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चीन की सड़क से नेपाल में आई बदलाव की बयार

वीके/एमजे (एएफपी)३१ अगस्त २०१६

नेपाल के भूले-बिसरे दूर-दराज के इलाके को चीन से आई सड़क ने पूरी तरह बदल दिया है. अब वहां बदलाव की बयार बह रही है.

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Nepal Transport und Handel in der Nähe zu China
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Mathema

अपर मुस्तांग कभी समृद्ध हुआ करता था और हिमालय तथा भारत के बीच व्यापार का केंद्र था. लेकिन समय के साथ उसका महत्व गिरता गया और वह नेपाल का एक भूला-बिसरा इलाका बन गया. लोग कहते थे कि यह एक श्रापित इलाका है. बहुत अधिक ऊंचाई पर एक उजाड़ रेगिस्तान में किसी की दिलचस्पी नहीं थी. वहां के लोग बस जी रहे थे, बेमकसद और भूले हुए. फिर वहां एक सड़क आई. चीन की ओर से आई इस सड़क के रास्ते एक नई दुनिया आई. एक नई जिंदगी, जिसमें खुशहाली थी, उमंगें थीं और बदलाव की बयार थी.

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1992 तक तो इस इलाके में विदेशियों के आने पर पाबंदी थी. पूर्व बौद्ध राज्य के अपर मुस्तांग इलाके में चीन की ओर से आई सड़क ने सच में जिंदगी को बदल दिया है. लाल पहाड़ियों वाले दूर-दराज के इस इलाके के लोग एक लोककथा सुनाते हैं. उनके अनुसार तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक ने यहां एक राक्षस को मारा था. उसी के खून से ये चोटियां लाल हुईं. हाल ही में अपर मुस्तांग को चीन से जोड़ता हाईवे पूरा हुआ है. और अब यहां बदलाव के संकेत देखे जा रहे हैं. कभी पारंपरिक तिब्बती पोशाक पहनने वाले युवा अब डेनिम जीन्स में देखे जा सकते हैं. स्थानीय कैफे चहल-पहल से खुश नजर आते हैं. हाल ही में फ्रांस में हुए यूरो 2016 का कई कैफे सीधा प्रसारण दिखाकर पैसे कमा रहे थे.

लो मंथंग मध्य युग में इस इलाके की राजधानी थी. यह दीवारों से घिरी हुई थी. अब भले ही आधुनिकता की बयार बहने लगी हो और चीन का असर बढ़ रहा हो लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो परंपराओं को, पुराने जीवन को बचाए रखना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि पुराने मूल्य और संस्कृति बची रहे. स्थानीय लोबा समुदाय के लिए यह संस्कृति बहुत अहमियत रखती है.

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बौद्ध लोग जो भाषा बोलते हैं वह तिब्बती भाषा का ही एक रूप है. वे लोग सदियों से यहां रह रहे हैं. अब ये लोग अपनी संस्कृति के संरक्षण में जुटे हैं. दीवारों पर बने चित्रों को बचाने से लेकर ऐतिहासिक इमारतों तक के संरक्षण का काम चल रहा है. वक्त की मार इन इमारतों पर पड़ चुकी है. अब नेपाल की कई समाजसेवी संस्थाएं और कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं मिलकर काम कर रही हैं. इन्हीं संस्थाओं में एक है

लो ग्यालपो जिग्मे फाउंडेशन, जिसके अध्यक्ष अपर मुस्तांग के पूर्व राजा हैं. वह इमारतों को बचाने में लगे हुए हैं. मिट्टी से बनी दीवारें हवा और बारिश की मार से भुरभुरा गई हैं. लकड़ी की छतें गिरने लगी हैं. मिट्टी के दीयों से निकले धुएं ने घर के अंदर दीवारों पर बने चित्रों को काला कर दिया है.

एक दशक से ये संस्थाएं संरक्षण के काम में लगी हुई हैं. काले पड़ चुके चित्रों को साफ किया जा रहा है. जो पेंटिंग्स खराब हो चुकी हैं उन्हें बौद्ध स्टाइल में दोबारा बनाया जा रहा है. बौद्धों का मानना है कि टूटी मूर्तियों और खराब चित्रों की पूजा नहीं करनी चाहिए. इसलिए इन्हें संवारने और संभालने को वे अपना फर्ज मानकर जुटे हुए हैं.

बीते साल नेपाल में आए भयंकर भूकंप में कई बौद्ध मठ गिर गए थे. लो मंथांग में भी कई मठों को भारी नुकसान पहुंचा था. अब उन्हें भी ठीक करना है. आधुनिकता की बयार में आए साधन इस काम में भी मददगार साबित हो रहे हैं. अपर मुस्तांग बदल रहा है.

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