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ऋषि सुनक होंगे ब्रिटेन के पहले ब्रिटिश-भारतीय प्रधानमंत्री

स्वाति बक्शी
२४ अक्टूबर २०२२

कंजरवेटिव पार्टी ने ऋषि सुनक को अपना नया नेता चुन लिया है. अब सुनक नए प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यभार संभालेंगे. पहली बार कोई भारतवंशी ब्रिटेन का प्रधानमंत्री होगा.

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ऋषि सुनक
ऋषि सुनक होंगे पहले भारतवंशी ब्रिटिश प्रधानमंत्री तस्वीर: Jacob King/empics/picture alliance

जिस इतिहास के रचे जाने की उम्मीद सितंबर में थी वो पल आखिरकार अक्तूबर में आ ही गया. पूर्व चांसलर ऋषि सुनक ब्रिटेन के पहले ब्रिटिश-भारतीय प्रधानमंत्री होंगे. सात हफ्तों के भीतर देश के प्रधानमंत्री पद पर तीसरा चेहरा सुनक का होगा. सुनक के मुकाबले में संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स की नेता पेनी मॉरडॉन्ट नेता पद की दौड़ में थीं लेकिन अंतिम क्षणों में उन्होंने अपना नाम वापस लेते हुए ऋषि सुनक के साथ खड़े होने की बात कही.

पूर्व प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन भी रेस में थे लेकिन रविवार को जॉनसन ने समय का तकाजा कहते हुए अपनी दावेदारी छोड़ दी. पेनी मॉरडॉन्ट सोमवार दोपहर 2 बजे की समय-सीमा खत्म होने से चंद मिनट पहले तक पीछे नहीं हटीं हालांकि वो नामांकन के लिए जरूरी 100 सांसदों का समर्थन जुटा नहीं पाईं. पार्टी नेता चुनने के लिए 5 सिंतबर को खत्म हुए चुनाव में भी सुनक सांसदों की पहली पसंद थे लेकिन पार्टी सदस्यों के मतदान में उन्हें लिज ट्रस से मात खानी पड़ी थी.

अपने कार्यकाल में लगातार विवादों में रही बॉरिस जॉनसन सरकार के चांसलर पद से सुनक और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री साजिद जाविद समेत कई अधिकारियों के इस्तीफों ने अगस्त में बॉरिस जॉनसन की विदाई तय कर दी. इसके बाद ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश की लेकिन लिज ट्रस उन्हें हराकर कुर्सी हासिल करने में कामयाब रहीं. इस घटनाक्रम के 45 दिन के भीतर लिज ट्रस सरकार के मिनी-बजट ने उन पर जताए गए विश्वास को हिला दिया. आर्थिक मुसीबतों के दौर में राजनैतिक भरोसा खोने वाली लिज ट्रस को भी इस्तीफा देना पड़ा और ऋषि सुनक ने खोया हुआ मौका फिर से हासिल कर लिया है.

ऋषि सुनक
ऋषि सुनक पिछली बार भी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थेतस्वीर: Aberto Pezzali/AP Photo/picture alliance

राजनैतिक उड़ान और विवाद

बयालीस साल के सुनक की राजनीतिक उड़ान स्वप्निल कही जा सकती है. वे 2015 में कंजर्वेटिव पार्टी की परंपरागत सीट रिचमंड से चुनाव लड़ कर संसद पहुंचे. इस सीट पर कंर्जवेर्टिव विलियम हेग 1989 से 2015 में रिटायर होने तक काबिज रहे. 2018 से 2019 के बीच सुनक टेरीसा मे की सरकार में स्थानीय शासन के संसदीय अवर-सचिव बने और फरवरी 2020 में ब्रिटिश इतिहास के सबसे युवा चांसलर का पद संभाला. उन्होंने अगस्त 2022 में इस्तीफा दिया और बॉरिस जॉनसन के उत्तराधिकारी बनने का दावा पेश किया.

कुल मिलाकर लिज ट्रस के मुकाबले उनका कैबिनेट अनुभव बेहद सीमित है लेकिन कोविड-संकट के दौरान उनकी भूमिका को लेकर नजरिया सकारात्मक है. छोटे व्यवसाय और नौकरियां बचाने के लिए साल 2020 में जब 350 अरब पाउंड के सरकारी सहायता पैकेज की घोषणा हुई तो सुनक लोकप्रियता सर्वेक्षणों में चोटी पर पहुंच गए थे. हालांकि अपने छोटे से कार्यकाल में वो विवादों से बच नहीं पाए.

