये किसी कोने में पड़ी धूल फांकती रहती हैं.

अपनी शान खो रहा है शजर पत्थर

धागों से बनी कला

सॉफ्टवेयर इंजीनियर गौरव तिवारी जब अमेरिका से वापस बनारस आए तो अपने मित्र प्रोफेसर सुरेश के नायर से मिले. प्रोफेसर नायर बीएचयू के विजुअल आर्ट्स विभाग में कार्यरत हैं. यूं ही बातचीत के दौरान गौरव को कोने में पेंटिंग्स का ढेर दिखाई दिया. पेंटिंग ऐसी कि आदमी बिना तारीफ किए न रह पाए. प्रोफेसर नायर ने बताया कि फाइन आर्ट्स के छात्र ये पेंटिंग अपने प्रैक्टिकल और एग्जाम के दौरान बनाते हैं. उनमें से कुछ अपनी पेंटिग्स ले जाते हैं और कुछ यहीं पड़ी रहती हैं. गौरव अपनी लॉस एंजेलेस की नौकरी छोड़ कर कुछ नया करने के इरादे से अपने घर बनारस लौटे थे. कोने में पड़ी पेंटिंग्स ने उनको आइडिया दे दिया.

गौरव ने अपने साथियों के साथ मिलकर शुरू आर्ट (shuruart) नाम से स्टार्टअप वेंचर शुरू किया. इसमें उन्हें साथ मिला सना सबा का, जो बीएचयू में पत्रकारिता की स्टूडेंट थी. मकसद था स्टूडेंट्स की पेंटिंग्स को मार्किट में लाया जाए.

Kunststudenten an der Universität Banaras Hindu
तस्वीर: DW/F. Fareed

पेंटिंग्स बेचने का माध्यम ऑनलाइन रखा गया. स्टूडेंट्स से बात की गई तो वे खुशी खुशी तैयार हो गए. कई ने अपनी पेंटिंग्स दीं. जो पेटिंग्स पहले 400-500 रुपये में नहीं बिकती थीं, वे अब शुरू आर्ट के माध्यम से ऑनलाइन बिक्री के लिए रखी गईं और उनकी कीमत हजारों में पहुंच गई. लोगों ने इतनी उत्सुकता दिखाई कि सना सबा को रीप्रिंट बना कर बिक्री के लिए रखने पड़े. फिलहाल लिमिटेड एडिशन प्रिंट बिक्री के लिए हैं.

बीएचयू की बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स की छात्रा नीलम गुप्ता बताती हैं कि शुरू आर्ट से उनको बहुत फायदा हुआ. वह कहती हैं, "पहले हम लोग सोच भी नहीं सकते थे कि अपनी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी किसी शहर में लगाएं. इतना पैसा और संसाधन भी नहीं हैं. किसको अप्रोच करें, यह भी ज्यादा मालूम नहीं. अब शुरू आर्ट के माध्यम से हमारी पेंटिंग दूर दूर पहुच रही हैं. एक प्लेटफार्म और एक नया बाजार मिल गया है. खुशी इस बात की है कि पैसे भी अच्छे मिल रहे हैं."

इनके लिए कैसेट और रिकॉर्ड हैं कलाकृति

सिर्फ पैसे ही नहीं, स्टूडेंट्स को एक नया मंच भी मिल है. उनकी पेंटिंग्स सराही जाने लगीं. देश-विदेश से लोग पूछने लगे. उनकी पेंटिंग्स दिल्ली, हैदराबाद और मुंबई जैसे शहरों में प्रदर्शनी का हिस्सा बनने लगीं. जश्न-ए-रेख्ता जैसे आयोजनों में भी ये पेंटिंग्स प्रदर्शित की गईं. यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपने लोकसभा क्षेत्र बनारस में आए, तो उन्हें भेट करने के लिए शुरू आर्ट के माध्यम से गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड ने 11 पेंटिंग्स खरीदीं. उसमें से एक कन्हैया शर्मा की पेंटिंग मोदी को मंच पर भेंट की गई. पेंटिंग में बनारस के घाट का चित्रण किया गया हैं. भेंट तो सभी पेंटिंग्स की गईं लेकिन समय की कमी के कारण सिर्फ कन्हैया की पेंटिंग को मोदी के हाथों में दिया गया.

आज इन स्टूडेंट्स की पेंटिंग्स कई नामी गिरामी जगहों पर लगी हैं. सना सबा बताती हैं कि बिकने वाली सभी पेंटिंग्स का 70 प्रतिशत हिस्सा स्टूडेंट को जाता है. शुरू आर्ट स्टूडेंट की पेंटिंग को फ्रेम और फोटोग्राफ करवाती है और अपनी वेबसाइट पर बिक्री के लिए डाल देती है. कीमत विश्लेषक तय करते हैं या फिर स्टूडेंट भी बता सकता हैं. खरीददार को ऑनलाइन आर्डर करने के बाद पेंटिंग भेज दी जाती हैं.

शुरू आर्ट पर अब लगभग सौ स्टूडेंट्स की एक हजार के करीब पेंटिंग्स बिक्री के लिए उपलब्ध हैं. गौरव बताते हैं कि अब उनकी कंपनी बनारस के बाद पटना कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स भी पहुच गई है और वहां के स्टूडेंट्स भी अपनी पेंटिंग्स देते हैं. आगे गौरव के अनुसार वह देश के आदिवासी इलाके और पहाड़ी क्षेत्रों के स्टूडेंट्स की पेंटिंग्स को अपनी कंपनी के माध्यम से लोगों तक पहुचाएंगे.

सना सबा बताती हैं कि शीघ्र ही इलाहाबाद और सिलचर के छात्रों को भी इसमें शामिल किया जाएगा. छोटे शहरों में बहुत प्रतिभाएं हैं लेकिन उन्हें सही प्लेटफार्म नहीं मिल पा रहा हैं. ऐसे में, शुरू आर्ट जैसी कोशिशें सराहनीय हैं जिससे छात्रों को अपनी कला का सही दाम और सराहना मिल रही है.