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समाज

लव-जेहाद में नपती इंसानी अधिकारों की हदें

१० अक्टूबर २०१७

समाज और अन्य संस्थाएं यूं तो उदारता का झंडा बुलंद किए रहती हैं लेकिन जब हदिया जैसे महिला अधिकारों से जुड़े नाजुक, संवेदनशील मामले सामने आते हैं, तो लगता है उन्हें सांप सूंघ जाता है.

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Indien Muslimische Hochzeit
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/R. Kakade

केरल की 24 वर्षीय अखिला कुमारन ने हदिया खानम के रूप में इस्लाम धर्म कुबूल किया और अपने प्रेमी शफी जमां से शादी की. यह मामला पहले लव जेहाद से जुड़ा और फिर इसमें आईएस का हाथ होने की भी बात सामने आई. इसमें परंपरा, नैतिकता और औरत को हदें न लांघने का शोर भी गूंजने लगा. कोर्ट के लिए भी यह एक पेचीदा मामला बन गया लगता है.

केरल हाईकोर्ट के आदेश के बाद हदिया को पुलिस संरक्षण और निगरानी में अपने पिता के घर भेज दिया गया है. क्योंकि हदिया के पिता ने दूसरी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कहा कि आईएस के प्रभाव में उनकी बेटी का धर्म बदला गया है और उसे सीरिया ले जाया जा सकता है. होम्योपैथी की डॉक्टर, हदिया का पक्ष पता नहीं चल पाया है. फिलहाल वह अपने पति से अलग है.

इधर सुप्रीम कोर्ट में उसके मामले की सुनवाई चल रही है. 9 अक्टूबर को इस पर कोई फैसला आ सकता था लेकिन मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, हदिया के पति शफी खानम के वकील की एक दलील से बिफर कर अदालत 30 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी गई. वकील ने कहा था कि केरल में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरों में लव जेहादी एंगल को जानबूझकर हवा दी जा रही है. कोर्ट का कहना था कि अदालत में राजनीतिक मंतव्य से कुछ न कहा जाए.

कौन तय करेगा?

यह तो कल की बात हुई. लेकिन इससे पहले केरल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इस मामले से जुड़ी पुरानी सुनवाइयों और फैसलों का आकलन करें तो लगता है कि यह मामला कुछ ज्यादा ही रोचक हो गया है. मिसाल के लिए केरल हाईकोर्ट ने लड़की के पिता की याचिका पर अपनी पहली सुनवाई में पाया कि वह वयस्क है और अपना अच्छा बुरा समझती है, अलग और आजाद ढंग से रह सकती है, लिहाजा अपने आदेश में कोर्ट ने हदिया को अपनी मनमर्जी की जगह पर रहने का फैसला सुनाया.

मामला सुलझता दिखा कि कुछ महीनों बाद पिता ने आईएस वाले पहलू की ओर इशारा करते हुए दूसरी याचिका डाली. इस पर हाईकोर्ट ने हदिया को तलब किया और शादी रद्द कर दी. परिवार और परंपरा की दलीलें आईं. हदें दिखने लगीं और हदिया को अपने पिता के घर में रखने का आदेश दिया गया. एक ओर कानून और अदालती आदेश, दूसरी ओर परिवार का बंधन और तीसरी ओर समाज की तीखी नजरें. क्या हदिया का अपना खुद का चौथा आजाद खुला कोना नहीं होगा जो सिकुड़ता जा रहा होगा? वह खुद क्या सोचती है और उसके लिए क्या सही है, इसे तय करने का काम, अन्य संस्थाएं अन्य व्यक्ति कर रहे हैं, वो जैसे सोचने समझने वाली, शिक्षित, वयस्क मनुष्य न होकर एक नादान, भ्रमित, और वशीभूत लड़की होगी.

इस्लामिक स्टेट से जुड़ा मामला

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला गया तो कोर्ट ने कहा कि आखिर शादी खारिज करने का हाईकोर्ट को क्या अधिकार है. वे दोनों तो बालिग हैं. लेकिन आईएस वाली बात आई तो उसने, एनआईए जैसी शीर्ष संस्था से मामले की जांच का आदेश दे दिया क्योंकि खबरों के मुताबिक एजेंसी ने इशारा किया था कि इस तरह के अंतर्धार्मिक विवाहों में से कुछ मामलों पर आईएस के प्रभाव की छाया पड़ी है. कोर्ट के जाहिर है कान खड़े हुए और हदिया अनचाही घेरेबंदी में ही फंसी रह गई. हालांकि पिछले दिनों केरल सरकार ने भी कोर्ट में कहा कि इस मामले पर एनआईए जांच की जरूरत ही नहीं है क्योंकि केरल पुलिस इस तरह की जांचों के लिए उपयुक्त और सक्षम है और इस मामले में तो यह जांच हो ही चुकी है.

फिर भी लगता है कि कोर्ट को आखिरी तसल्ली के लिए और साक्ष्य चाहिए होंगे. इस बीच हदिया के पति ने भी सुप्रीम कोर्ट में एनआईए जांच रोकने को लेकर अर्जी डाली है. उस पर भी सुनवाई चल रही है. तो स्थिति फिलहाल फंसी हुई लगती है. अगर एनआईए जांच होती है और देर तक चलती है, फिर उसकी क्या रिपोर्ट आती है और अगर कोर्ट उन सब बातों का संज्ञान लेकर आगे की कार्यवाही करता है तो यह मामला उत्तरोत्तर और पेचीदा होता जाएगा. फिलहाल 30 अक्टूबर तक तो खिंच ही गया है. सुप्रीम कोर्ट ने शादी खारिज करने के हाईकोर्ट के फैसले पर सिर्फ सवाल ही उठाया है, उसे रद्द नहीं किया है. हदिया का पक्ष भी आना बाकी है.

ऐसे में लगता तो यही है कि हदिया के लिए आगे का वक्त चुनौती भरा होगा. इंसाफ की आखिरी मंजिल तक पहुंचने के लिए उसे लंबा इंतजार करना पड़ेगा. लेकिन जिस तरह से दिखता है कि इस मामले को पारिवारिक बंधनों और संस्कारों और अपना भला बुरा न समझ पाने की लड़की की समझ और हैसियत से तौला गया है- वो चिंताजनक है और यह भी दिखता है कि महिला अधिकारों की लड़ाई आसान नहीं है. समाज और अन्य संस्थाएं यूं तो उदारता का झंडा बुलंद किए रहती हैं लेकिन जब हदिया जैसे महिला अधिकारों से जुड़े नाजुक, संवेदनशील मामले सामने आते हैं- तो लगता है उन्हें सांप सूंघ जाता है.