विवादों का साथ

लॉकडाउन के दौरान 10 डाउनिंग स्ट्रीट में हुई पार्टियों के मामले में उन पर जुर्माना लग चुका है. उनका निजी जीवन भी राजनीतिक विवादों की जद में रहा है. अप्रैल महीने में इस तरह की खबरें सामने आईं कि उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति ने ब्रिटेन में नॉन-डॉमिसाइल निवासी होने के नाम पर अपनी कुल आय पर उचित टैक्स नहीं चुकाया है. उनकी पत्नी इंफोसिस में हिस्सेदार हैं जिससे उन्हें करोड़ों रुपए की सालाना आमदनी है. इस मामले पर सुनक से अक्सर सवाल-जवाब किए जाते रहे हैं.

इसके साथ ही एक मसला है सुनक का अमेरिकी ग्रीनकार्ड जो उन्हें अमेरिका में करदाता बनाता है. इस आधार पर भी उनकी भावी मंशाओं और ब्रिटेन के प्रति वफादारी पर सवाल उठता रहा है. विश्लेषक यह भी कहते रहे हैं कि ब्रिटेन के सबसे अमीर सांसदों में से एक ऋषि सुनक का आम लोगों की जिंदगी से कोई वास्ता नहीं है. पिछले पार्टी चुनावों के दौरान हुई बहसों में उन्हें देश को प्रचंड मुद्रास्फीति के दौर में धकेलने वाला मंहगा चांसलर कहा गया हालांकि ऐसा लगता है कि लिज ट्रस के मिनी-बजट में टैक्स-कटौती और उसकी आपूर्ति के लिए भारी सरकारी कर्ज पर बाजार की प्रतिक्रिया देखने के बाद इस मसले पर राजनीतिक विरोध के सुर अब कुछ मद्धम पड़ गए होंगे.

उत्तर-भारतीय विरासत

उत्तर-भारतीय पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले ऋषि सुनक ब्रिटेन के साउथैंप्टन शहर में पैदा हुए. उनके दादा-दादी पंजाब में पैदा हुए जो भारत छोड़कर पूर्वी-अफ्रीका में जा बसे. 1960 के दशक में उन्होने ब्रिटेन को अपना घर बनाया. ऋषि सुनक के पिता यशवीर सुनक राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में डॉक्टर रहे हैं जबकि उनकी मां ऊषा फार्मासिस्ट हैं.

सुनक की स्कूली पढ़ाई ब्रिटेन के सबसे मंहगे बोर्डिंग स्कूलों में से एक विंचेस्टर कॉलेज से हुई है. बाद में उन्होने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र, राजनीति और दर्शन की पढ़ाई की. जिसके बाद अमेरिका के स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री हासिल करके उन्होने वित्तीय क्षेत्र में करियर बनाया. कुछ बरस की नौकरी के बाद सुनक ने साझेदारी में एक कंपनी खड़ी की. यही वो दौर था जब वो कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य बने. स्टैनफर्ड में ही उनकी मुलाकात अक्षता मूर्ति से हुई जो उनकी पत्नी हैं. अक्षता, भारतीय उद्यमी और सूचना-प्रौद्योगिकी कंपनी इंफोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति की बेटी हैं. ऋषि सुनक अपनी भारतीय पहचान को अपने जीवन में अहम बताते रहे हैं.

कांटों का ताज- गंभीर चुनौतियां

अपने सीमित राजनैतिक अनुभव के साथ सुनक एक ऐसे वक्त कुर्सी पर आ रहे हैं जब अपनी पार्टी समेत देश के भीतर बेहद चुनौतीपूर्ण माहौल से उनका सामना होगा. एक तरफ चांसलर के तौर पर कोविड-कार्यकाल उनके प्रति सहानुभूति जगाता है तो दूसरी तरफ उन्हें ब्रिटेन का वर्तमान ‘प्रधानमंत्री-संकट' पैदा करने से जोड़ कर देखा जाता है. पार्टी के भीतर बॉरिस जॉनसन समर्थकों का गुट उनकी नीतियों और कार्यक्रमों की राह में रोड़े अटकाएगा इसके संकेत पहले ही मिलने शुरू हो चुके हैं.

