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पाकिस्तान में एक और मानसिक रोगी का डेथ वॉरंट जारी

११ जनवरी २०१७

पाकिस्तान में एक अदालत ने एक मानसिक रोगी के खिलाफ डेथ वॉरंट जारी कर दिया है. इस व्यक्ति के वकील ने यह जानकारी मीडिया को दी है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/I. Sheikh

कुछ महीने पहले ही मानसिक रूप से बीमार एक व्यक्ति को मौत की सजा पर काफी विवाद हुआ था और देश की सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सजा के अमल पर रोक लगा दी थी.

55 साल के खिजर हयात को 2003 में मौत की सजा सुनाई गई थी. वह एक पूर्व पुलिस अफसर है. उसे अपने एक सहकर्मी की हत्या का दोषी पाया गया था. अब कोर्ट ने उसका डेथ वॉरंट जारी कर दिया है. इसका मतलब है कि अब उसकी सजा पर अमल की तैयारी शुरू हो गई है.

यह भी देखिए, मौत की सजा के वीभत्स तरीके

संयुक्त राष्ट्र पाकिस्तान से कह चुका है कि मानसिक रूप से बीमार कैदियों की सुरक्षा करे. यह सलाह देते वक्त संयुक्त राष्ट्र ने खास तौर पर हयात का जिक्र किया था. हयात का मामला देख रही संस्था जस्टिस प्रोजेक्ट पाकिस्तान (जेपीपी) ने बताया है कि सितंबर 2015 में ही हयात के वकील ने उनकी मानसिक बीमारी के कारण उनकी मौत की सजा को चुनौती दी थी. हयात की मानसिक बीमारी का पता 2008 में सरकारी डॉक्टरों की जांच में चला था. तब देश में मौत की सजाओं पर रोक लगी हुई थी. अब लाहौर जेल के अधिकारियों ने हयात के डेथ वॉरंट की मांग की और कोर्ट ने अधिकारियों की अपील स्वीकार करते हए 7 जनवरी को फांसी की तारीख तय कर दी है.

ऐसा ही मामला इमदाद अली का था. अली अक्टूबर में फांसी दी जानी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आखिरी पलों में उसकी फांसी पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी हालत में किसी व्यक्ति को फांसी देना अनुचित होगा. हालांकि अली के मामले में भी अभी अंतिम फैसला आना बाकी है.

तस्वीरों में, फांसी का नया रिकॉर्ड

जेपीपी की कार्यकारी निदेशक सारा बिलाल कहती हैं कि हयात को फांसी देने का फैसला अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा, "मेडिकल विशेषज्ञों और पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय इकरारनामों के आधार पर खिजर को मौत की सजा न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि अमानवीय भी है. जानबूझ कर एक मानसिक रोगी को फांसी पर लटकाने से यह संदेश जाएगा कि पाकिस्तान अपने नागरिकों के मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों का सम्मान नहीं करता."

पाकिस्तान में लंबे समय तक मौत की सजा पर रोक लगी रही. दिसंबर 2014 में यह रोक हटाए जाने के बाद से 420 लोगों को फांसी दी जा चुकी है. इस तरह पाकिस्तान ने मौत की सजा देने के मामले में सऊदी अरब को भी पीछे छोड़ दिया है. चीन और ईरान के बाद यह तीसरे नंबर पर है. सरकार का कहना है कि मौत की सजा पर रोक इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने के लिए हटाई गई है. लेकिन ब्रिटिश संस्था रिप्रीव के मुताबिक पाकिस्तान में जिन मौत की सजाओं पर अमल हुआ है उनमें सिर्फ 6 प्रतिशत मामले ही आतंकवाद के थे.

वीके/एके (एएफपी)