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और मार्च के बाद नहीं खुलेगा दलित बच्चों का स्कूल

२६ जनवरी २०१७

भारत सरकार देश में काम कर रही गैर सरकारी संस्थाओं पर प्रतिबंधों के कोड़े क्यों बरसा रही है? इसका साफ जवाब किसी के पास नहीं है. पर हां, काम बदं हो रहा है.

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तस्वीर: INDRANIL MUKHERJEE/AFP/Getty Images

भारत की तथाकथित सबसे निचली जाति के बच्चों के लिए चल रहा एक स्कूल अब बंद हो रहा है. मुनाफा कमाने के लिए नहीं बल्कि गरीब बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने के मकसद से चलाया जा रहा है यह स्कूल महीनों से अपने यहां काम करने वाले अध्यापकों को तन्ख्वाह नहीं दे पाया है. अब दे भी नहीं पाएगा क्योंकि पैसा ही नहीं है. बेंगलुरू में ऐसा ही एक स्वाथ्य केंद्र बंद होने के कगार पर है और सरकार के साथ कानूनी लड़ाई लड़ रहा है. वकीलों की एक संस्था पर विदेशों से धन लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

भारत सरकार ने देश विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाते हुए 200 से ज्यादा समाजसेवी संस्थाओं के लाइसेंस रद्द किए हैं. इन संस्थाओं के लोग कहते हैं कि बात बस इतनी है कि सरकार विरोध की आवाजों को दबाना चाहती है इसलिए ऐसी कार्रवाइयां की जा रही हैं. गुजरात में गरीबों के बीच असमानता और जातीय शोषण के खिलाफ तीन दशक से काम कर रही संस्था नवसर्जन के मार्टिन मकवान कहते हैं, "समाज के लिए हम जो भी काम कर रहे थे, एकदम बंद हो गया है." मकवान ने 2005 में दलित बच्चों के लिए एक पाठशाला खोली थी क्योंकि दलित बच्चों को सामान्य स्कूलों में बहुत ज्यादा भेदभाव सहना पड़ता था. अगस्त में फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन रेग्युलेशन एक्ट के तहत नवसर्जन के लाइसेंस का हर साल की तरह ही नवीनकरण हुआ. लेकिन एक ही महीने बाद लाइसेंस वापस ले लिया गया. इसकी वजह राष्ट्रहित विरोधी गतिविधियों को बताया गया. नतीजा यह हुआ कि संस्था को अपने 80 कर्मचारियों को नौकरी से हटाना पड़ा. स्थानीय स्तर पर भी वित्तीय मदद नहीं मिल रही है. अब मकवान ने स्कूल बंद करने का फैसला कर लिया है. वह कहते हैं, "हम उम्मीद कर रहे हैं कि मार्च के आखिर तक स्कूल किसी तरह चला लें. उसके बाद तो नहीं चला पाएंगे."

ऐसी ही कहानी बेंगलूरु में स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाली संस्था इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ की है. कुछ महीने पहले संस्था को गृह मंत्रालय की ओर से एक लाइन का ईमेल मिला जिसमें कहा गया कि आपका एफसीआरए लाइसेंस रद्द किया जाता है. अब संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन और रेड क्रॉस जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से पैसा नहीं ले सकती.

2014 में मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद देशभर के एनजीओ पर कार्रवाई हुई है. 2014 में खुफिया एजेंसियों ने सरकार को एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा गया कि जब गैरसरकारी संस्थाएं प्रदूषण या मानवाधिकार जैसे मुद्दों को आधार बनाकर प्रदर्शन करती हैं तो विकासकार्य प्रभावित होते हैं. इसके बाद सरकार ने एनजीओ पर प्रतिबंध लगाने शुरू किए. ऐसी संस्थाओं को खासतौर पर निशाना बनाया गया जिन्होंने बड़ी योजनाओं का विरोध किया था. मसलन इंडियन सोशल एक्शन फोरम परमाणु बिजली संयंत्रों का विरोध करती है. उसका लाइसेंस रद्द कर दिया गया है. संस्था के संयोजक अनिल चौधरी ने जब इस आदेश को कोर्ट में चुनौती दी तो उन्हें जवाब मिला कि सरकार अपनी कार्रवाई की वजह बताने के लिए बाध्य नहीं है.

कानून में भी इसका जवाब नहीं मिलता कि इस संस्थाओं ने ऐसा क्या काम किया है जिसे राष्ट्रविरोधी मानते हुए इनके लाइसेंस रद्द किए जा रहे हैं. सरकार कहती है कि इस कार्रवाई के पीछे कोई राजनीतिक मंशा नहीं है. गृह मंत्रालय के प्रवक्ता केएस धतवालिया ने कहा, "सभी गैर सरकारी संस्थाओं को एफसीआरए के नियमों का पालन करना होता है. अगर कोई उल्लंघन होता है तो कानून के तहत कार्रवाई होती है. इससे ज्यादा कुछ नहीं है."

वीके/एके (एपी)