1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कोरल रीफ को गर्म जलवायु के अनुकूल बनाने की कोशिश

१८ नवम्बर २०२२

ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक एक ऐसी तकनीक तैयार करने पर काम कर रहे हैं, जो कोरल रीफ को अधिक तापमान के अनुकूल बना दे. रोबोट और ड्रोन इस तकनीक में अहम भूमिका निभाएंगे.

https://p.dw.com/p/4Jife
ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर रीफ
ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर रीफतस्वीर: Rafael Ben-Ari/Newscom/picture alliance

ऑस्ट्रेलिया के तट पर हरे समंदर के नीचे एक ऐसी दुनिया बसती है, जिसकी खूबसूरती स्वर्गिक है. यह पृथ्वी पर कुदरत के बनाए अजूबों में से एक है. पानी के नीचे एक सतरंगी जंगल जिसमें जीवन अपने तमाम मायने बदल लेता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह जीवन और उसके इर्दगिर्द सतरंगी दुनिया जलवायु परिवर्तन के भेंट चढ़ने वाली है.

ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ जलवायु परिवर्तन से खासी प्रभावित हुई है. हालांकि वैज्ञानिक कहते हैं कि अभी यह बर्बाद नहीं हुई है लेकिन तेजी से गर्म होती धरती ने इसके वजूद को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. अब अधिकारीगण प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ मिलाकर ग्रेट बैरियर रीफ की उम्र बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वे कोरल रीफ के पुनरोत्पादन पर अध्ययन कर रहे हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस विधि से कोरल रीफ के विकास की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है और गर्म व ज्यादा कठोर होते समुद्र को सहन करने में कामयाब रहेगा.

पानी की सतह के नीचे चलने वाली हीटवेव और चक्रवातीय तूफानों ने ग्रेट बैरियर रीफ के करीब 3,000 कोरल रीफ को खासा नुकसान पहुंचाया है. शोधकर्ता कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जीवन की विविधता बड़ा खतरा झेल रही है और जिस तरह से बदलाव हो रहे हैं, नतीजा और ज्यादा विनाश ही होगा.

लिजर्ड आईलैंड रिसर्च स्टेशन की निदेशक ऐन हॉगेट कहती हैं, "जलवायु परिवर्तन का संकेत स्पष्ट है. यह बार-बार होने वाला है.”

लगातार बढ़ा है विनाश

कोरल रीफ ऑस्ट्रेलिया के तट के किनारे करीब 2,200 किलोमीटर लंबी एक श्रृंखला है जिसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है. इसे अरबों सूक्ष्म जीवों ने लाखों सालों में तैयार किया है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसकी आयु दस लाख साल हो सकती है. यहां पौधों और जीवों की ज्ञात-अज्ञात हजारों प्रजातियां मौजूद हैं. इस रीफ के कारण पर्यटन का करीब 6.4 अरब डॉलर सालाना का उद्योग भी फल-फूल रहा है.

ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट फॉर मरीन साइंस में रीफ पर निगरानी रखने के लिए लॉन्ग-टर्म मॉनिटरिंग प्रोग्राम है. इस प्रोग्राम के प्रमुख माइक एम्सली कहते हैं, "कोरल तो इंजीनियर हैं. वे अनगिनत जीवों के लिए भोजन और रहवास तैयार करते हैं.”

बीते 37 साल से जारी सर्वेक्षण के दौरान एम्सली की टीम ने देखा है कि विनाश किस तरह लगातार बढ़ रहा है. हाल के सालों में बढ़ीं ग्रीष्म लहरों ने ऐसे अनगिनत सूक्षम जीवों को खत्म कर दिया है, जो रीफ को प्राणवायु देते हैं. ये प्रकाश संशलेषण के कारण रीफ को भोजन बनाने में मदद करते हैं लेकिन इनके खत्म होने से रीफ की टहनियों का रंग उड़ रहा है, जिसे ब्लीच कहते हैं.