जॉनसन ने अपनी दावेदारी खारिज करते हुए रविवार को कहा कि "प्रभावी प्रशासन तब तक नहीं चलाया जा सकता जब तक संसद में पार्टी एकजुट ना हो” यानी सुनकर एक बंटी हुई पार्टी के नेता का ताज पहन रहे हैं. बीबीसी रेडियो 4 से बातचीत में जॉनसन समर्थक, सांसद क्रिस्टोफर चोप ने भी इस बात पर जोर दिया कि कंजरवेटिव संसदीय दल "पूरी तरह से बिखरा हुआ है” जिससे सुनक किसी वफादारी की उम्मीद नहीं कर सकते. अगर उन्हें काम करना है तो दोबारा आम चुनाव के जरिए जनादेश लेना होगा. आम चुनाव करवाये जाने की मांग लेबर पार्टी की तरफ से भी सुनाई दे रही है.

आर्थिक मोर्चा ऋषि सुनक की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा रहा है. उनका अपना चुनावी अभियान इसी संदेश पर टिका था कि ब्रिटेन को आर्थिक दिक्कतों से निकालने की जरूरत है और केवल वही हैं जिनके पास ऐसा करने की सूझ-बूझ है. मिनी-बजट के झटके ने ये जता दिया है कि अब जो भी कुर्सी पर आएगा उसे कठोर कदम उठाने होंगे.

आसान नहीं है ऋषि सुनक का सफर
बोरिस जॉनसन का गुट पार्टी में सुनक के लिए चुनौती पेश करेगातस्वीर: Daniel Leal/PA Wire/dpa/picture alliance

अर्थव्यवस्था और महंगाई

मंहगाई की मार ने लोगों की जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रखा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक रीटेल खरीददारी में गिरावट आई है. खाने-पीने की चीजों के दाम जिस तेजी से बढ़े हैं, उसके मुकाबले औसत आय में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. मंहगाई को काबू में करना ऋषि सुनक की सबसे बड़ी शुरूआती चुनौती है. आर्थिक चुनौतियों में बजट घाटे को कम करने की जरूरत भी है.

बीते रविवार बैंक ऑफ इंग्लैंड के पूर्व गवर्नर मर्विन किंग ने चेताया कि ब्रिटेन को आने वाले दिनों में सरकारी खर्च में कटौती का कष्टकारी दौर देखना होगा. सार्वजनिक खर्चों के लिए पैसे जुटाने के लिए टैक्स बढ़ेंगे जिसका सीधा बोझ आम आदमी की जेब पर होगा यानी मुश्किलों का लंबा दौर मुंह बाए खड़ा है. ऋषि खुद लगातार टैक्स बढ़ाने की बात करते रहे हैं. चांसलर रहते हुए उन्होने राष्ट्रीय बीमा और कॉरपोरेशन टैक्स में बढ़ोत्तरी की थी. एक और गंभीर सवाल राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा यानी एनएचएस में आर्थिक संसाधनों की कमी का भी है जिस पर लंबे वक्त से बहस जारी है लेकिन कोई ठोस बातचीत होती दिखाई नहीं दी.

देश के भीतरी हालात को प्रभावित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय कारकों में यूक्रेन युद्ध में ब्रिटिश भागीदारी और रूस का लगातार मुकाबला करने का दबाव सबसे अहम हैं. ब्रिटेन ने यूक्रेन का साथ देने की बात दोहराई है लेकिन इसका सीधा मतलब गंभीर आर्थिक दबाव झेलना है. इसके अलावा ब्रिटेन को ब्रेक्जिट के बाद यूरोपियन यूनियन कानूनों के दायरे से निकालने का वादा भी सुनक ने अपने चुनावी अभियान के दौरान किया था, जिस पर कार्रवाई करने की अब उनसे उम्मीद की जाएगी.

वर्तमान स्थिति देखते हुए ये साफ है कि ऋषि सुनक ऐसे लम्हों में देश की कमान हाथ में ले रहे हैं जहां बहुत कुछ साबित करने का मौका भी है, जरूरत भी लेकिन गंभीर चुनौतियां भी हैं. इस नाजुक वक्त में अगर वो देश की आर्थिक चिंताओं का हल करने में कामयाब हो जाते हैं तो उन्हें बाजीगर कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी.