1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सऊदी औरतें पुरूषों की सरपरस्ती से निकलने को बेचैन

२३ सितम्बर २०१६

कई हफ्तों से सऊदी महिलाएं ट्वीट कर मांग कर रही हैं कि उन्हें पुरूषों की सरपरस्ती से मुक्त किया जाए. सऊदी अरब में शुरू हुई नई बहस.

https://p.dw.com/p/1K6p4
Prinzessin Ameerah Al-Taweel von Saudi Arabien
तस्वीर: Getty Images/F. Nel

कई हफ्तों से सऊदी महिलाएं ट्वीट कर मांग कर रही हैं कि उन्हें पुरूषों की सरपरस्ती से मुक्त किया जाए. सऊदी अरब में शुरू हुई नई बहस.

सऊदी अरब में महिलाओं को कानूनी तौर पर दबाए जाने की निंदा करने वाली एक रिपोर्ट के बाद ट्विटर पर एक नई बहस शुरू हो हो गई है. कई हफ्तों से सऊदी महिलाएं ट्वीट कर मांग कर रही हैं कि उन्हें पुरूषों की सरपरस्ती से मुक्त किया जाए. सऊदी समाज में किसी भी महिला की जीवन शैली से जुड़े सभी फैसले लेने का अधिकार कानूनी तौर पर उसके निकटतम पुरूष सरपरस्त को होता है. ये व्यक्ति महिला का पिता, पति और कभी-कभी तो बेटा भी हो सकता है. महिला का सारा जीवन इसी तरह की सरपरस्ती में बीतता है.

सऊदी महिलाएं, ब्लॉगर और कार्यकर्ता इस पुरूष सरपरस्ती को खत्म करने के लिए #TogetherToEndMaleGuardianship और #StopEnslavingSaudiWomen जैसे हैशटैग के साथ ट्विटर पर मुहिम चला रही हैं और समाज में सुधार की मांग कर रही है. ट्विटर पर महिलाएं बता रही हैं कि इस सरपरस्ती के चलते उनका जीवन किस तरह प्रभावित हो रहा है. पढ़ने और काम करने से रोके जाने से लेकर मर्दों जैसी आजादी न मिलने के खिलाफ वो अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं.

सऊदी अरब में महिलाएं क्या क्या नहीं कर सकतीं

आला लिखती हैं, “क्या बकवास है किसी पुरूष के दस्तखत के बिना विदेश में नहीं पढ़ सकती हूं. मेरे सपने और भविष्य को कुचले जाने को कैसे स्वीकार कर लूं?”

वहीं जे नाम की एक यूजर ने लिखा, “ये बहुत ही आसान हैं, हम चाहते हैं कि हमें वयस्क माना जाए, बच्चे नहीं. सनकी या विकलांग नहीं.”

अस्माहान ने ट्वीट किया, “मैं ऐसे देश में रहती हूं कि जब तक मेरा पति इजाजत न दे मैं कहीं नहीं जा सकती हूं. मैं तो मर रही हूं. बस खा रही हूं सो रही हूं.”

अमेरिकी गैर सरकारी संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच इस मुहिम का समर्थन कर रहा है जिसने हाल में पुरूष सरपरस्ती की निंदा करने वाली अपनी एक रिपोर्ट को #TogetherToEndMaleGuardianship के साथ प्रकाशित किया है.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने ट्वीट किया, “क्या इस बात की कोई तुक बनती है कि महिलाओं को यात्रा करने के लिए पुरूष सरपरस्तों से अनुमति लेनी पड़े?”

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में कई एनिमेशन वीडियो है जिनमें ऐसी महिलाओं की कहानियां बताई गई है जिनके सरपरस्त अपने अधिकारों का गलत फायदा उठाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, “यह चलन सऊदी अरब में महिलाओं की आजादी की राह में सबसे बड़ी बाधा है जो वयस्क महिला को एक बच्चे में तब्दील कर देता है जो अपनी मर्जी कोई फैसला नहीं ले सकती है.”

हालांकि इस मुहिम के जबाव में कई लोगों ने पुरूष सरपस्ती के समर्थन की भी मुहिम शुरू कर दी है. ट्विटर पर कुछ लोग एक अरब हैशटेग चला रहे हैं जिसका मतलब है, “सऊदी महिलाओं को पुरूष सरपरस्ती पर गर्व है.” उनका कहना है कि ये चलन धार्मिक परंपरा का हिस्सा है.

खुद को यूनिवर्सिटी प्रोफेसर बताने वाले अमेराह साएदी मानते हैं कि कुछ पुरूष खुद को मिलने वाले अधिकारों का गलत फायदा उठाते हैं, लेकिन फिर भी वो इस बारे में किसी बदलाव के हक में नहीं हैं. उन्होंने ट्वीट किया, “कुछ सरपरस्तों द्वारा शोषण और अन्याय की समस्या को इस कानून को हटाकर हल नहीं किया जा सकता है, बल्कि शरिया कानून से हल किया जा सकता है.”

सोशल मीडिया से परे महिलाओं की इस मुहिम ने कई धार्मिक नेताओं को भी नाराज किया है. सऊदी अखबार 'ओकाज' ने देश के सबसे बड़े धार्मिक नेता ग्रैंड मुफ्ती शेख अब्दुलअजीज अल-शेख के हवाले से लिखा है कि पुरूष सरपरस्ती को हटाने की कोई भी बात सुन्नी इस्लाम के खिलाफ ‘अपराध' के बराबर होगी. वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता और संगठन अकसर सऊदी अरब पर महिलाओं के अधिकारों को दबाने का आरोप लगाते हैं.

जानिए, हज में क्या क्या करते हैं लोग

सऊदी अरब में 2015 के आखिर में महिलाओं को स्थानीय चुनावों में मतदान का अधिकार दिया गया, लेकिन बहुत सी महिलाओं को मतदान केंद्रों पर पहुंचने के लिए पुरूष सरपरस्तों की जरूरत पड़ी. सऊदी अरब दुनिया का इकलौता ऐसा देश हैं जहां महिलाओं का ड्राइविंग की इजाजत नहीं है.

फ्रांसिस्को पेरेज/एके