जन्म से हत्यारा होता है इंसान: स्टडी
२९ सितम्बर २०१६जब इन्सान पैदा होता है, तभी से उसके अंदर दूसरे इंसान की हत्या करने की प्रवृत्ति होती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इंसान भी उन स्तनधारी प्रजातियों में से है जो विकास के लिए अपनी ही प्रजाति के दूसरे जीवों की हत्या करते हैं. इस बारे में एक नया अध्ययन बताता है कि सभ्यता के विकास ने इंसान में हत्या की इस प्रवृत्ति को काफी हद तक काबू कर लिया है लेकिन जीन्स में यह प्रवृत्ति हमेशा से मौजूद रही है.
वैज्ञानिकों ने स्तनधारी जीवों की एक हजार प्रजातियों का अध्ययन किया और पाया कि जब भी कोई प्रजाति विकास वृक्ष के किसी पड़ाव पर होती है तो उसमें हिंसक प्रवृत्ति ज्यादा होती है. नेचर पत्रिका में छपी इस स्टडी में कहा गया है कि हिंसक स्तनधारी प्रजातियों में इंसान ऐसी प्रजातियों के साथ खड़ा है जिनमें हिंसा की प्रवृत्ति आनुवांशिक होती है. यानी कहा जा सकता है कि जब बच्चा पैदा होता है तो उसके अंदर हिंसा की प्रवृत्ति मौजूद होती है.
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स्तनधारियों में अपने जैसे जीवों की हत्या करने की प्रवत्ति औसतन हजार में 3 होती है. यानी मरने वाले हर हजार जीवों में से तीन की हत्या होती है. इंसान में और इंसान की सबसे नजदीकी प्रजातियों में यह औसत 20 तक हो सकता है. स्पेन की ग्रेनाडा यूनिवर्सिटी में हुए इस अध्ययन के प्रमुख लेखक होजे मारिया गोमेज हैं. वह कहते हैं कि इंसान अब तो बहुत कम हिंसक है, मध्य युग में यानी सन 700 से 1500 के बीच तो यह औसत 120 का था.
गोमेज कहते हैं कि अब एक हजार मरने वालों में 13 इंसानों की हत्या होती है. उन्होंने यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन के डेटा के आधार पर निकाला है. वह कहते हैं कि औसतन इंसान अब पहले से कम हत्याएं कर रहा है. गोमेज ने बताया, "ऐसा लगता है कि अब हम पहले से कम हिंसक हो गए हैं." हालांकि, गोमेज साथ ही यह भी कहते हैं कि आज भी किलर व्हेल्स इंसान से ज्यादा शांतिप्रिय जीव है. किलर व्हेल्स का नाम भले ही हत्यारिन हों लेकिन उनके बीच हत्याओं का औसत शून्य है. हालांकि गोमेज बताते हैं कि यह अनुमान बहुत छोटे सैंपल साइज पर आधारित है.
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व्हेल्स या चमगादड़ों जैसे जीव इन्सानों से कम हिंसक हैं लेकिन बबून की कुछ प्रजातियां या तेंदुए तो आज भी इंसान से कहीं ज्यादा हिंसक हैं. बंदरों की कई प्रजातियों में तो हत्या का औसत एक हजार पर 100 का है.
वीके/एके (एपी)