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जर्मनी के सिल्ट द्वीप पर रेत के चलने वाले टीले

माबेल गुंडलाख/ओएसजे१४ सितम्बर २०१६

समुद्र से आने वाली हवा में उड़कर रेत थोड़ी थोड़ी दूर पर जमा होता है, उसमें पौधे अपनी जड़ बनाते हैं और रेत का ढेर बढ़कर टीलों में बदल जाता है. और जब तेज हवा चलती है तो टीले चलने लगते हैं.

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Deutschland Neujahrsbaden auf Sylt
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Steffen

््सििुपपुमंदर के किनारे रेत सागर की विशालता का अनुभव कराते हैं. उत्तरी जर्मनी के विख्यात द्वीप सिल्ट पर रेत का मतलब है उड़ता रेत. समुद्र से आने वाली हवा में उड़कर रेत थोड़ी थोड़ी दूर पर जमा होता है, उसमें पौधे अपनी जड़ बनाते हैं और रेत का ढेर बढ़कर टीलों में बदल जाता है. और जब तेज हवा चलती है तो टीले चलने लगते हैं. इन चलने वाले रेत के टीलों ने हजारों सालों से द्वीप को बचाए रखा है. ये कहना है सिल्ट पर रहने वाले तटरक्षा विशेषज्ञ कार्स्टेन राइजे का. तटों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रंबध किए बिना भी हजारों सालों से ये काम करता आया था. फिर सिल्ट के लोगों ने टीलों को पक्का करना शुरू किया ताकि उनके घर रेत के तूफान से बच सकें.

आजकल तटों को सैकड़ों टन कंक्रीट से सुरक्षित किया जा रहा है. जर्मनी के सिल्ट द्वीप के दक्षिणी छोर पर, जहां समुद्र खासकर किनारों की कटाई कर रहा है, ये विशालकाय ढांचे तट की रक्षा के लिए रखे गए हैं. अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के कार्स्टेन राइजे कहते हैं, "यहां एकदम दक्षिण में लोगों ने सोचा कि हम इस तरह के कंक्रीट के विशाल ढांचों से होरनुम में घरों को को बचा सकते हैं. इससे सचमुच मोहल्ले का यह फायदा हुआ कि वे रेत को यहां रोक पाए, लेकिन इसका दूसरा असर ये हुआ कि द्वीप के और दक्षिण में रेत नहीं पहुंच पाया और वहां इसकी कमी हो गई. नतीजा यह हुआ है कि जबसे यह ढांचा यहां है द्वीप का दक्षिणी कोना छोटा होता गया है."

देखिए, खतरे में हैं कुदरत के अजूबे

तट की रक्षा में द्वीप के चारों ओर फैला समुद्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. समुद्रविज्ञानी ज्वार भाटे में डूबने वाले समुद्री इलाके पर नजर रखते हैं और इस बात की जांच करते रहते हैं कि ज्वार भाटे के दौरान आने और फिर लौटने वाला पानी किस तरह तट पर रेत और कीचड़ छोड़ जाता है. सोनिक और अन्य उपकरणों की मदद से समुद्र की मिट्टी की जांच करते हैं. तलछट में जमा होने वाली मिट्टी को किसी किताब की तरह पढ़ा जा सकता है. अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट की स्वेन्या पापेनमायर बताती हैं, "हमारे यहां ये हुआ है कि घटना तेजी से होने लगी हैं, तूफान जल्दी जल्दी आने लगे हैं, देर तक टिकते हैं और पहले से ज्यादा मजबूत हैं. और स्वाभाविक रूप से इसका असर समुद्र के तल पर हुआ है, तलछट पर हुआ है, जिसका असर तट की सुरक्षा पर भी होता है."

द्वीप और तटीय पानी के आपसी संबंध को समझने के लिए वैज्ञानिक नियमित रूप से समुद्रतल से सैंपल जमा करते हैं. क्योंकि माप उपकरणों से इकट्टा की गई जानकारी कभी कभी धोखा देने वाली साबित हो सकती है. स्वेन्या पापेनमायर कहती हैं कि उत्तरी सागर में लेनिस कीड़े होते हैं जो रेत और शीपियों के टुकड़ों से तट पर पाइप जैसा आकार बनाते हैं. और जब जमीन में छुपे होते हैं तो वे मिट्ट के सिग्नल को बेढंगा कर देते हैं. तब हमें अपने डाटा में एकदम अलग तरह का सिग्नल मिलता है, जो इन कीड़ों के वहां न होने से मिलता.

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रेत को रोकने से तटीय तलछट में कमी हो जाती है, क्योंकि वह वहां तक रेत नहीं पहुंचता. अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक रूने मिषाएलिस के मुताबिक पर्यावरण परिवर्तन की वजह से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और ज्वार भाटे में आने वाला कीचड़ भी नहीं आता इसलिए संभव है कि इसकी वजह से दूरगामी रूप से इकोसिसस्टम को नुकसान पहुंचेगा.

सिल्ट तट पर दीवार खड़ी कर रक्षा नहीं की जा सकती. तो क्या प्राकृतिक तटीय सुरक्षा पर वापसी सही उपाय है? कार्स्टेन राइजे प्रकृति से लड़ने के बदले समझौता करने की वकालत करते हैं. वह कहते हैं, "हम धीरे धीरे चलने वाले रेत के टीलों के साथ क्यों नहीं जी सकते? आज के जमाने में घरों को खिसकाना या उन्हें ऐसे बनाना कि उन्हें खिसकाया जा सके, असंभव नहीं है. मुझे मालूम है कि सिल्ट की महंगी जमीन के साथ यह मुश्किल है. लेकिन इंसानी समझौता करना ज्यादा आसान है, बनिस्पत इसके कि उत्तरी सागर से कहा जाए, ऊपर चढ़ना बंद करो."

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लेकिन खिसकाये जा सकने वाले घरों से द्वीप के निवासी सहमत नहीं हैं. टूरिज्म से होनेवाली आमदनी को देखते हुए वे सुरक्षा के जाने माने उपायों पर भरोसा कर रहे हैं. आने वाले सालों में भी वे जहां जरूरत पड़ी वहां सुरक्षा के कदम उठाना और रेत डालना जारी रखेंगे.

तस्वीरों में: खोते द्वीप की खूबसूरती