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मानो या ना मानो, रूस अब पाकिस्तान का दोस्त है

अशोक कुमार
२७ दिसम्बर २०१६

सियासत में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. यही बात कूटनीति पर भी हूबहू लागू होती है. भारत का स्थायी दोस्त रहा रूस अब भारत के स्थायी दुश्मन पाकिस्तान के नजदीक जा रहा है.

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Shanghai Cooperation Organisation Gipfel in Ufa Premierminister Nawaz Sharif und Präsident Wladimir Putin
तस्वीर: picture alliance/dpa/SCO Photoshot/Ria Novosti

साल 2016 भारत के लिए एक दोस्ती के दरकने का साल रहा. भारत के विदेश मंत्रालय को शायद यह बात आधिकारिक तौर पर हजम करने में अभी समय लगे, लेकिन दुनिया को लगातार संकेत मिल रहे हैं कि भारत और रूस की दोस्ती की जमीन खिसक रही है. भारत बरसों तक जिस रूस की दोस्ती की कसमें खाता रहा, वह अब पाकिस्तान के नजदीक जा रहा है.

इस बात पर तर्क हो सकता है कि भारत ने रूस को खोया या पाकिस्तान ने उसे हासिल किया है. यह भारत की विफलता है या फिर पाकिस्तान की सफलता? लेकिन हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. अमेरिका से भारत को जो रिश्ते मजबूत हो रहे थे, क्या यह उन्हीं की कीमत है? भारत को एक नए दोस्त की खातिर पुराने दोस्त को गंवाना पड़ रहा है?

इसी नजरिए से देखें को पाकिस्तान ने अमेरिका के बदले रूस की दोस्ती पाई है. अमेरिका से रिश्तों में लगातार बढ़ती तल्खी को देखते हुए उसे नए दोस्तों की जरूरत थी. उसका एक पुराना दोस्त चीन भी मजबूती से उसके साथ खड़ा है.

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इसे पाकिस्तान की कूटनीति की कामयाबी कहा जा सकता है कि जब वह अमेरिका का पक्का दोस्त था, तब भी यह दोस्ती चीन से उसके रिश्तों में कभी आड़े नहीं आई जबकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन और अमेरिका कई मुद्दों पर टकराते रहे. अब तो पाकिस्तान रूस और चीन के जिस अघोषित गठबंधन का हिस्सा बना है, उसमें तो कोई बड़ा आपसी मतभेद नजर ही नहीं आता.

यह बात सही है कि भारत अब भी रूसी हथियारों का बड़ा खरीदार है. लेकिन रूस के लिए अब प्राथमिकताएं बदल रही हैं. लेकिन भारत अमेरिका और रूस, दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने में नाकाम रहा है. इस साल ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत का दौरा किया था. उससे ठीक पहले, भारत की आपत्तियों के बावजूद रूसी सेना ने पाकिस्तान के साथ पहली बार साझा सैन्य अभ्यास किया.

गोवा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कह कर रूस को थामे रखने के लिए कहा कि एक पुराना दो नए दोस्तों से बेहतर होता है. लेकिन पुराने दोस्त यानी रूसी राष्ट्रपति ने इस दोस्ती पर कुछ नहीं कहा. इससे पता चलता है कि बात अब बहुत आगे निकल चुकी है.

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इसके बाद, जब अमृतसर में अफगानिस्तान के मुद्दे पर हुए हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में भारत ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाए तो रूस ने इसका विरोध किया. रूसी दूत ने कहा कि पाकिस्तान की आलोचना करना गलत है और एक दूसरे पर इल्जाम लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा. साफ तौर पर पाकिस्तान को अलग थलग करने की भारत की कोशिशों के लिए यह धक्का था. रूस का यह रुख तब था जब अफगानिस्तान अपने यहां आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए लगातार पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराता रहा है.

पाकिस्तान को अलग थलग करने की भारत की कोशिशें दक्षिण एशिया में तो कामयाब रही, लेकिन लगता है कि इनके चलते सार्क के ताबूत में आखिरी कीलें ठोंकी जा रही हैं. ब्रिक्स पर भी ग्रहण लग ही गया है. पाकिस्तान को यह बात अब शायद समझ आ गई है कि सार्क में वह भारत के दबदबे की काट नहीं कर सकता. इसीलिए भी पाकिस्तान के लिए नई दोस्तियां कायम करना लाजिमी हो गया है. वह पहले भी दक्षिण एशिया से ज्यादा मध्य एशिया की ओर देखता रहा है.

दक्षिण एशिया में भले भारत का दबदबा हो, लेकिन बड़े खेल में भारत को बड़े साझीदार यानी अमेरिका की जरूरत है. ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भारत और अमेरिकी रिश्ते किधर जाएंगे, यह अभी साफ नहीं है. ट्रंप जिस तरह से अब तक अपनी कही बातों पर पलट जाने में माहिर रहे हैं, उसे देखते हुए भारत को सावधान रहने की जरूरत है. कुल मिलाकर, आने वाला साल 2017 भारत की विदेश नीति के लिए चुनौती भरा साल होगा. हो सकता है कि पाकिस्तान-चीन-रूस की दोस्ती से समय समय पर ऐसी बातें सामने आती रहें जिन्हें पचाना भारतीयों के लिए मुश्किल हो.