फ्रांसीसी विमान सौदा लटका
५ अप्रैल २०१३भारतीय रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों ने रिपोर्ट दी है कि दोनों देश इस बात पर राजी नहीं हो पा रहे हैं कि हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड (एचएएल) की इसमें क्या भूमिका होगी. भारत ने पिछले साल जनवरी में फ्रांस के साथ दासो कंपनी के 126 लड़ाकू विमान रफाल खरीदने के सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं. यह सौदा 12 से 15 अरब डॉलर का है और दुनिया के सबसे बड़े रक्षा सौदों में शामिल है.
शुरुआती समझौते के मुताबिक फ्रांसीसी कंपनी 18 विमानों को तैयार करके भारत भेजेगी और उसके बाद के विमान भारतीय कंपनी एचएएल में तैयार किए जाएंगे. बताया जा रहा है कि फ्रांसीसी कंपनी दासो अब दो अलग मसौदे चाहती है, एक तैयार विमानों के लिए और दूसरा बाकी के विमानों के लिए. लेकिन रक्षा मंत्रालय के सूत्र का कहना है कि भारत इसके खिलाफ है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक सूत्र ने राजनीतिक और सामरिक वजह से नाम जाहिर नहीं करते हुए कहा, "दासो का कहना है कि एचएएल के पास विमान को तैयार करने की क्षमता नहीं है." उन्होंने कहा, "एचएएल हमारा प्रमुख साझीदार है और जरूरत पड़ने पर उसकी क्षमता और योग्यता को बढ़ाया जा सकता है. लेकिन दो मसौदों की बात भारत सरकार के लिए स्वीकार करने लायक नहीं है."
सूत्र का कहना है कि इसकी वजह से सौदे में देरी हो सकती है लेकिन यह टूटा नहीं है. भारतीय रक्षा मंत्रालय ने पहले उम्मीद जताई थी कि इस साल के जुलाई तक सौदा मुकम्मल हो जाएगा. दासो कंपनी की भारतीय प्रतिनिधि ने इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
भारतीय समाचारपत्र इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक दासो मैनुफैक्चरिंग किट और दूसरे उपकरण एचएएल को समय पर देने को तैयार था लेकिन उसके बाद के निर्माण में वह भागीदारी नहीं निभाना चाहता था. वह इन 108 विमानों के उत्पादन में किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था. अब फ्रांसीसी कंपनी और भारत सरकार की बातचीत पूरी तरह ठप पड़ गई है.
अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत सरकार ने कंपनी की इस बात को पूरी तरह खारिज कर दिया और साफ कहा है कि सभी 126 विमानों की जिम्मेदारी फ्रांसीसी कंपनी पर होगी."
रफाल विमान फ्रांसीसी सेना में भी शामिल है और इसने हाल में अफगानिस्तान, लीबिया और माली में सैनिक कार्रवाई की है.
इस सौदे के वक्त भारत की बातचीत यूरोफाइटर विमान बनाने वाली ईएडीएस से भी हो रही थी, जो यूरोपीय देशों की मिली जुली कंपनी है. उसमें फ्रांस के अलावा जर्मनी और ब्रिटेन का भी बड़ा योगदान है. लेकिन बाद में भारत ने फ्रांसीसी कंपनी से सौदा करने का फैसला किया.
एजेए/एमजे (रॉयटर्स, एएफपी)