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मुठभेड़िये खून पीते हैं, न्याय का खून

विवेक कुमार
१ नवम्बर २०१६

भोपाल में हुई मुठभेड़ पर सिर्फ शर्म आनी चाहिए. उसे जायज ठहराना अपने हाथ-पांव काट लेना है क्योंकि मुठभेड़िये खून पीते हैं, न्याय का खून.

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Kaschmir Auseinandersetzungen in Srinagar
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Tauseef

2009 में ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट आई थी. उसमें एक सब इंस्पेक्टर का बयान है. कहता है, "(एसपी) साहब लोग तो (फख्र से) बोलते हैं कि मेरे इलाके में इतने एनकाउंटर हुए. हमें तो हुक्म मानना होता है." यही होता है. भारत में मुठभेड़ करने वाला पुलिसवाला हीरो होता है. वह छाती ठोक कर बताता है, अब तक 56. और मुठभेड़ कराने वाला महाहीरो. नेता लोग पुलिस अफसरों को और अफसर लोग मातहतों को आगे बढ़ाकर नायक और महानायक बनते हैं. लेकिन, क्या भारत में कोई पुलिस पर भरोसा करता है? चाय की दुकान से लेकर सजे धजे ड्रॉइंग रूम्स तक में होने वाली आम चर्चाओं में पुलिस की छवि कैसी दिखती है? क्या वे वर्दी वाले गुंडों से ज्यादा कुछ हैं?


इन सवालों के जवाब नहीं में होने के बावजूद भोपाल जैसी मुठभेड़ों का बचाव किया जाता है. सोशल मीडिया पर आप देख सकते हैं कि एक विशाल जनसमूह 'आतंकवादियों को मारा ही जाना चाहिए' जैसे तर्क के साथ इन मुठभेड़ों का समर्थन कर रहा है. और यही तर्क सारी समस्याओं की जड़ है. एक लोकतंत्र की जनता को यह छोटी सी बात समझ नहीं आ रही है कि आतंकवादी को भी मुठभेड़ में मारना गलत है क्योंकि पुलिस का काम सजा देना नहीं है. उसका काम है अपराधियों के खिलाफ सबूत जमा करके अदालत के सामने रखना. फिर अदालत तय करेगी कि इस व्यक्ति का अपराध कितना है और सजा कितनी होगी.

और भोपाल के मामले में तो यह तर्क भी कहीं नहीं ठहरता. वे आठ युवक तो किसी पैमाने पर अपराधी या आतंकवादी नहीं थे. तीन साल से ये लड़के जेल में थे. अब तक उनका दोष साबित नहीं हुआ था और पुलिस ने उन्हें मार दिया. लोकतंत्र की जनता को एक पल दिल पर हाथ रखकर सोचना चाहिए कि अगर उनमें से एक भी मासूम था. एक भी निर्दोष था. तो उसकी मौत को कैसे जायज ठहराया जाएगा?

न्याय का पहला सिद्धांत है, सौ अपराधी छूट जाएं लेकिन एक मासूम को सजा नहीं होनी चाहिए. लेकिन यहां तो ना मुकदमा, ना सुनवाई, सीधे सजा. और सजा देने का अधिकार कुछ वर्दीधारियों को. यह न्यायतंत्र तो नहीं है. यह पुलिस राज है. और पुलिसराज में सिर्फ अन्याय होता है. सबके साथ. क्योंकि पुलिस राज में वर्दीवालों के अलावा सब अपराधी माने जाते हैं. गुलाम माने जाते हैं. ऐसे राज में मुठभेड़िये खून पीते हैं. न्याय का खून.

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