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सिर्फ चमक मत देखो, बच्चों की चीखें भी सुनो

३ अगस्त २०१६

खदान ढह गई और 16 साल का मदन उसमें फंसा रह गया. कुछ घंटों तक वह छटपटाता रहा, उसकी चीख सुनाई भी पड़ी, लेकिन कोई मदद नहीं पहुंची. भारत में माइका की खदानों में मरने वाले बच्चे अपने पीछे ऐसी ही कहानी छोड़ जाते हैं.

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तस्वीर: Getty Images/D. Berehulak

बिहार के चांदवाड़ा गांव में पिछले कुछ दिनों से 16 साल के मदन के किस्से सुनाई पड़ रहे हैं. दो महीने पहले तक आम बच्चों की तरह घूमने फिरने वाले मदन की तस्वीर पर माला लगी हुई है. मदन को उसके पिता वासुदेव राय प्रताप ने पड़ोसी राज्य झारखंड की माइका खदान में काम करने के लिए भेजा. 23 जून को खदान में हादसा हुआ और मदन समेत तीन लोगों की मौत हो गई.

वासुदेव तब से खुद को कोसे जा रहे हैं, "मुझे नहीं पता था कि खदान के भीतर काम करना कितना खतरनाक होता है. अगर मुझे यह पता होता तो मैं उसे कभी नहीं भेजता." वासुदेव के मुताबिक बेटे की मौत का पता भी उन्हें कुछ दिनों बाद चला, "उन्होंने बताया कि खदान ढहने के बाद उसका शव निकालने में करीब पूरा दिन लगा. उन्होंने बिना मुझे बताये उसका शव जला दिया. मैं अपने बेटे को आखिरी बार देख भी नहीं सका."

Indien Kinderarbeit Mohammad arbeitet in einer Autowerkstatt in Dimapur
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Mao

वासुदेव ने अपने बेटे की मौत की खबर प्रशासन को नहीं दी. कुछ और लोगों ने भी बिल्कुल ऐसा ही किया. संरक्षित जंगलों में गैरकानूनी ढंग से खनन कर रहे माफिया ने मदन के पिता को चुप रहने के एवज में एक लाख रुपये का मुआवजा देने का वादा किया. पैसा अभी तक नहीं मिला है.

भारत में गैरकानूनी ढंग से चल रही माइका की खदानों में हजारों बच्चे काम करते हैं. दुबले पतले और लचीले बच्चों को जमीन के नीचे घुप अंधेरे में माइका निकालने भेजा जाता है. कामचलाऊ तरीके चल रही ऐसी कमजोर खदानें आए दिन ढह जाती हैं और पैसे के लालच में वहां भेजे गए बच्चे मुर्दा शरीर के रूप में बाहर निकाले जाते हैं.

बिहार, राजस्थान, झारखंड और आंध्र प्रदेश में माइका की खानों में बड़ी संख्या में बच्चे काम कर रहे हैं. जून और जुलाई में इन खदानों में सात बच्चे मारे भी गए. माइका का इस्तेमाल कॉस्मेटिक्स और कार पेंट में किया जाता है. बाजार तक पहुंचने वाला 70 फीसदी माइका इन्हीं गैरकानूनी खदानों से आता है.

Indien Kinderarbeit Textilindustrie
तस्वीर: picture-alliance/Godong

भारत में बाल मजदूरी गैरकानूनी है, लेकिन बेहद गरीबी में जीने वाले लाखों बच्चों और उनके परिवारों के पास कोई और विकल्प भी नहीं है. परिवार को सहारा देने के लिए बच्चों को मजदूरी में धकेला जाता है. नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था बचपन बचाओ आंदोलन के मुताबिक माइका की खदानों की तस्वीर कहीं ज्यादा डरावनी है. संस्था के मुताबिक सिर्फ जून में ही 20 बच्चे मारे गए. जुलाई में चार बच्चों ने जान गंवाई.

गरीबी और इन बच्चों के खून सना माइका देर सबेर देशी और विदेशी बाजारों में पहुंचता है. बाल अधिकारों के लिए काम कर रहे डच अभियान SOMO के मुताबिक भारत में माइका की खदानों में करीब 20,000 बच्चे काम कर रहे हैं. सिल्वर क्रिस्टल वाले माइका की मदद से मैटेलिक कलर में खास चमक आती है. चांदी जैसे दिखने वाले माइका के बेहद बारीक कण इमारतों, कपड़ों और मेकअप के सामान में भी डाले जाते हैं. जब निर्यात के आंकड़ों की बात आती है तो भारत अधिकारी गर्व से कहते हैं कि हम माइका के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक हैं.

भारत के खनन मंत्रालय के मुताबिक माइका गैरकानूनी खदानों पर नकेल कसने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है. लेकिन भारत के ज्यादातर राज्यों में खनन माफियाओं और राजनीति के बीच बेहद गहरा रिश्ता है. जब कभी नकेल कसने की बात आती है तो यह भी कहा जाता है कि गैरकानूनी खदानों को कानूनी पट्टा दे दो. कानून तोड़ने वालों के हित सुरक्षित करना पहली प्राथमिकता सा बन जाता है.

(भारत में बाल मजदूरी)

बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए बनाए गए नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) के अधिकारी भी सम्मेलनों या गोष्ठियों में बाल अधिकारों पर चर्चा कर या कुछ नोटिस भेजकर खानापूर्ति कर देते हैं. सरकारी संस्था NCPCR ने झारखंड के कोडरमा और गिरिडीह जिले में जांच भी की. NCPCR को वहां आठ में से चार बाल मजदूर मिले. NCPCR की प्रियंका कानूनगो कहती हैं, "हमें ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली कि बच्चे घायल हुए हैं या खदान में हुए हादसे में मारे गए हैं. ये सब गैरकानूनी है और इसके बारे में खुलकर रिपोर्ट नहीं की जाती. लेकिन हो सकता है कि बच्चों की मौत हुई हो."

झारखंड के श्रम विभाग का भी यही कहना है कि माइका की खदानों में कोई बच्चा नहीं मारा गया. जाहिर है, सरकारी तंत्र को जब तक ऐसा कोढ़ लगा रहेगा तब तक मदन, नागू और विक्रम जैसे बच्चे मरते रहेंगे. उनका परिवार उस दर्द के साथ जिंदगी धकेलता रहेगा और सरकारी अधिकारी "सब ठीक है" वाली रिपोर्ट आगे भेजते रहेंगे. अंत में निर्यात के आंकड़ों में माइका भारत को चमकाता रहेगा.

ओएसजे/वीके (रॉयटर्स)