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विज्ञानकनाडा

कोविड: मानसिक स्वास्थ्य पर ‘ज्यादा असर’ का नहीं मिला सबूत

फ्रेड श्वालर
१७ मार्च २०२३

पहले कहा जा रहा था कि कोरोना की वजह से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी ज्यादा असर पड़ा है. हालांकि, एक नए अध्ययन से पता चलता है कि महामारी ने सामान्य आबादी में अवसाद और चिंता के लक्षणों को ज्यादा प्रभावित नहीं किया.

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Symbolbild Coronavirus | COVID-19
तस्वीर: Cindy Ord/Getty Images

एक नए अध्ययन से पता चला है कि कोरोना महामारी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को उतना नुकसान नहीं पहुंचाया जितना पहले सोचा गया था. कुल मिलाकर, महामारी से पहले और महामारी के दौरान सामान्य आबादी के बीच अवसाद, चिंता और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े लक्षणों में काफी कम बदलाव हुए.

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन का नेतृत्व कनाडा के मैकगिल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है. इसमें दुनिया भर के 137 अन्य अध्ययनों का डेटा शामिल किया गया.

मैकगिल विश्वविद्यालय में मनोचिकित्सा के प्रोफेसर और अध्ययन के प्रमुख लेखक ब्रेट थॉम्ब्स ने कहा कि ऐसे दावे किए गए थे कि महामारी के दौरान ‘मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में बेतहाशा बढ़ोतरी ' हुई, लेकिन इन दावों को साबित करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं था.

थॉम्ब्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस बात की तुलना नहीं की गई थी कि महामारी के पहले लोग कैसे थे और महामारी के दौरान उनके स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ा. लोग कह रहे थे कि महामारी के दौरान 30 फीसदी लोगों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं देखने को मिली, जबकि ऐसी संख्या हमें हमेशा देखने को मिलती है.”

थॉम्ब्स और शोधकर्ताओं की एक टीम ने उन सभी अध्ययनों की खोज की जिससे वे महामारी के पहले मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं और उनसे प्रभावित लोगों को ट्रैक कर सकते थे. उन्होंने ऐसे मामलों को ट्रैक करना जारी रखा.

उन्होंने अपने अध्ययन में 30 से ज्यादा देशों का डेटा शामिल किया. इसमें ज्यादातर मध्यम और उच्च आय वाले देश शामिल थे. इस डेटा में उन लोगों के बीच कोई फर्क नहीं किया गया जो कोविड 19 से प्रभावित हुए और जो इससे प्रभावित नहीं हुए. दूसरे शब्दों में कहें, तो सामान्य आबादी के बीच मानसिक अवसाद के लक्षणों को लेकर यह अध्ययन किया गया.

थॉम्ब्स ने कहा, "हमने सामान्य आबादी के बीच चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लक्षणों में काफी कम बदलाव पाया और कुछ जगहों पर कोई बदलाव नहीं पाया. इससे हम काफी हद तक इस बात को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं कि कोरोना महामारी कोई मानसिक स्वास्थ्य आपदा नहीं थी.”

महामारी से पीड़ित लोग डेटा में खो गए

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि थॉम्ब्स के अध्ययन में यह तथ्य छूट गया है कि कुछ लोगों ने महामारी के दौरान काफी खराब मानसिक स्वास्थ्य लक्षणों का अनुभव किया था.

मिसौरी के सेंट लुइस में स्थित वाशिंगटन विश्वविद्यालय में क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजिस्ट जियाद अल-एली ने कहा, "यह जनसंख्या स्तर का डेटा है. इस अध्ययन में उन समस्याओं को नहीं दिखाया गया है जिसका सामना कई लोगों ने महामारी के दौरान किया. उदाहरण के लिए, अध्ययन में उन लोगों के बीच कोई अंतर नहीं किया गया जो कोविड से प्रभावित नहीं हुए और जो कोविड से प्रभावित हुए या लंबे समय तक इससे प्रभावित रहे.”

अल-एली ने कहा कि कई अध्ययनों में बताया गया है कि जो लोग कोविड से बार-बार प्रभावित हुए या जो लंबे समय तक इससे प्रभावित रहे, उनकी मानसिक हालत कोविड से प्रभावित नहीं होने वालों की तुलना में काफी ज्यादा खराब थी.

