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उड़ी हमला कमजोर करेगा पाकिस्तान की दलीलें?

शामिल शम्स/एके१९ सितम्बर २०१६

भारत ने कश्मीर में उड़ी हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ बताया है. उसने इससे इनकार किया है. लेकिन इस हमले के बाद कश्मीर पर उसका रुख कमजोर हो सकता है.

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Indien Srinagar Unruhen Opfer Zivilisten
तस्वीर: Reuters/C. McNaughton

रविवार को चरमपंथियों ने भारतीय सेना के एक ठिकाने पर हमला किया जिसमें 20 सैनिक मारे गए और 25 से ज्यादा जख्मी हो गए. भारत ने इस हमले के लिए सीधे तौर पर पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है. वैसे कश्मीर में चरमपंथी कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद से हालात खराब हैं. वहां प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 से ज्यादा लोग मरे जा चुके हैं और घाटी के कई इलाकों में महीनों से कर्फ्यू है. कश्मीर के सिलसिले में भारतीय सेना पर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं.

लेकिन रविवार के हमले के बाद हो सकता है कि सबका ध्यान इस मुद्दे से हटकर विदेशी आतंकवाद की तरफ चला जाए. वैसे भारत तो कश्मीर में प्रदर्शनों के पीछे भी पाकिस्तान और पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों का हाथ बताता रहा है. भारत की सिविल सोसाइटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा है कि कश्मीरी अलगावादियों के साथ बात की जाए लेकिन सरकार का कहना है कि अलगाववादी आंदोलन को पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा है इसलिए बातचीत नहीं बल्कि कार्रवाई जरूरी है. उधर पाकिस्तान का कहना है कि वो सिर्फ कश्मीरियों को कूटनीतिक समर्थन देता है.

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जानकार कहते हैं कि उड़ी हमले से पाकिस्तान की भूमिका को लेकर भारत के आरोपों को समर्थन मिलेगा. कश्मीर पर एक भारतीय विशेषज्ञ वरद शर्मा कहते हैं, “जम्मू कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को पाकिस्तान हवा देता है. पाकिस्तान में इतने आतंकवादी हमले हुए हैं, उसके हजारों लोग मारे गए हैं बावजूद इसके वो आतंकवाद को रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करता है.”

वरद कहते हैं, “पाकिस्तान की सरजमीन से जिहादी तत्व लगातार सक्रिय हैं. इतिहास हमें बताता है कि कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी या तो स्थानीय कश्मीर युवक हैं या फिर वो पाकिस्तान से आए लोग हैं.”

उड़ी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ना तय है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर के मुद्दे को उठाएंगे, लेकिन उड़ी हमले में भारतीय सैनिकों की मौत के कारण उनकी दलीलें कमजोर पड़ सकती हैं. वहीं भारत इस मौके का इस्तेमाल पाकिस्तान को ‘आंतकवादी राष्ट्र' के तौर पर पेश करने के लिए कर सकता है.

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हांगकांग स्थित एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन में सीनियर रिसर्चर बशीर नवीद कहते हैं कि अगर कश्मीर मुद्दा नहीं सुलझाया गया तो इससे भारत और पाकिस्तान, दोनों जगह कट्टरपंथी समूह फायदा उठाते रहेंगे. वो कहते हैं कि दोनों देशों के दक्षिणपंथी तत्व लड़ाई और दुश्मनी चाहते हैं लेकिन दोनों देशों के नेतृत्व को बैठक इस विवाद को सुलझाना चाहिए.

वहीं भारत में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि भारत कश्मीर के मौजूदा हालात के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहरा कर पल्ला नहीं झाड़ सकता है. नई दिल्ली में एक वामपंथी कार्यकर्ता सुमति पन्निकर ने डीडब्ल्यू से कहा, “भारत सिर्फ बंदूक और सेना की ताकत के दम पर कश्मीर में कायम है. वहां लोग अब बंदूक से नहीं डरते हैं.”

कुछ इसी तरह की बात लेखक और पत्रकार आदित्य सिन्हा भी कहते हैं, “69 साल हो गए लेकिन भारत कश्मीरियों का भरोसा नहीं जीत पाया. दिल्ली में इस बात से इनकार नहीं है कि समस्या है, लेकिन ये किसी को नहीं पता है कि जमीन पर मौजूद लोगों के साथ मिल कर इसे कैसे सुलझाया जाए.”

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दूसरी तरफ पाकिस्तानी कश्मीर में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष तौकीर गिलानी कहते हैं कि सबसे अच्छा ये होगा कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही कश्मीर से हट जाए. उनके मुताबिक, “हम चाहते हैं कि कश्मीरी लोगों की इच्छा के मुताबिक कश्मीर मसला हल हो. भारत और पाकिस्तान दोनों को अपने अपने नियंत्रण वाले कश्मीर के इलाकों से अपने सैनिक हटाने का ऐलान करना चाहिए और फिर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की निगरानी में जनमत संग्रह होना चाहिए.”

लेकिन बहुत से कश्मीरी विश्लेषक निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना नहीं देखते. उनका कहना है कि उग्रवाद और अलगावादियों के साथ सख्ती से पेश आने की रणनीति कहीं न कहीं काम तो कर रही है, लेकिन देर सबेर भारत को इस संकट का कोई न कोई तलाशना ही होगी. और जहां तक भारत से अलग होने की बात है तो उसकी कोई संभावना नहीं दिखती.

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