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बन गया है शरीर में दो हफ्ते रहने वाला कैप्सूल

१८ नवम्बर २०१६

वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कैप्सुल बनाया है जो दो हफ्ते तक पेट के अंदर मौजूद रहेगा और दवा को धीरे धीरे खोल से बाहर निकालेगा.

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China, Krebspatienten so weit von Zuhause entfernt
तस्वीर: REUTERS/K.-H. Kim

अमेरिकी वैज्ञानिकों का बनाया यह कैप्सुल मलेरिया, एचआईवी ऐसे दूसरे रोगों से लड़ने में ताकतवर हथियार साबित हो सकता है, जिनमें एक से ज्यादा बार और लंबे समय तक दवा लेनी पड़ती है.

साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन नाम की पत्रिका में छपे अध्ययन में बताया गया है कि वैज्ञानिकों ने नए कैप्सुल का इस्तेमाल इवरमेक्टिन नाम की दवा देने में किया, जो मलेरिया की दवाई है. लंबे समय तक काम करने वाली दवा की यह तकनीक अल्जाइमर से लेकर एचआईवी, टीबी और मानसिक बीमारियों में भी सहायक हो सकती है क्योंकि इन रोगों के लिए भी लंबे समय तक दवा खानी पड़ती है.

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वैसे, अभी भी ऐसी कई दवाएं मौजूद हैं जो शरीर में जाकर धीरे धीरे काम करती हैं. लेकिन वे या तो इंजेक्ट की जाती हैं या फिर शरीर में इंप्लांट कर दी जाती हैं. और बहुत सारे लोग इन परिस्थितियों के लिए तैयार नहीं होते. इस लिहाज से नया कैप्सुल खूब काम का साबित हो सकता है. रिसर्च में काम कर रहे एमआईटी के प्रोफेसर रॉबर्ट लैंगर कहते हैं, "अब तक जो गोलियां उपलब्ध हैं वे शरीर के अंदर ज्यादा से ज्यादा एक दिन तक ही होती हैं. अब हम एक लंबे समय तक काम करने वाली व्यवस्था के मुहाने पर हैं. आने वाले समय में यहां से बहुत सारी दिलचस्प चीजों का रास्ता खुल सकता है."

जो दवा खाई जाती है वे बहुत कम समय के लिए असर करती हैं क्योंकि वे शरीर से बहुत जल्दी गुजर जाती हैं. पेट और आंतों में उनका सामना बहुत कठोर वातावरण से होता है. लैंगर का कहना है कि वह और उनकी टीम कई साल से इस समस्या से लड़ने के लिए काम कर रहे हैं. पहले उनका पूरा ध्यान मलेरिया और इसकी दवा इवरमेक्टिन पर था. यह दवा ऐसे मच्छरों को ही मार देती है, जो दवा खा रहे व्यक्ति को काटता है.

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नया कैप्सुल सितारे के आकार का है यानी इसकी छह भुजाएं हैं इन भुजाओं को अंदर मोड़कर कैप्सुल में डाला जाता है. दवा भुजाओं में होती है. हर भुजा के मुंह को इस तरह से डिजायन किया गया है कि कुछ समय बाद यह खुल जाता है. कैप्सुल निगलने के बाद पेट के भीतर मौजूद रसायन इसकी बाहरी परत को घोल देते हैं. इससे कैप्सुल की भुजाएं खुल जाती हैं. यह इतना बड़ा है कि शरीर इसे धकेल कर हजम कर देने वाले हिस्से में नहीं भेज सकता. लेकिन इतना बड़ा भी नहीं है कि शरीर में किसी तरह की रुकावट पैदा कर दे.

वीके/ओएसजे (रॉयटर्स)