उन्होंने कहा कि सामान्य आबादी में हर किसी के डेटा को इकट्ठा करने का मतलब है कि कोविड से प्रभावित होने वाले लोगों के मानसिक स्वास्थ्य में हुए बदलावों की अनदेखी की गई.

महामारी के दौरान महिलाओं में ज्यादा चिंता, अवसाद और सामान्य मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण देखे गए
महामारी के दौरान महिलाओं में ज्यादा चिंता, अवसाद और सामान्य मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण देखे गएतस्वीर: Matilde Campodonico/AP/picture alliance

महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य में मामूली गिरावट

अध्ययन में पाया गया कि महामारी के दौरान महिलाओं में ज्यादा चिंता, अवसाद और सामान्य मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण देखे गए, लेकिन यह स्थिति भी ‘काफी ज्यादा खराब' नहीं थी.

थॉम्ब्स ने कहा, "हमें जनसंख्या स्तर पर छोटे बदलाव देखने को मिले हैं. इसलिए हम यह बात पक्के तौर पर कह सकते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने ज्यादा खराब मानसिक स्वास्थ्य का अनुभव किया. यह चिंता का विषय है.”

वृद्धों, विश्वविद्यालय के छात्रों, माता-पिता और लैंगिक तौर पर अल्पसंख्यक समूह के लोगों में भी अवसाद के लक्षण ज्यादा खराब नहीं पाए गए . मौजूदा डेटा के मुताबिक, अवसाद के लक्षणों में ‘कम से कम बदलाव' होने पर किसी व्यक्ति को किस तरह का अनुभव होता है? इसके जवाब में थॉम्ब्स कहते हैं, "यह मिली-जुली अवस्था होती है.”

वह कहते हैं, "हमने नियमित प्रश्नावली के आधार पर लक्षण में हुए बदलावों का आकलन किया है. इसलिए, हो सकता है कि कुछ लोगों ने इन बदलावों पर ध्यान दिया होगा और इन्हें महसूस किया होगा. वहीं, कुछ लोगों ने इन बदलावों को महसूस भी नहीं किया होगा. हमने उन छोटे बदलावों का भी पता लगाया है जिनके बारे में किसी व्यक्ति को जानकारी नहीं भी हो सकती है.”

कुछ समूह ऐसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं जो सामान्य आबादी या अन्य समूहों से अलग होती हैं
कुछ समूह ऐसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं जो सामान्य आबादी या अन्य समूहों से अलग होती हैंतस्वीर: Oli Scarff/AFP/Getty Images

मानसिक स्वास्थ्य व्यक्तिगत मामला है

शोधकर्ताओं ने यह स्वीकार करते हुए अपने अध्ययन से निष्कर्ष निकाला कि "कुछ समूह ऐसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करते हैं जो सामान्य आबादी या अन्य समूहों से अलग होती हैं.”

उन्होंने सरकारों से यह सुनिश्चित करने का भी आह्वान किया कि लोगों की जरूरतों के मुताबिक उन्हें मानसिक स्वास्थ्य सहायता उपलब्ध कराई जाए. थॉम्ब्स ने कहा, "कई लोग ऐसे थे जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे, लेकिन हमारे समाज और समुदाय ने इन समस्याओं का सामना करने और एक-दूसरों की मदद करने के लिए कई सारी अद्भुत चीजें की. मुझे लगता है कि कहानी का वह हिस्सा कहीं खो गया है.”

वहीं, अल-एली का नजरिया उतना सकारात्मक नहीं था. उनका मानना था कि इस डेटा से किसी भी तरह का नतीजा निकालने से पहले काफी ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है, क्योंकि इससे कुछ लोग उन लोगों की उपेक्षा कर सकते हैं जिन्होंने महामारी के दौरान वाकई में मानसिक समस्याओं का सामना किया था.

इन तमाम बातों के बीच एक बात तय है कि महामारी से पहले, उस दौरान या उसके बाद की बात हो, मानसिक स्वास्थ्य एक व्यक्तिगत मामला है.