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अब भी बची हैं वारसॉ घेटो में दफन हुए शहर की यादें

१७ अप्रैल २०२३

एक बच्चे का जला हुआ जूता, जली हुई प्रैम, रसोई के टूटे फूटे सामान; ये सब निशानियां हैं उन यहूदियों की जो पोलैंड की राजधानी में रहे, उससे प्यार किया और वहीं मारे गये. इस शहर के नीचे उस दौर की पीड़ा को समेटे एक और शहर है.

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वारसॉ घेटो की निशानियां
ये स्मारक उस जगह बना है जहां विद्रोहियों के नेता ने सामूहिक आत्महत्या की थीतस्वीर: Wojtek Radwanski/AFP

वारसॉ में वारसॉ घेटो म्यूजियम के सहयोग से लगाई गई नुमाइश में नाजी जर्मन आतंक के खिलाफ यहूदियों के विद्रोह के दौर की कहानियां दिखाई गई हैं. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यहूदियों की रिहायश रहे इलाकों से इन चीजों को हाल ही में खोजा गया है. प्रदर्शनी के को क्यूरेटर याचेक कोनिक ने कहा, "वारसॉ एक नहीं बल्कि दो शहर हैं: एक जो हम आज देखते हैं और दूसरा जो इसके नीचे छिपा है, और ये चीजें उस दबे हुए शहर की आवाजें हैं जो हमारे पैरों के नीचे से पुकार रही हैं."

वारसॉ घेटो की निशानियां

कोनिक के नेतृत्व में वारसॉ में उस बंकर के पास खुदाई हुई जहां विद्रोह के नेता मोर्देचाज एनीलेविच और उनके कामरेडों ने सामूहिक आत्महत्या की थी. 1939 में जब नाजी जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया तब शहर की एक तिहाई आबादी यहूदी थी. एक साल बाद हमलावरों ने यहूदियों के इलाके पर घेरा डाल कर घेटो बनाया ताकि कोई भी यहूदी वहां से ना जा सके.

वारसॉ घेटो की निशानियां
नाजियों ने यहूदियों को अपने घर के दरवाजों में चाबियां लटकी छोड़ कर जाने को कहा थातस्वीर: Wojtek Radwanski/AFP

कोनिक ने बताया, "ये चीजें उन चीजों जैसी हैं जो हमें वारसॉ के गैरयहूदी इलाकों से मिली हैं, तो यह साफ है कि जिस इलाके को घेटो के रूप में अलग किया गया था वह अलगाव कृत्रिम था." करीब 3 वर्ग किलोमीटर के इलाके में 4.5 लाख यहूदी रहते थे. जब नाजी सेनाओं ने यहूदियों को यातना शिविरों में भेजना शुरू किया तो वारसॉ में 19 अप्रैल 1943 को हथियारबंद विद्रोह हुआ.

दरवाजों में लटकी चाभियां

करीब 3 महीने लंबे विद्रोह को नाजियों ने क्रूरता से कुचल डाला और उस घेटो को भी उजाड़ दिया. घेटो के अवशेष आज भी वहां दबे हुए हैं और कभी कभी दिन के उजाले में नजर आ जाते हैं. यहां खुदाई करके कई हजार चीजें निकाली गई हैं. इनमें से कुछ दर्जन चीजों को नुमाइश में दिखाया जा रहा है. इनमें एक दरवाजे का हैंडल है जो जला हुआ लेकिन उसमें अब भी चाभी लगी हुई है. कोनिक ने बताया, "यह हैंडल यहूदियों के लिए उस आदेश का प्रतीक है जिसमें उन्हें अपने अपार्टमेंट छोड़ने और चाभियों को दरवाजे में लटकाने की बात कही गई थी."

इगो सिम को बाद में पोलिश सैनिकों ने मार दिया था
मशहूर अभिनेता इगो सिम की एक तस्वीर भी है तस्वीर: Wojtek Radwanski/AFP

इसमें कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिनके बारे में सोचा भी नहीं गया था मसलन इगो सिम की एक तस्वीर. सिम एक पोलिश अभिनेता थे, जिन्होंने नाजी हमलावरों से हाथ मिला लिया था. कोनिक ने कहा, "माना जाता है कि यह सुंदर अभिनेता के युद्ध से पहले के किसी प्रशंसक के पास रही होगी. दुर्भाग्य से इस आकर्षक चेहरे के पीछे एक दानव था." सिम को बाद में पोलिश सैनिकों ने मार दिया था.

ये सारी चीजें यहूदी विरोध और जंग की भयानकता के बीच जीते रहने की इच्छा की गवाही दे रही हैं. अब घेटो के दौर की बहुत कम ही इमारतें बच गई हैं. एक दुर्लभ उदाहरण है जंग के पहले का चोल्दना स्ट्रीट पर बना टाउनहाउस जो कभी एडम चेर्नियाकोव का घर था. नाजियों ने चेर्नियाकोव को घेटो यूडेनराट जुईश एडमिनिस्ट्रेशन का प्रमुख बनाया था.

वारसॉ घेटो की निशानियां
जली हुई प्रैमतस्वीर: Wojtek Radwanski/AFP

यातना के दौर की तस्वीरें

उस समय की गवाही देने वाली कुछ तस्वीरें भी हैं जो लेकिन इनमें से ज्यादातर नाजियों ने खींची हैं. पोलिश सेंटर फॉर होलोकॉस्ट रिसर्च की आग्निएस्का हास्का का कहना है, "यह बहुत परेशान करने वाला है कि हम आज भी घेटो को जर्मन आंखों से देखते हैं. इसे ऐसा नहीं होना चाहिए." हालांकि लोग जल्दी ही घेटो की वो तस्वीरें देख सकेंगे जो एक पोलिश दमकलकर्मी ने खींची थी. यह तस्वीरें पोलिन म्यूजियम ऑफ हिस्ट्री ऑफ पोलिश जुस में दिखाई जानी हैं. इनमें विद्रोह के दौरान आम यहूदियों के जीवन पर फोकस किया गया है. पोलिन ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, "मौत के करीब ले जाने वाली गाड़ियों में सवार होने के लिए जारी आदेश की अवहेलना कर लोग घरों में छिपे रहे. उनका खामोश प्रतिरोध भी उतना ही अहम था जितना कि सशस्त्र युद्ध."

इस साल सालगिरह के कार्यक्रमों में इस्राएल और जर्मनी के राष्ट्रपति भी हिस्सा लेंगे और इस दौरान आमलोगों के नजरिये से इस पर और रोशनी डाली जायेगी. म्यूजियम के ठीक सामने मॉन्यूमेंट ऑफ दे घेटो हिरोज है. 11 मीटर लंबा यह स्मारक उस जगह है जहां कई हथियारबंद लड़ाइयां हुई थीं. हास्का कहती हैं, "आमतौर पर हम देखते हैं... लड़ने वाले लोगों को," जहां अधिकारी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, "लेकिन इस स्मारक का दूसरा हिस्सा बेहद दिलचस्प है जो आम लोगों को समर्पित है, इस साल हम उसी को याद करना चाहते हैं." यह मौत की राह पर चले आम लोगों की कतार दिखाता है. 

एनआर/एडी (एएफपी)