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ज्यादा डरावनी होगी हवाई यात्रा

ओंकार सिंह जनौटी१३ सितम्बर २०१६

हवाई यात्रा के दौरान तेज झटके लगने और घायल होने का खतरा लगातार बढ़ रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन अब 12,000 मीटर ऊपर भी असर दिखा रहा है.

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तस्वीर: Reuters/F. Bensch

यूनाइटेड एयरलाइंस की फ्लाइट 880 में 200 से ज्यादा मुसाफिर सवार थे. विमान लंदन पहुंचने ही वाला था कि अचानक तेज झटके लगने शुरू हुए. इससे पहले कि लोग बैठकर सीट बेल्ट बांध पाते, झटके और तेज हो गए. कुछ लोग हवा में झूलते हुए विमान की छत से टकरा गए. कुल 23 यात्री घायल हुए.

बोइंग 767-300 विमान को आयरलैंड में इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी. कोई गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ लेकिन टरब्यूलेंस के चलते हर किसी का कलेजा मुंह में जरूर आ गया. विशेषज्ञों का कहना है कि ताकतवर झटकों की लगातार बढ़ रही घटनाएं आने वाले दिनों में और ज्यादा सामने आएंगी.

रॉयल सोसाइटी के रिसर्चर डॉक्टर पॉल विलियम्स कहते हैं, "यह दावा किया जा सकता है कि साफ आसमान के बावजूद ताकतवर एयर टरब्यूलेंस के वाकये बढ़ेंगे, ऐसा टरब्यूलेंस बिना किसी चेतावनी के आता है. स्ट्रोसोफीयर पर जलवायु परिवर्तन के असर की वजह से ऐसा होगा. पिछले दशकों में तेज टरब्यूलेंस के मामले लगातार बढ़ते गए हैं. वातावरण में कार्बन डाय ऑक्साइड बढ़ रही है और इसके चलते झटके भी बढ़ रहे हैं."

(देखिये सबसे सुरक्षित एयरलाइंस)

आधुनिक यात्री विमान 10 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर आराम से उड़ते हैं. विलियम्स के मुताबिक उस ऊंचाई पर सीओटू की ज्यादा मात्रा का तामपान पर असर पड़ता है. आकाश में नजर न आने वाली कई परतें बन जाती हैं. इन परतों में हवा अलग अलग रफ्तार में बहती है. जैसे ही विमान अलग अलग रफ्तार वाली हवा के संपर्क में आता है, वैसे ही झटके लगने लगते हैं. पायलटों को यह परतें दिखाई भी नहीं पड़ती हैं. विलियम्स कहते हैं, "अगर असर बहुत शक्तिशाली हो तो गुरुत्वबल का असर कुछ देर के लिए खत्म सा हो जाता है और लोग अपनी सीट से उछल जाते हैं."

1982 से 2003 के बीच जितने लोग टरब्यूलेंस के चलते घायल हुए, उनके मुकाबले 2006 में दोगुने लोग घायल हुए. विलियम्स के मुताबिक कई शोधों में यह बात साफ हो चुकी है कि शक्तिशाली टरब्यूलेंस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. विमान बनाने वाले इंजीनियर चमकने वाली अल्ट्रावॉयलेट लाइट की मदद से अदृश्य परतों को पकड़ने में सफल हुए हैं. लेकिन फिलहाल यह तकनीक बहुत महंगी है. अब सवाल उठता है कि सस्ते टिकट बेचने की होड़ में फंसा एयरलाइन उद्योग क्या अल्ट्रावॉयलेट डिटेक्शन सिस्टम में निवेश करेगा. विलियम्स के मुताबिक अगर सीओटू के उत्सर्जन को कम किया जाए तो प्राकृतिक तरीके से इस समस्या से निपटा जा सकता है.

(हवाई सफर में चमत्कार माने जाने वाले पल)