1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

तकनीक लगाएगी आर्सेनिक के जहर पर अंकुश

प्रभाकर मणि तिवारी
२१ मई २०१८

भारत में कई इलाके पीने के पानी में आर्सेनिक की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं, जिससे बीमारियां फैल रही हैं. लेकिन अब पश्चिम बंगाल के वैज्ञानिकों ने भूमिगत जल में आर्सेनिक का पता लगा कर उसे दूर करने के लिए एक सेंसर बनाया है.

https://p.dw.com/p/2y3Mi
Bangladesch Vergiftetes Wasser
तस्वीर: MUFTY MUNIR/AFP/Getty Images

वैज्ञानिकों का दावा है कि इसके जरिए आर्सेनिक का पता लगा कर उसे दूर करना आसान भी है और सस्ता भी. पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में कल्याणी स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईईएसआर) के वैज्ञानिकों ने आर्सेनिक सेंसर एंड रिमूवल किट को तैयार किया है. इससे बेहद आसान तरीके से कम खर्च में पानी में आर्सेनिक के स्तर का पता लगाया जा सकता है.

वैज्ञानिकों की टीम ने इस किट के व्यावसायिक उत्पादन के लिए एडो एडिटिव्स नामक एक फर्म के साथ करार पर भी हस्ताक्षर किए हैं. इस सेंसर किट को बनाने वाली टीम के प्रमुख आईआईईएसआर में रसायन विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और रामानुजन नेशनल फेलो राजा शनमुगम बताते हैं, "पानी में आर्सेनिक का पता लगाने के लिए बाजार में उपलब्ध मौजूदा तकनीक बेहद महंगी और जटिल है. उनके जरिए घर पर आर्सेनिक के स्तर का पता नहीं लगाया जा सकता."

कीमत

वह बताते हैं कि नए आर्सेनिक सेंसर के लिए 50 पेपर स्ट्रिप की कीमत महज ढाई सौ रुपए होगी. इसके कार्टिज की कीमत पांच सौ रुपए हैं. स्ट्रिप से आर्सेनिक का पता चलेगा और कार्टिज के जरिए उसे दूर किया जा सकेगा. फिलहाल बाजार में उपलब्ध टेस्टिंग किटों की कीमत छह से आठ हजार रुपए के बीच है. शुनमुगम बताते हैं कि पानी में मौजूद आर्सेनिक की मात्रा और पानी की खपत के आधार पर एक परिवार में साल में दो से तीन कार्टिज की जरूरत हो सकती है.

शनमुगम बताते हैं, "अब तक आर्सेनिक का पता लगाने के लिए पानी के नमूने में केमिकल मिला कर उसे हिलाना पड़ता था. आर्सेनिक की मौजूदगी की पुष्टि के लिए इससे निकलने वाले धुएं तो एक अन्य रसायन से गुजारा जाता है. घर पर यह काम करना खतरनाक और जटिल है."

आईआईईएसआर के निदेशक सौरभ पाल बताते हैं, "यह सेंसर एक लीटर पानी से 0.02 मिलीग्राम आर्सेनिक हटाने में भी सक्षम है." विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, भूमिगत पानी में आर्सेनिक की अनुमोदित सीमा 0.01 मिलीग्राम तक है. लेकिन भारत में डीप ट्यूबवेलों के जरिए भारी मात्रा में भूमिगत पानी की खपत की वजह से यह सीमा 0.05 मिलीग्राम है.

इंजीनियर की 'सनक' से लद्दाख में जल संकट का समाधान

बूंद बूंद पानी बचाने की जद्दोजहद

इन्होंने उठाया है समुद्र की सफाई का बीड़ा

आईआईईएसआर की सेंसर किट में पनी में आर्सेनिक का पता लगाने के लिए फ्लूरो-पालीमर लगा एक फिल्टर पेपर होता है. सौरभ पाल बताते हैं, "इसे एक लीटर पानी में डुबोने पर मामूली आर्सेनिक होने की स्थिति में भी स्ट्रिप का रंग बदल कर गुलाबी हो जाता है. उसके बाद उस पानी को एक कार्टिज से गुजार कर आर्सेनिक-मुक्त किया जा सकता है."

