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इन कोशिशों से मिल रहा है प्रवासियों को परिवार

११ जुलाई २०१७

अकेलेपन से जूझ रहे प्रवासियों को विदेशी जमीन पर घर परिवार और दोस्त मुहैया कराने की मुहिम का अच्छा असर हो रहा है. मुश्किलें उठा कर सुदूर देशों में पहुंचे लोगों को खुशियों के पल हासिल हो रहे हैं.

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Frankreich - Dschungel von Calais
तस्वीर: picture alliance/NurPhoto/M. Heine

सूडानी शरणार्थी अबू हारून उत्तरी फ्रांस के काले से जब 2010 में पहली बार ब्रिटेन आया तो स्कूल बस से बाहर निकलने पर खुद को एक पुलिस स्टेशन में अपरिचित भाषा बोल रहे लोगों से घिरा पाया. तब उसकी उम्र 16 साल थी वो अकेला था और अंग्रेजी भी नहीं आती थी. हारून इस बात की आशंका से डरा हुआ था कि ब्रिटिश अधिकारी उसे सूडान के दारफुर में घर वापस भेज देंगे जो लड़ाई में ध्वस्त हो चुका था. अब 23 साल के हारून का कहना है, "डरा, अकेला और खोया खोया सा था. मैं वहां बैठ कर इंटरव्यू का इंतजार कर रहा था." हारून ने कहा, "मैं अग्रेजी के बारे में कुछ नहीं जनता था. लोग मेरे अगल बगल से बात करते गुजर रहे थे. मुझे नहीं पता था कि क्या हो रहा है.

हालांकि हारून ने अगला पूरा साल अंग्रेजी पढ़ते और फुटबॉल खेलते हुए दोस्त बनाने में बिताया लेकिन फिर भी वो कहते हैं कि इस बड़े शहर में उन्हें किसी पर भरोसा नहीं होता था. दारफुर के उनके गांव की तुलना में लंदन बहुत बड़ा है. उनके गांव को चरमपंथियों ने तहस नहस कर दिया था.

इसके बाद उन्हें एक ब्रिटिश महिला एनीके एल्विस का पत्र मिला जिसमें उनसे लंदन के हैम्पस्टीड हीथ पार्क में आने का निमंत्रण था. इन दोनों की मुलाकात एक ब्रिटिस चैरिटी संस्था फ्रीडम फ्रॉम टॉर्चर ने कराई थी. हारून की उम्र के ही एल्विस के दो बेटे हैं. 55 साल की एल्विस बताती हैं कि हारून जल्दी ही उनके परिवार का हिस्सा बन गया. खूब आना जाना होने लगा यहां तक कि क्रिसमस के पारंपरिक लंच और दूसरे कार्यक्रमों में भी हारून शामिल होने लगा.

हारून के पास अब उत्तरी लंदन में एक घर के साथ साथ ब्रिटिश मां भी है. एल्विस की बगल में बैठे हारुन कहते हैं, "पूरे परिवार ने मेरा स्वागत बेटे की तरह किया और मैं खुश हूं कि मेरे पास इंग्लैंड में मां है. बहुत से शरणार्थियों को ऐसा मौका नहीं मिलता."

Frankreich Jungle Calais wird abgebaut und die Migranten auf Aufnahmezentren verteilt
तस्वीर: picture alliance/dpa/J. Mattia

दोस्त बनाने वाले

हारून से मुलाकात ने एल्विस को होस्टनेशन बनाने के लिए प्रेरित किया. ये वेबसाइट लोगों को उनके आस पास के इलाके में रह रहे युवा शरणार्थियों से दोस्ती बढ़ाने के लिए मुलाकात कराती है. एल्विस कहती हैं, "बहुत से शरणार्थी और शरण पाने के इच्छुक लोगों की अग्रेज लोगों के नाम पर सिर्फ अधिकारियों से मुलाकात होती है." रिफ्यूजी एक्शन नाम की संस्था से कैम्पेन मैनेजर के रुप में जुड़ीं मरियम केम्पेल कहती हैं, "हम जानते हैं कि प्रवासियों और शरण पाने के इच्छुक लोगों को अकेलेपन का सामना करना पड़ता है. भाषा की अड़चन, गरीबी और सामाजिक सहयोग की कमी के कारण प्रवासी अकेले पड़ जाते हैं. केम्पेल कहती हैं, "लोग तो अपने पड़ोसियों से बात भी नहीं करते, दोस्त बनाना तो दूर की बात है. ब्रिटेन में आ कर अपनी जिंदगी शुरू करने वालों के लिए यह बहुत अकेला कर देने वाला होता है." यह समस्या बहुत बड़ी है.

बहुत से प्रवासियों के लिए तो सार्वजनिक परिवहन से यात्रा करना भी मुश्किल है और वो कई बार पैदल चल कर ही अपने लिए मौजूद सेवाओं या फिर अपने दोस्तों और परिवारों तक पहुंचते हैं. एल्विस का कहना है कि बहुत से लोग है जो प्रवासियों की मदद करना चाहते हैं. मार्च में होस्टनेशन वेबसाइट शुरू करने के बाद वो पूरे लंदन में प्रवासियों और उनके दोस्तों की मुलाकात कराना चाहती हैं. ये एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें रिफ्यूजी एजेंसियों के सहयोग की जरूरत होती है. वो कहती हैं, "हम चाहते हैं कि दूसरे लोगों को भी इस तरह के रिश्तों की सौगात मिले.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)