इन सूक्ष्म जीवों की कमी के कारण कोरल बढ़ नहीं पाते. इसका सीधा असर उन 9,000 प्रजातियों पर हुआ है, जो रीफ पर निर्भर हैं. पिछले कुछ सालों में आए चक्रवातीय तूफानों ने भी रीफ को नष्ट किया है. यूं तो रीफ ने लाखों सालों की अपनी जिंदगी में ऐसे तूफान बहुत बार देखे हैं लेकिन इनकी बारंबारता बढ़ने के कारण रीफ को एक तूफान से दूसरे के बीच कम समय मिल पाता है और इसलिए उसकी मरम्मत नहीं हो पाती.

लेकिन पिछली गर्मियों में एम्सली की टीम ने कुछ अनोखा देखा. उन्हों देखा कि नए अंकुर फूट रहे थे. एम्सली बताते हैं, "रीफ मृत नहीं है. यह एक शानदार, खूबसूरत और जटिल व्यवस्था है जिसमें मौका मिलने पर फिर से जी उठने की अद्भुत क्षमता है. और उसे यह मौका देने का सबसे बढ़िया तरीका यह है कि हम कार्बन उत्सर्जन कम कर दें.”

नई तकनीक कितनी उपयोगी?

दर्जनों शोधकर्ता कोरल रीफ को फिर से बढ़ने के लिए सर्वोत्तम परिस्थितियों के तरीके खोज रहे हैं. वे नन्हे रीफ को प्रयोगशालाओं में ले जाकर उन पर अध्ययन कर रहे हैं और उनमें ऐसे बदलाव करने की कोशिश कर रहे हैं जिनसे रीफ ज्यादा तापमान में भी जिंदा रह सकें और पुनरोत्पादन कर सकें.

रीफ बचाने की एक अरब डॉलर की ऑस्ट्रेलियाई योजना पर सवाल

ऐसी ही एक प्रयोगशाला एक नाव पर बनी है और कोनोमी द्वीप के आसपास तैरती है. क्वींसलैंड के तट से करीब ढाई घंटे की यात्रा के बाद आप कोनोमी द्वीप पर पहुंचते हैं, जिसे नॉर्थ केपेल द्वीप भी कहते हैं. यहां कार्ली रैंडल काम करती हैं, जो एआईएमएस में कोरल रीस्टोरेशन प्रोग्राम की प्रमुख हैं. रैंडल बताती हैं लंबी अवधि की योजना तो यह है कि दसियों लाख नन्हे रीफ पैदा किए जाएं और उन्हें पूरे कोरल रीफ मे रोप दिया जाए.

ड्रोन से हो रही है समुद्री कछुओं की रक्षा

उनके दल ने प्रयोगशालाओं में अलग मौसम में रीफ पैदा करने में सफलता हासिल की है, जो लंबी अवधि की इस योजना की सफलता में पहला कदम है. अब कोशिश है कि इन नए पौधों में अधिक तापमान सहने की क्षमता बढ़ाई जाए. इसके लिए इंजीनियर ऐसे रोबोट बना रहे हैं जिनके सहारे पानी के नीचे ड्रोन छोड़े जाएंगे. ये ड्रोन ही नए रीफ रोपने का काम करेंगे.

रैंडल बताती हैं कि 10-15 साल में ये ड्रोन इतने सक्षम हो जाएंगे कि इन्हें पानी में उतारा जा सके. लेकिन वह चेताती हैं कि अगर "उत्सर्जन को काबू नहीं किया गया तो यह तकनीक कामयाब नहीं होगी.” रैंडल कहती हैं, "जो बहुत से तरीके तैयार किए जा रहे हैं उनमें से यह सिर्फ एक तरीका है. लेकिन, यदि हमने उत्सर्जन को नियंत्रति नहीं किया तो रीफ के लिए बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं.”

वीके/एए (एपी)