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गुड़गांव के ऊपर क्यों उड़ रहे हैं इतने सारे ड्रोन!

२ दिसम्बर २०१६

गुड़गांव पर ड्रोन उड़ रहे हैं. अक्सर उड़ते रहते हैं. ये ड्रोन शहर का नक्शा तैयार कर रहे हैं. जमीन के दस्तावेजीकरण में इस आधुनिक तकनीक की मदद ली जा रही है.

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Asien Pazifik Konferenz 2012
तस्वीर: DW/Andreas Becker

भारत के बिजनस हब के रूप में मशहूर गुड़गांव के ऊपर ड्रोन उड़ रहे हैं. ये ड्रोन शहर की मैपिंग कर रहे हैं. ऐसा एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत किया जा रहा है, जो सफल रहा तो पूरे देश में चलाया जा सकता है. हालांकि अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए नियमों में बदलाव करना होगा.

यह प्रोजेक्ट हरियाणा सरकार की ओर से चलाया जा रहा है. प्रोजेक्ट उड़ान नाम की यह परियोजना गुड़गांव, सोहना और मानेसर में चल रही है. इसके तहत शहर का नक्शा तैयार किया जा रहा है. इन नक्शों के जरिए दशकों पुरानी जमीन के दस्तावेजों को अपडेट किया जा रहा है, अवैध कब्जों का पता लगाया जा रहा है और जमीन विवादों को सुलझाया जा रहा है. गुड़गांव के डिप्टी कमिशनर टीएल सत्यप्रकाश बताते हैं, "जमीन का रिकॉर्ड हर पांच साल पर अपडेट होना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. और फिर गलतियां भी बहुत होती हैं. यहां तक कि सैटलाइट इमेजरी में भी गलतियां हो जाती हैं. इसलिए हम ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये ज्यादा सटीक होते हैं इसलिए हम डिजिटाइज करने से पहले जमीन के रिकॉर्ड को सत्यापित कर सकते हैं."

देखिए, ड्रोन की नजर से ग्रेट बैरियर रीफ

भारत ने जमीन के रिकॉर्ड को डिजिटाइज करने का काम शुरू किया है जो 2021 तक पूरा होना है. इस काम पर 110 अरब रुपये खर्च होने हैं. इसके तहत जमीन की मिल्कीयत भी सुनिश्चित होनी है. जमीन के सटीक और समुचित नक्शे ना होने का खामियाजा देश को कई तरह से भुगतना पड़ता है. एक तो मालिकाना हक को लेकर विवाद होते हैं जिनका नतीजा लंबी और दुरुह कानूनी लड़ाइयों के रूप में सामने आता है. इस कारण विकास परियोजनाएं लटकी रहती हैं. बेंगलुरू की एक संस्था दक्ष के मुताबिक भारत में चल रहे दीवानी मुकदमों में से दो तिहाई जमीन विवाद के ही हैं.

हरियाणा के गुड़गांव में जो ड्रोन उड़ रहे हैं वे पुणे के साइंस एंड टेक्नॉलॉजी पार्क के हैं. सत्यप्रकाश बताते हैं कि ये ड्रोन हर तीन महीने पर बहुत हाई रेजॉल्यूशन वाली तस्वीरें खींचते हैं ताकि सीमाओं को रिकॉर्ड किया जा सके और सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे का पता लगाया जा सके. इन तस्वीरों को फिर मौजूदा रिकॉर्ड से मिलाया जाता है और पंचायतों की मदद से सत्यापित किया जाता है. हरियाणा स्पेस एप्लिकेशंस सेंटर के मुख्य इंजीनियर आरएस हुड्डा बताते हैं कि इस काम में पंचायतों की मदद भी ली जा रही है. वह कहते हैं कि रिकॉर्ड को पंचायतों की मदद से ही सत्यापित किया जाता है. ड्रोन के इस्तेमाल की वकालत में हुड्डा कहते हैं, "ड्रोन अब पहले से बहुत सस्ते हो गए हैं क्योंकि ये भारत में ही बन रहे हैं. इनकी खींचीं तस्वीरें भी उपग्रहों की भेजीं तस्वीरों से बेहतर होती हैं." हुड्डा कहते हैं कि गुड़गांव के इस प्रोजेक्ट को कहीं भी बहुत आसानी से लागू किया जा सकता है लेकिन ड्रोन उड़ाने के लिए नियम बहुत सख्त हैं इसलिए इनका इस्तेमाल अभी व्यापक नहीं है.

यह भी देखिए: उड़ने वाला कैमरा

भारत में ड्रोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. खासकर वन को कटने से बचाने और अवैध खदानों की पहचान में इनका इस्तेमाल खूब हो रहा है. लेकिन हर राज्य में ड्रोन से जुड़े नियम अलग हैं. कहीं सिर्फ पुलिस की इजाजत से काम चल जाता है जबकि कहीं रक्षा मंत्रालय से इजाजत लेनी होती है. हुड्डा कहते हैं कि सख्त नियम एक चुनौती हैं और ऐसा ना होता तो मैपिंग का काम और जल्दी हो सकता है. वह कहते हैं कि जमीन के दस्तावेजीकरण में ड्रोन बहुत काम की चीज साबित हो सकता है.

वीके/एके (रॉयटर्स)