1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दुनिया की सबसे लंबी भूख हड़ताल खत्म

प्रभाकर९ अगस्त २०१६

दुनिया की सबसे भूख हड़ताल खत्म हो गई है. इरोम शर्मिला ने 16 साल बाद उपवास तोड़ दिया है. लोग खुश हैं तो दुखी भी हैं.

https://p.dw.com/p/1Jegm
Sharmila Chanu Iron Lady Manipur Menschenrechtlerin
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मणिपुर की आयरन लेडी के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला ने अपना रास्ता जरूर बदला है, मंजिल नहीं. उनकी मंजिल इस उग्रवादग्रस्त राज्य से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को खत्म करना है. लेकिन अब वे मुख्यमंत्री की कुर्सी बैठ कर इस लक्ष्य को हासिल करेंगी. इस अधिनियम के खिलाफ बीते 16 वर्षों से भूख हड़ताल पर बैठीं इरोम ने मंगलवार को अपना अनशन तोड़ दिया. इससे पहले एक स्थानीय अदालत ने निजी मुचलके पर उनको रिहा करने का निर्देश दिया. इस बीच, इरोम के फैसले पर राज्य के लोग विभाजित हैं.

भूख हड़ताल

इरोम की भूख हड़ताल दुनिया में अपने किस्म की पहली हड़ताल थी. उन पर आत्महत्या का प्रयास करने का मामला दर्ज किया गया था और नाक से जबरन तरल भोजन दिया जाता था. इसके लिए राजधानी इंफाल के एक सरकारी अस्पताल में ही इरोम को नजरबंद किया गया था. उन्होंने बीते महीने ही अचानक अपनी 16 साल लंबी भूख हड़ताल खत्म करने, शादी कर घर बसाने और अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. उनके इस फैसले से राज्य के लोगों के साथ पूरी दुनिया भी हैरत में पड़ गई थी. इसकी वजह यह थी कि वे बार-बार कहती रही थीं कि राज्य से उक्त अधिनियम खत्म नहीं होने तक वे अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगी. उनके फैसले के बाद इस बारे में तमाम कयास लगाए जाने लगे.

इरोम ने अपनी भूख हड़ताल खत्म करने के मौके पर कहा, 'मैं 16 साल से भूख हड़ताल पर थी. लेकिन आज इसे खत्म कर रही हूं. अब मैं आंदोलन का तरीका बदल रही हूं.' उन्होंने कहा कि अगले साल चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बनने के बाद वह सबसे पहले इक्त अधिनियम को खत्म करेंगी. इस लौह महिला ने कहा कि लोग कहते हैं कि राजनीति गंदी चीज है. लेकिन समाज भी तो ऐसा ही है.

जानें, भारत के सबसे विवादित कानूनों के बारे में

अपने लंबे आंदोलन के दौरान इरोम ने कई प्रधानमंत्रियों से मुलाकात करने का प्रयास किया था. लेकिन कोई भी प्रधानमंत्री उनसे मुलाकात के लिए तैयार नहीं हुआ. वर्ष 2006 में दिल्ली के जंतर-मंतर पर आमरण अनशन के लिए उनके खिलाफ आत्महत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया गया था.

मंगलवार सुबह इरोम को अस्पताल से अदालत ले जाया गया. वहां इरोम के अपना आंदोलन खत्म करने के हलफनामे के बाद अदालत ने उनको 10 हजार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा कर दिया. अदालत ने उनसे आत्महत्या का प्रयास करने के मामले में अपनी गलती कबूल करने को भी कहा. लेकिन शर्मिला ने इससे इंकार कर दिया. अब इस मामले की अगली सुनवाई 23 अगस्त को होगी. इरोम को अदालत में पेश करते समय वहां सुरक्षा का भारी इंतजाम किया गया था. वहां स्थानीय लोगों और मीडिया की भी भारी भीड़ थी. इरोम ने अदालत से बाहर निकलने के बाद मीडिया से बातचीत की.

विभाजित हैं लोग

इरोम के इस फैसले पर स्थानीय लोग और संगठनों की अलग-अलग राय है. कोई इसका समर्थन कर रहा है तो कोई विरोध. राज्य के कई उग्रवादी संगठनों ने तो इरोम को अपना आंदोलन खत्म नहीं करने की चेतावनी दी है. राजधानी इंफाल के बाहरी हिस्से में बसे उनके गांव मालोम में शर्मिला की हैसियत किसी भगवान से कम नहीं है. इसी गांव में 10 बेकसूर लोगों की हत्या के बाद इरोम ने अपना आंदोलन शुरू किया था. उनलोगों के परिजन शर्मिला के समर्थन में हैं. उक्त घटना में अपना पुत्र खोने वाले 70 साल के समरेंद्र सिंह कहते हैं, 'इरोम का त्याग कभी भुलाया नहीं जा सकता. हमें उनके इस फैसले का सम्मान करना चाहिए.' स्थानीय लोगों को संदेह है कि राजनीति में जाकर इरोम अपनी मंजिल में तक पहुंचने में कामयाब होंगी या नहीं? उनके गांव की एक महिला चेलसिया कहती हैं, ' हमें उन पर पूरा भरोसा है. लेकिन राजनीति की काली कोठरी में जाकर वह कब तक बेदाग रहेंगी, यह कहना मुश्किल है.'

राजद्रोह क्या है, तस्वीरों में जानिए

कई लोग शर्मिला के फैसले को उनके बॉयफ्रेंड डेसमंड कूटिंहो से जोड़ कर देख रहे हैं. लोगों का कहना है कि डेसमंड की वजह से ही इरोम ने अपना आंदोलन खत्म करने का फैसला किया. एक महिला ईमा कहती हैं, 'डेसमंड भारत सरकार का जासूस है. सरकार ने हर तरफ से थकहार कर इरोम का आंदोलन खत्म कराने के लिए डेसमंड का सहारा लिया है.' एक कालेज छात्रा मनोरमा सवाल करती हैं कि इरोम ने उक्त अधिनियम खत्म नहीं होने तक आंदोलन जारी रखने का फैसला किया था. वह अधिनियम तो जस का तस है. फिर उन्होंने अचानक अपना आंदोलन खत्म क्यों कर दिया?

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इतने लंबे अरसे से आंदोलन के बावजूद कोई कामयाबी नहीं मिलने की वजह से इरोम शायद आजिज आ गई थीं. यह उनका निजी फैसला है. सामाजिक संगठनों ने कहा है कि विशेषाधिकार अधिनियम के खिलाफ लड़ाई इरोम से पहले भी चल रही थी और आगे भी जारी रहेगी. पर्यवेक्षकों के मुताबिक, राजनीति में उतरने के इरोम के फैसले से राज्य की राजनीति में बड़े पैमाने पर उथल-पुथल तय है.