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अपनी भारत यात्रा मैं मैंने कभी स्कर्ट नहीं पहनी

विवेक कुमार५ सितम्बर २०१६

अपनी भारत यात्रा पर विदेशी महिला पर्यटकों को रात में स्कर्ट ना पहनने की सलाह दी जाती है. देखिए भारत से घूमकर लौटी एक विदेशी महिला टूरिस्ट इस पर क्या सोचती है.

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Holi Fest in Indien 2014
तस्वीर: UNI

मिया सोफी जर्मनी के कोलोन शहर में रहती हैं. हाल ही में भारत घूमकर आई हैं. पर्यटकों को स्कर्ट ना पहनने की सलाह की बात सुनी तो उन्हें अच्छा नहीं लगा. उन्हें लगा कि महिलाओं के लिहाज से तो यह अच्छी बात नहीं है. हालांकि भारत में उनका अपना अनुभव कैसा रहा, जानिए...

मैं भारत देखना चाहती थी. उसे जानना चाहती थी. उसके लोगों को समझना चाहती थी. उनके करीब होना चाहती थी. उनके बीच होना चाहती थी. इसलिए मैं भारत जाना चाहती थी. लेकिन भारत जाने का फैसला आसान नहीं था. मेरे लिए भी नहीं. और मेरे मां-बाप के लिए तो बिल्कुल नहीं. जब मैं भारत जाने की तैयारी कर रही थी तो मेरी मां अपने भारतीय दोस्तों से मशवरे ले रही थीं. पूछ रही थीं कि जाना चाहिए या नहीं, कहां जाना चाहिए, कहां नहीं जाना चाहिए, किस बात का ध्यान रखना चाहिए और वहां कोई जानकार है या नहीं. जब मैं चलने लगी तो ममा ने कितने सारे फोन नंबर थमा दिए वहां के. ताकि कोई दिक्कत हो तो बात की जा सके. संपर्क किया जा सके. लेकिन सच बताऊं, हमने तो किसी से संपर्क नहीं किया. जरूरत ही नहीं पड़ी. मैं 19 साल की हूं और अपनी दोस्त के साथ दक्षिण भारत में तमिलनाडु से शुरू करके केरल, गोवा, मुंबई और जयपुर होते हुए दिल्ली तक आई. मुश्किलें हुईं. दिक्कतें हुईं. लेकिन वे कहां नहीं होतीं. आप घर से बाहर निकलते हैं तो यही सोचकर निकलते हैं ना कि कुछ नया सीखने जा रहे हैं. मैं भारत गई तो कुछ नया सीखने गई थी ना. और बहुत कुछ सीखा. कि वहां बहुत भीड़ है. कि वहां के लोग बहुत बातें करते हैं. कि वहां के समाज में खुलापन कम है. कि अपना ध्यान तो रखना ही पड़ेगा. तो सीखना आसान तो नहीं होता ना. इसलिए नसीहतों का जो बोझ हमारे कंधों पर हमारे पैरंट्स ने लाद दिया था, उसे उठाना ही था. जैसे, पूरे सफर में स्कर्ट नहीं पहनी. रात को बाहर नहीं निकले. ज्यादा पैसे जेब में नहीं रखे. अनजान लोगों से बात करते वक्त सावधान रही. अपनी सुरक्षा का ख्याल रखा. डर तो नहीं लगा लेकिन सावधानी की जरूरत जरूर महसूस हुई.

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और बहुत सारे अनुभव लेकर भारत से लौटी. लेकिन जब यहां लौट आई और आकर सोचने लगी कि क्या खोया क्या पाया. तब कई बातें जहन से गुजरीं. मसलन, एक तो इंडिया का मीडिया उस्ताद है. बहुत डराता है. मतलब, ऐसी खबरें ही पढ़ने को मिलती हैं कि वहां रेप हो गया. वहां लूटपाट हो गई. ऐसा ही तो नहीं होता है ना. हमारे साथ तो नहीं हुआ. और बहुतों के साथ नहीं होता. इसलिए इतना भी डरने की बात नहीं होनी चाहिए. इसके बजाय ट्रांसपोर्ट सिस्टम सुधर जाए तो बेहतर होगा. अब उस रात मडगांव से ट्रेन में चले तो हमारा स्टेशन छूट गया. डेढ़ घंटा आगे से लौटना पड़ा. रात का वक्त था. हम टुकटुक से वापस आ रहे थे. और तब इतना डर लग रहा था. उस रात तो सच में लगा कि जान ही जाएगी. टुकटुक खराब हो जाए तो आसपास कोई साधन नहीं. कोई बस नहीं. रात के वक्त सोचिए कितनी दिक्कत होती होगी.

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फिर भी, इंडिया जाकर मुझे तो बहुत अच्छा लगा. वहां की लड़कियों से मिली. वे कितनी सकुचाई सी रहती हैं. एक लड़की मिली जिसकी शादी हो चुकी थी. वह हमसे बात कर रही थी तो कितने सपने थे उसके पास. कॉलेज जाना चाहती थी. पढ़ना चाहती थी. लेकिन ऐसा नहीं पाया क्योंकि उसका पति इजाजत नहीं देगा. सच कहूं तो जब वह हमसे बात कर रही थी, मैं उसकी आंखों में ईर्ष्या साफ देख पा रही थी. हमारी आजादी से उसकी जलन मेरा कलेजा चीर रही थी. एक औरत दूसरी औरत से इसलिए जल रही है क्योंकि वह खुद आजाद नहीं है और दूसरी आजाद है. दुखद है. समाज को सोचना चाहिए. इतने सारे लोग हैं. इतनी बातें करते हैं. सच में, बहुत सवाल पूछते हैं भारतीय. कहां से आए, क्यों आए, कैसे आए, क्या करते हो. कभी कभी अच्छा भी लगता है लेकिन सिर भी तो दुखने लगता है. और जब मेरा सिर दुखने लगता था, तब मैं आंखें बंद करके बैठ जाती थी ताकि साथ वालों को लगे, सो रही है. तब वे बातें नहीं करते थे. और तब मैं सोचती थी, ये लोग स्कर्ट के बारे में सोचते रहते हैं, पढ़ाई के बारे में सोचें तो स्कर्ट पहनना या ना पहनना कोई समस्या ही नहीं रहेगी.

(मिया सोफी से विवेक कुमार की बातचीत पर आधारित)