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फ्रांस ने कहा, मुसलमानों को साथ लड़ना होगा

विवेक कुमार२ अगस्त २०१६

लगातार आतंकी हमले झेल रहा फ्रांस सख्त कदम उठा रहा है. बहस इस बात की है कि ये कदम आतंकवाद के खिलाफ हैं नहीं. सरकार चाहती है कि मुसलमान उसकी मदद करें.

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Frankreich Trauergottesdienst im französischen Rouen
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Triballau

इस्लामिक कट्टरता को लेकर फ्रांस का रुख एकदम कड़ा हो गया है. फ्रांसीसी सरकार और नेता इस बात को लेकर स्पष्ट नजर आते हैं कि देश के मुस्लिम समुदाय को इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने में अहम भूमिका निभानी होगी. प्रधानमंत्री मानुएल वाल्स और गृह मंत्री बर्नार्ड कैजेनोएवे ने हाल के दिनों में यह जाहिर कर दिया है कि इस्लामिक कट्टरपंथ को लेकर किसी तरह की ढील नहीं बरती जाएगी.

पिछले एक साल से फ्रांस में लगातार आतंकवादी हमले हो रहे हैं. यूरोप में कई हमले हुए हैं लेकिन फ्रांस में इनका कहर सबसे ज्यादा बरपा है. जनवरी 2015 से लेकर अब तक ढाई सौ से ज्यादा लोग इन हमलों में मारे जा चुके हैं. अब सरकार इस्लामिक आतंकवाद को लेकर सख्त नजर आ रही है. पिछले एक महीने में 20 ऐसी मस्जिदों को बंद कर दिया गया है जहां यह आशंका थी कि इस्लामिक कट्टरपंथ का प्रचार हो रहा है. गृह मंत्री कैजेनोएव ने यह भी बताया कि 2012 से अब तक 80 लोगों को फ्रांस से निकाला जा चुका है. एक दर्जन और लोग निष्कासन के कगार पर हैं. उन्होंने कहा, "जो लोग मस्जिदों में या प्रार्थनाघरों में नफरत का प्रचार करते हैं, उनके लिए फ्रांस में कोई जगह नहीं है. जो लोग गणराज्य के सिद्धांतों का सम्मान नहीं करते, पुरुष और महिला की बराबरी का सम्मान नहीं करते, उनके लिए यहां कोई जगह नहीं है." उन्होंने बताया कि मस्जिदों को बंद करने का फैसला इसी आधार पर लिया गया है, अब तक 20 मस्जिदें बंद की जा चुकी हैं और कुछ अन्य की तैयारी है.

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एक दिन पहले ही देश के प्रधानमंत्री मानुएएल वाल्स ने फ्रांस मेंरहने वाले मुसलमानों को चेतावनी दी थी. उन्होंने कहा, "जो लोग स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करते, उनसे लड़ने में अगर इस्लाम देश की मदद नहीं करेगा तो फिर देश भी प्रार्थना करने की आजादी नहीं दे पाएगा." हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि फ्रांस में इस्लाम की जगह है लेकिन साथ ही उन्होंने एक समझौते की अपील की जिसके तहत आतंकवाद और कट्टरपंथ से लड़ने में सहयोग लिया और दिया जा सके.

इस्लामिक कट्टरपंथ को लेकर फ्रांस लगातार सख्त कदम उठा रहा है. अब इस बारे में बात हो रही है कि फ्रांस की मस्जिदों के लिए इमाम वहीं तैयार हों. साथ ही, मस्जिदों को मिलने वाली विदेशी फंडिंग पर भी पाबंदी लगाने पर विचार किया जा रहा है. वाल्स ने कहा, "जो भी है, उसे फ्रांस के मुसलमानों और उनके प्रतिनिधियों के सामने एक दम साफ-साफ रख देने की जरूरत है. ऐसा करने के लिए, खासकर मुसलमानों की तरफ से, एक मजबूत प्रतिबद्धता की जरूरत होगी. और मेरी मुसलमानों से अपील है कि वे खुद, अपने परिवारों के साथ और अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर इस लड़ाई में शामिल हों."

हालांकि मुस्लिम समुदाय वाल्स की बातों से पूरी तरह सहमत नजर नहीं आता. बहुत से लोग मानते हैं कि इस्लामिक आतंकवाद की समस्या की जड़ इस्लाम में नहीं है. पिछले हफ्ते आतंकवादियों ने एक पादरी की हत्या कर दी थी. उस पादरी के सम्मान में आयोजित एक समारोह के बाद एक मुस्लिम संगठन के सदस्य ब्राहिम ऐत मूसा ने कहा, "ये (आतंकवादी) लोग अपराधी हैं, शराबी हैं, मनोरोगी हैं और ऐसे लोग तो कतई नहीं हैं जो मस्जिदों में जाते हैं." यूरोप वन रेडियो से बातचीत में मूसा ने कहा कि पादरी की हत्या की घटना और मस्जिदों को मिलने वाली फंडिंग में कोई संबंध नहीं है. उन्होंने कहा, "हम जानते हैं कि हत्यारों का मस्जिदों से कोई लेना देना नहीं था."

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फ्रेंच काउंसिल ऑफ द मुस्लिम फातिह के अध्यक्ष अनवर कबिबेख ने कहा कि फ्रांसीसी मुसलमान अपनी जिम्मेदारी जानते हैं. उन्होंने कहा, "जनवरी 2015 में हुए हमलों के बाद से मुसलमान अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. बहुत ठोस काम किया गया है." लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि उनकी संस्था हर विकल्प पर विचार करने को तैयार है.

लेकिन असली मुद्दा तो आतंकवाद और उसके खिलाफ लड़ाई है. फ्रांस मुस्लिम नागरिकों के साथ अपने रिश्तों को नई तरह से परिभाषित जरूर कर रहा है लेकिन इसका फायदा उस लड़ाई में होगा या नहीं, इस बात को लेकर विशेषज्ञों को संदेह है. नेशनल सेंटर ऑफ साइंटिफिक रिसर्च में इस्लामिक एक्सपर्ट स्वेरीन लबाट ने अंग्रेजी वेबसाइट द लोकल से कहा, "मुसलमानों से फ्रांसीसी राज्य के संबंध हमेशा जटिल रहे हैं. इस बारे में तो 50 साल पहले ही कुछ किया जाना चाहिए था. लेकिन जो लोग कट्टरपंथी तैयार करना चाहते हैं वे करते ही रहेंगे क्योंकि यह काम मस्जिदों में नहीं हो रहा है. युवाओं को तो इंटरनेट पर कट्टरपंथ की ओर आकर्षित किया जा रहा है."

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लबाट कहती हैं कि सरकार को यह स्पष्ट तौर पर जाहिर करना होगा कि जो भी नए नियम बनाए जा रहे हैं वे इस्लाम के खिलाफ नहीं बल्कि हर तरह के कट्टरपंथियों के खिलाफ हैं.