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मोदी का भारत कश्मीरियों का दिल कैसे जीत सकता है?

शामिल शम्स
२८ अप्रैल २०१७

लगभग एक साल से भारत की सरकार कश्मीर में हालात को शांत करने की कोशिश कर रही है. लेकिन डीडब्ल्यू के शामिल शम्स का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार नाराज कश्मीरी युवाओं का दिल जीत ही नहीं सकती.

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Kashmir | Ausschreitungen in Srinagar
तस्वीर: Reuters/D. Ismail

पिछले साल जुलाई से भारतीय कश्मीर में अशांति है, जिसे दबाने के लिए मोदी सरकार लगातार जद्दोजहद कर रही है. इसके लिए उन्होंने सैन्य ताकत भी इस्तेमाल की, राज्य सरकार ने राजनीतिक माध्यमों से युवाओं तक पहुंचने की कोशिश की और हमेशा की तरह यह भी कहा गया कि इस सबके पीछे पाकिस्तान का हाथ है. लेकिन अभी तक कोई तरीका कारगर साबित नहीं हो रहा है.

कश्मीर घाटी में तनाव की शुरुआत सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में चरमपंथी कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद शुरू हुआ. तभी से यह तनाव न सिर्फ चला आ रहा है बल्कि दिन ब दिन इसमें इजाफा हो रहा है. ऐसे में, कश्मीर को लेकर मोदी सरकार की नीति पर सवाल उठ रहे हैं.

पूरे भारत में जिस तरह की नीतियां लागू की जा रही हैं और जिस तरह के मुद्दों पर सियासत हो रही है, उन्हें देखते हुए कश्मीर में हालात को शांत करना और मुश्किल हो गया है. अब से पहले भारत अपने धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी सामाजिक मूल्यों की बात करता था. यह न सिर्फ कश्मीर बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक मिसाल थी. पाकिस्तान में जहां अल्पसंख्यक हिंदू और अन्य समुदायों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता था, वहीं भारत में अल्पसंख्यक मुसलमान काफी हद तक अन्य लोगों की तरह फल फूल रहे थे और देश की समावेशी लोकतांत्रिक व्यवस्था का फायदा उठा रहे थे.

लेकिन जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए हैं, तब से बढ़ती सांप्रदायिकता ने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को तार तार किया है. तथाकथित गौरक्षकों के हमलों में कई मुसलमान और दलितों की जानें जा चुकी हैं. गौकशी के खिलाफ सख्त कानून बनाए जा रहे हैं. कई जगह विदेशी खास कर अफ्रीकी लोगों पर हमले हुए हैं.

रिपोर्टों के मुताबिक भारत के मुसलमानों ने कभी इतना असुरक्षित महसूस नहीं किया जितना वे मोदी राज में कर रहे हैं. कई धर्मनिरेपक्ष और उदारवादी समूह मौजूदा सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी और विभाजनकारी बताते हैं. आर्थिक प्रगति के बावजूद इन बातों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया है.

ऐसे में, कश्मीरी युवाओं को भारत की सरकार से कोई उम्मीद नहीं है. उन्होंने न सिर्फ अपने आसपास भारतीय सैन्य बलों की बर्रबरता देखी है, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी कश्मीरियों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें मिल रही हैं. सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले वीडियो कश्मीरियों में भारत के प्रति और देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों में कश्मीरियों के प्रति नफरत को भड़का रहे हैं.

कश्मीर में शुरू हुई भारत विरोधी ताजा मुहिम को पाकिस्तान की तरफ से समर्थन मिल सकता है, लेकिन जमीनी स्तर पर लोगों में भी बहुत गुस्सा है. ताकत के इस्तेमाल से कश्मीर में हालात सुधरेंगे नहीं बल्कि और खराब होंगे. कश्मीर का निश्चित रूप से एक राजनीतिक समधान ही तलाशना होगा लेकिन उसके लिए न तो केंद्र की मोदी सरकार तैयार दिखती है और न ही राज्य की महबूबा मुफ्ती सरकार.

दिल्ली में कोई धर्मनिरपेक्ष, समावेशी और सहिष्णु सरकार ही भारत और कश्मीर के बीच लगातार चौड़ी होती जा रही खाई को पाट सकती है. ऐसी सरकार ना सिर्फ कश्मीर बल्कि इस समय पूरे भारत के लिए जरूरी है. इसमें बहुत समय लगेगा और इसके लिए धैर्य की भी जरूरत होगी.