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यहां मुसलमान महिलाओं को नौकरी मिलना मुश्किल

२१ सितम्बर २०१६

जर्मनी में हुए एक अध्ययन ने से पता चला है कि सिर पर स्कार्फ पहनने वाली या फिर तुर्क नामों वाली महिलाओं को नौकरी के इंटरव्यू के लिए बहुत ही कम बुलाया जाता है.

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Forschungsinstitut zur Zukunft der Arbeit - Pressebild
तस्वीर: IZA Press

स्टडी बताती है कि कोई महिला तुर्क हो और स्कार्फ भी पहनती हो तो उसे इंटरव्यू के लिए कॉल किए जाने की संभावना सिर्फ 4.2 प्रतिशत है. यह अध्ययन मंगलवार को जर्मन संस्था ‘इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ लेबर' ने प्रकाशित किया है. इसके मुताबिक जब मुस्लिम महिलाएं नौकरी के लिए आवेदन करती हैं तो उन्हें बहुत भेदभाव झेलना पड़ता है- भले ही उनके पास वे योग्यताएं हों जो नौकरी के लिए जरूरी हैं.

रिपोर्ट के लेखक डोरिस वाइकजेलबाउमर ने जर्मनी के अलग अलग शहरों में नौकरी के लिए डेढ़ हजार फर्जी आवेदन भेजे. इनमें एक फर्जी नाम था ‘सांद्रा बाउर' जो एक आम जर्मन नाम है और आवेदन के साथ काली बालों की एक गोरी महिला की तस्वीर लगाई गई. दूसरे आवेदन में भी वही फोटो लगाई गई लेकिन वहां नाम ‘मेरयेम ओजतुर्क' रखा गया जो सुनने में तुर्क लगता है.

तीसरे आवदेन में भी वही तुर्क नाम इस्तेमाल किया गया, फोटो भी उसी महिला की थी लेकिन इसमें उसे स्कार्फ पहने दिखाया गया था. किसी भी एप्लिकेशन में आवेदक का धर्म नहीं लिखा गया था. लेकिन आवेदनों पर जिस तरह के जवाब मिले उससे भेदभाव साफ हो जाता है.

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‘सांद्रा बाउर' के आवदेनों पर इंटरव्यू कॉल की दर 18.8 प्रतिशत थी, बिना स्कार्फ वाली ‘मेरयेम ओजतुर्क' के लिए 13.5 प्रतिशत और स्कार्फ वाली के लिए सिर्फ 4.2 प्रतिशत कॉल. जर्मनी में अक्सर नौकरी के आवेदन के लिए फोटो भी भेजना होता है. जर्मनी में बड़ी संख्या में तुर्क मूल के लोग रहते हैं. इसके अलावा पिछले साल जर्मनी में दस लाख से ज्यादा प्रवासी आए हैं. कई जगहों पर जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की प्रवासी नीति का विरोध भी हो रहा है और राजनीतिक पंडित ‘ऑल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड' जैसी पार्टियों के उभार को इसी से जोड़ कर देखते हैं.

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वाइकजेलबाउमर कहते हैं, “मुसलमान (प्रवासी) समाज में महिलाओं का दर्जा निचला समझे जाने को लेकर पश्चिम में इन दिनों बहस गर्म है. लेकिन इस बात पर बहुत ही कम चर्चा हो रही है कि पश्चिमी बहुसंख्यक आबादी मुसलमान महिलाओं के साथ कैसा बर्ताव कर रही है.”

रिपोर्ट: एके/वीके (एएफपी, डीपीए)