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सुप्रीम कोर्ट की समिति में शामिल होने से चुनाव आयोग का इनकार

चारु कार्तिकेय
११ अगस्त २०२२

चुनाव आयोग ने चुनावों में मुफ्त सामान देने के वादों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रस्तावित समिति में शामिल होने से इनकार कर दिया है. आयोग ने शिकायत भी कि उसकी भूमिका पर अदालत की टिप्पणी से उसकी मर्यादा को ठेस थी पहुंची है.

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Indien - Wahlen
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW

सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करते हुए चुनाव आयोग ने कहा है कि हालांकि वो अदालत द्वारा इस विषय पर विशेषज्ञों की एक समिति बनाने के आदेश का स्वागत करता है, लेकिन खुद आयोग का इस समिति में शामिल होना ठीक नहीं होगा.

आयोग के मुताबिक "चूंकि वह एक संवैधानिक संस्था है उसके लिए ऐसी समिति का हिस्सा होना ठीक नहीं होगा, विशेष रूप से अगर उसमें सरकार के मंत्री या दूसरी सरकारी संस्थाएं हों."

चुनाव
चुनावों में सभी पार्टियां तरह तरह के लुभावने वादे करती हैंतस्वीर: Raminder Pal Singh/NurPhoto/imago images

आयोग ने यह भी कहा कि देश में निरंतर चुनाव होते हैं और ऐसे में इस तरह की किसी समिति में आयोग द्वारा कही गई कोई बात अगर बाहर आ गई तो संभव है कि लोग समझ इसे आयोग का आधिकारिक रुख समझ लें और इससे चुनावों में सभी को सामान अवसर देने की व्यवस्था में बाधा आ जाए.

विवेचना पर निर्भर

सुप्रीम कोर्ट में चुनावों में पार्टियों द्वारा मुफ्त सामान और सेवाएं देने के वादों के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई चल रही है. तीन अगस्त को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा था कि अदालत इस विषय पर चिंतित है लेकिन वो इस पर विशेषज्ञों, इससे जुड़े सभी लोगों, सरकार, आरबीआई, विपक्ष आदि सबके विचार जानना चाहेगी.

चुनाव आयोग ने उस दिन कहा था कि उसके पास इस तरह के वादे करने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करने या इस प्रक्रिया को नियंत्रित करने की कोई शक्ति नहीं है. अदालत ने आयोग के इस रवैये पर आपत्ति व्यक्त की थी और कहा था कि ये चिंताजनक विषय हैं और सरकार और आयोग ये नहीं कह सकते कि वो इस पर अपने विचार नहीं देना चाहते.

चुनाव आयोग
चुनाव आयोग खुल कर मुफ्त सामान के वादों का विरोध नहीं कर रहा हैतस्वीर: Satyajit Shaw/DW

आयोग ने अपने ताजा हलफनामे में एक तरह से अपने विचार स्पष्ट कर दिए हैं. उसने कहा कि कानूनी रूप से "फ्रीबी" या मुफ्त सामान की कोई परिभाषा नहीं है और "विवेकहीन मुफ्त सामान" की परिभाषा देना मुश्किल है क्योंकि "विवेकहीन" और "मुफ्त सामान" दोनों ही व्यक्तिपरक हैं और विवेचना पर निर्भर हैं.

आयोग ने यह भी कहा कि विशेष तबकों के लिए कुछ चीजों या सेवाओं को कम दाम पर या मुफ्त उपलब्ध करा देने के फायदों को कम कर नहीं आंका जा सकता है. साथ ही आयोग ने इस विषय पर अदालत द्वारा आयोग पर की गई टिप्पणी पर भी आपत्ति जताई.

अदालत ने कहा था कि अगर चुनाव आयोग इस विषय पर कुछ नहीं कर सकता तो "भगवान उसे बचाए." आयोग ने अदालत से शिकायत करते हुए कहा है कि इस टिप्पणी से "आयोग की मर्यादा को अपूरणीय नुकसान" पहुंचा है और यह "देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है."

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