बोतल वाला पानी भी पूरी तरह साफ नहीं

एडो एडिटिव्स के प्रबंध निदेशक व मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजीब परियाल बताते हैं, "आर्सेनिक सेंसर जल्द व्यावयायिक रूप में बाजार में उपलब्ध होगा. इसके अलावा वाटर प्यूरीफायर बनाने वाली कई कंपनियों से भी बातचीत चल रही है ताकि प्यूरीफायर में ही कार्टिज को लगाया जा सके." वह बताते हैं कि कंपनी सेंसरों के वितरण के लिए पश्चिम बंगाल सरकार से भी बातचीत कर रही है. फिलहाल यह सेंसर बंगाल के बाजारों में उपलब्ध होगा. आगे चल कर इसे पूरे देश में ब्रिकी के लिए भेजा जाएगा.

पानी बुझा सकता है ऊर्जा की प्यास

दिल्ली में लाखों लोगों को पानी की किल्लत

आर्सेनिक की समस्या

भूमिगत पानी में आर्सेनिक की मौजूदगी के मामले में बंगाल पूरे देश में शीर्ष पर है. राज्य के पूर्वी व पश्चिमी बर्दवान, मालदा, हुगली, नदिया, हावड़ा, मुर्शिदाबाद, उत्तर व दक्षिण 24-परगना जिलों के 83 ब्लाकों में पानी में आर्सेनिक की मौजूदगी खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है. राजधानी कोलकाता के कुछ इलाकों में भी भूमिगत जल आर्सेनिक-मुक्त नहीं है. बीते साल लोकसभा में पेश एक रिपोर्ट में भी बंगाल में इस समस्या की गंभीरता का जिक्र किया गया था. बीते साल मार्च तक राज्य में आर्सेनिक से पीड़ित लोगों की तादाद 1.04 करोड़ बताई गई थी. इस मामले में बंगाल के बाद 16.88 लाख पीड़ितों के साथ बिहार दूसरे और 14.48 लाख की प्रभावित आबादी के साथ असम तीसरे स्थान पर है. पूरे देश में आर्सेनिक पीड़ित लोगों की तादाद 1.48 करोड़ है.

राइन का पानी इतना साफ कैसे?

राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, "डीप ट्यूबवेलों के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से आर्सेनिक की समस्या और गंभीर हो गई है." वह कहते हैं कि सरकार ने आर्सेनिक की समस्या से निपटने की दिशा में कुछ उपाय जरूर किए हैं. लेकिन इस मामले में अब भी काफी कुछ किया जाना बाकी है. मंत्री बताते हैं, "सरकार उत्तर व दक्षिण 24-परगना जिले में आर्सेनिक से प्रभावित इलाकों में छह लाख लोगों को पीने का साफ पानी​​ मुहैया करा रही है. इसके अलावा कोलकाता के पूर्वी छोर पर एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी स्थापित किया जा रहा है." उनका दावा है कि आर्सेनिक से प्रभावित इलाकों में से 52 फीसदी में पीने का साफ पानी मुहैया कराया जा रहा है.

पानी के बिना ऐसी होती है जिंदगी

बाढ़ के कारण सागर में पहुंचे प्लास्टिक के अरबों कण

बंगाल के आर्सेनिक टास्क फोर्स के अध्यक्ष केजे नाथ भी मानते हैं कि प्रभावित इलाकों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने की प्रक्रिया काफी धीमी है. राज्य सरकार का दावा है कि अगले दो साल के भीतर बंगाल आर्सेनिक-मुक्त राज्य बन जाएगा. लेकिन समस्या की गंभीरता को देखते हुए वैज्ञानिकों को इसमें संदेह है. ऐसे में, नई तकनीक से इस मामले में काफी सहायता मिलने की उम्मीद है.

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी