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स्वीडन में महिलाओं की बराबरी के लिए बड़ी कोशिश

महेश झा
१७ मई २०१७

महिला समानता के मामले में स्वीडन को दुनिया भर में अगुआ माना जाता है, लेकिन वहां भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक समस्या है. अब देश की सरकार ने समस्या से निबटने के लिए एक व्यापक कार्यक्रम बनाया है.

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Brasilien Proteste in Brasilia nach Gruppenvergewaltigung
तस्वीर: Reuters/U. Marcelino

स्वीडन को महिलाओं और पुरुषों की समानता के मामले में राह दिखाने वाला माना जाता है और वहां की सरकार को विश्व की पहली महिलावादी सरकार कहा जाता है. आश्चर्य नहीं वहां महिलाओं का वेतन पुरुषों की तुलना में ज्यादा है और संसद में भी आधी सीटों पर महिलाएं हैं. लेकिन दूसरी ओर यह भी सच है कि यूरोपीय संघ के एक सर्वे के अनुसार हर दूसरी महिला का सामना हिंसा से हुआ है, जबकि यूरोप के स्तर पर हर दसवीं महिला ने हिंसा से सामना होने की बात कही है.

आबादी के लिहाज से दुनिया भर में बलात्कार के सबसे ज्यादा मामले स्वीडन में ही देखने को मिलते हैं. जब भी बलात्कार पर बहस होती है तो भारत जैसे देशों में अपने नकारेपन पर पर्दा डालने के लिए विकसित देश स्वीडन का भी हवाला दिया जाता है. स्वीडन की सरकार दलील देती है कि देश में बलात्कार के मामले इसलिए ज्यादा हैं कि पिछले दस साल की नीतियों के चलते एक ओर पीड़ित सामने आने में डरते नहीं हैं, तो दूसरी ओर वहां ऐसे मामलों को भी बलात्कार की श्रेणी में रखा जाता है जो दूसरे देशों में बलात्कार नहीं हैं. मसलन पति द्वारा साल भर हर रोज पत्नी के बलात्कार की शिकायत पर उसे बालात्कार के 365 मामले गिना जाता है.

समाज में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दों पर व्यापक चर्चा के बावजूद स्वीडन की समानता मंत्री ऑसा रेग्नियर मानती हैं कि महिलाओं पर पुरुषों की हिंसा व्यवस्थागत समस्या है. स्वीडन में पिछले दस पंद्रह साल से छोटे स्तर पर स्कूलों में समानता, हिंसा और एक दूसरे के आदर जैसे विषयों पर परियोजनाएं चलती रही हैं. सरकार ने अब उन्हें मिलाकर राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने का फैसला किया है.

यह कार्यक्रम किंडरगार्टनों, स्कूलों, स्पोर्ट क्लबों और दफ्तरों में चलाया जायेगा. समानता मंत्री ऑसा रेग्नियर कहती हैं, "क्योंकि इसका मकसद हिंसा को रोकना है, लेकिन समानता लाना भी है. समानता दरअसल आजादी का प्रोजेक्ट है, महिलाओं के लिए भी और पुरुषों के लिए भी." यूनिवर्सिटी में महिलाओं के खिलाफ पुरुषों की हिंसा को अनिवार्य विषय बना दिया गया है.

समानता मंत्री ऑसा रेग्नियर इसे सामाजिक समस्या मानती हैं जिनका मकसद पुरुषों द्वारा महिलाओं पर नियंत्रण करना है. उनकी सरकार महिलाओं की सुरक्षा की संरचना बनाना चाहती हैं ताकि उन्हें हिंसा का शिकार न बनना पड़े. सामाजिक समस्याओं का समाधान समाज ही कर सकता है, लेकिन सरकारें उसके लिए ढांचा बनाती हैं और स्वीडन की मौजूदा सरकार फिलहाल यही कर रही है.

स्वीडन की सरकार इस विषय को हर स्तर पर पढ़ाना चाहती है और इसे मुद्दा बनाना चाहती है. अब डॉक्टरों, शिक्षकों, पुलिस और मनोवैज्ञानिकों के लिए महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बारे में ज्ञान अनिवार्य होगा. खासकर सभी महिलाओं के लिए रोजगार का मतलब उनका स्वाबलंबी होना भी होगा.

इस बीच अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं को राजनीतिक और आर्थिक अधिकार दिये बगैर किसी देश का पूरी तरह लोकतांत्रिक होना संभव नहीं. स्वीडन, ताइवान और अमेरिका के शोधकर्ताओं ने पश्चिम एशिया के देशों के अध्ययन के बाद कहा, "यह खासकर अरब वसंत के देशों में दिखता है जहां महिला अधिकारों को बढ़ावा देने में विफलता ने इलाके में लोकतांत्रिक शासन में बाधा डाली है."

यूरोपियन जर्नल ऑफ पोलिटिकल रिसर्च में प्रकाशित लेख में शोधकर्ताओं का कहना है कि अतीत में जब किसी देश में लोकतांत्रिक संविधान लागू किया गया तो वहां महिलाओं और पुरुषों के लिए संपत्ति, अभिव्यक्ति की आजादी और बंधुआ मजदूरी की समाप्ति जैसे नागरिक अधिकार ऊंचे स्तर पर मौजूद थे. शोधकर्ताओं के अनुसार "यह रुझान 1900 के बाद से 177 देशों में देखी जा सकती है जिनका अध्ययन किया गया है."