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कातिल कैसे बनते हैं, उसके दिमाग में झांकिए

केर्स्टेन क्निप/ईशा भाटिया२९ जुलाई २०१६

ऐसा क्या होता है कि लोग हथियार लिए निकल पड़ते हैं औरों की जान लेने?

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Symbolbild Angst Depression
तस्वीर: Fotolia/lassedesignen

जर्मनी के म्यूनिख में हुआ हमला भी कुछ कुछ अमेरिका में होने वाले हमलों की ही याद दिलाता है. 18 साल के एक स्कूली छात्र ने एक मॉल के बाहर लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं. यूरोप में इस तरह की घटना कम ही देखने को मिलती है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह अपनी तरह का पहला मामला रहा हो. पांच साल पहले नॉर्वे में एक उग्रदक्षिणपंथी ने इसी तरह का हमला कर 77 लोगों की जान ले ली थी.

"रोल मॉडल" की नकल करते हैं

हमने समझना चाहा कि इस तरह का ख्याल लोगों के दिमाग में आता कैसे है, एक "मास मर्डरर" के दिमाग में आखिर क्या कुछ चल रहा होता है. इसके लिए हमने बात की एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की शेरी टावर्स से, जो मास शूटिंग के आंकड़े जमा करती रही हैं और उन पर शोध कर रही हैं. उन्होंने हमें बताया कि जब भी कभी इस तरह की कोई खबर आती है, तो उससे बहुत से लोगों के मन में मास मर्डर का ख्याल आने लगता है. चार से अधिक लोगों की जान लेने पर उसे "मास मर्डर" का नाम दिया जाता है. टावर्स के अनुसार यह असर 13 दिनों तक रहता है.

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इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभाता है मीडिया. टावर्स के अनुसार जब भी मीडिया में आत्महत्या या कत्ल की खबर छपती है, तो वह खास कर स्कूली छात्रों पर बड़ा असर छोड़ती है, वे उस बारे में सोचने लगते हैं और उसी को दोहराने की योजना भी बनाने लगते हैं. इतना ही नहीं, मास मर्डर करने वालों में नकल करने की भी प्रवृत्ति होती है. वे उन लोगों के बारे में पढ़ते हैं, जिन्होंने मास मर्डर किए हैं, उन्हें अपना रोल मॉडल बना लेते हैं और उनसे भी "बेहतर प्रदर्शन" करने की ठान लेते हैं.

पूरी प्लानिंग के साथ हमला

जर्मनी में वकालत करने वाली ब्रिटा बानेनबर्ग अपराध विशेषज्ञ हैं. वह बताती हैं कि कातिल कई हफ्तों पहले ही तैयारी शुरू कर देता है. ऐसा देखा गया है कि इस तरह के लोग अधिकतर डायरी लिखते हैं, जिसमें वे वारदात की हर बारीकी को समझाते हैं, वे उसके इर्दगिर्द एक कहानी रचते हैं. वो यह भी सोचते हैं कि वारदात को अंजाम देते वक्त वो क्या पहनेंगे, सुसाइड नोट लिखते हैं. हथियार पास हो, तो उसके साथ खेलते रहते हैं, ना हो, तो उसकी कल्पना करते हैं. बानेनबर्ग बताती हैं कि ये लोग अच्छी खासी रिसर्च भी करते हैं, "वो इस तरह की अन्य घटनाओं के बारे में पढ़ते हैं, डॉक्यूमेंट्री देखते हैं, वीडियो देखते हैं." इस सबका मकसद पुरानी घटनाओं की नकल करना और योजना बनाना होता है. इसके अलावा वो ऐसी वीडियो गेम भी खेलते हैं जिसमें उन्हें लोगों पर गोलियां चलानी हों.

आपको क्या लगता है, क्यों होते हैं बलात्कार?

लॉरेन कोलमन ने तो नकल करने की प्रवृत्ति पर "द कॉपीकैट इफेक्ट" नाम से किताब भी लिखी है. उनका मानना है कि मीडिया इस तरह की घटनाओं को रिपोर्ट करने के लिए जिस तरह की शब्दावली इस्तेमाल करता है, उसका भी काफी असर होता है. कोलमन का मानना है कि मीडिया को "सफल" या "विफल" हमले की बात नहीं करनी चाहिए और ना ही हमलावर को "बेचारा" या "अकेला" बता कर उसके साथ संवेदना दिखानी चाहिए. ऐसा कर मीडिया अनजाने में ही हमला करने के लिए बढ़ावा देने लगता है. मास मर्डर करने वाले चाहते हैं कि उनकी कहानी बयान की जाए, लोग उनके साथ सहानुभूति दिखाएं. उन्हें रोकने के लिए इससे बचना जरूरी है.