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कला

सीरियाई कलाकारों के लिए चुंबक है बर्लिन

१८ नवम्बर २०१६

सीरिया से भाग रहे कलाकारों को बर्लिन सबसे ज्यादा भा रहा है. वे यहां आजादी महसूस कर रहे हैं और उन्हें काम करने के मौके भी मिल रहे हैं.

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Berlin Flüchtlingsunterkunft Junge Fahrrad
तस्वीर: Imago/C. Mang

मूर्तिकार हों या फिल्मकार, गायक हों या एक्टर, युद्धग्रस्त सीरिया से जो भी कलाकार भाग रहे हैं उनकी पहली पसंद जर्मनी की राजधानी बर्लिन है. वे ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां वे अपनी बात खुलकर कह सकें. पहले ऐसी जगहों के लिए खासतौर पर अरब कलाकार बेरूत या फिर पैरिस को चुनते थे. लेकिन हाल के सालों में यह दर्जा बर्लिन को मिल रहा है. इसकी वजह ये है कि काम आसानी से मिल जाता है और रहने की जगह भी सस्ती है.

सीरियाई जेल से छूटने के बाद एक्टर-डायरेक्टर जैद अदवान ने बर्लिन का रुख किया. दो साल पहले वह बर्लिन पहुंचे थे. वह कहते हैं कि बर्लिन रॉक और अनार्की का शहर है.

यह भी देखिए, कैसी थी बर्लिन की दीवार

बर्लिन कभी एक दीवार से बंटा शहर था. फिर जब दीवार गिरी तो पाबंदियों की जकड़ से बाहर निकलने को बेताब पूर्वी बर्लिन के युवाओं का मिलन पश्चिमी जर्मनी के उन युवाओं से हुआ जो तयशुदा सैन्य सेवा से बचने के लिए राजधानी में रहने आए थे. बर्लिन को विशेष दर्जा हासिल था इसलिए वहां रहने वालों के लिए सैन्य सेवा जरूरी नहीं थी. इसलिए देश के हर हिस्से से सैन्य सेवा से बचना चाह रहे लोग वहां चले आते थे. जब इन दो आजादख्याल तबकों का मेल हुआ तो खुलेपन का अद्भुत माहौल पैदा हुआ. यह माहौल सारी दुनिया के कलाकारों को अपनी ओर खींचता है. सीरिया के कलाकार भी कोई अपवाद नहीं हैं. 16 साल से बर्लिन में रह रहे सीरियाई कलाकार अली काफ कहते हैं, "बर्लिन के सांस्कृतिक परिदृश्य अब नये अंदाज में हैं." काफ हर साल करीब 20 शरणार्थियों को अलग अलग आर्ट स्कूलों में दाखिला दिलाने में मदद करते हैं. अदवान भी ऐसा ही कर रहे हैं. वह कहते हैं कि अब यहां दमिश्क जैसा लगने लगा है. अदवान बताते हैं, "दमिश्क ड्रामा स्कूल के मेरे कुछ छात्र आजकल शराणार्थी कैंपों में रह रहे हैं."

तस्वीरों में, आओ चलें बर्लिन

पत्रकार और फोटोग्राफर दोहा हसन को बर्लिन में कई पुराने दोस्त मिल चुकी हैं. 2011 में युद्ध शुरू होने के बाद से छह लाख लोग सीरिया से जर्मनी आ चुके हैं और बर्लिन के बारे में हसन कहती हैं कि दमिश्क जैसा ही लगता है. हालांकि बाहर से आए लोगों के लिए जिंदगी की शुरुआत आसान नहीं होती. मिस्र की बासमा अल-हुसैनी कहती हैं कि अपनी पढ़ाई जारी रखना या कला-कर्म को आगे बढ़ाना नए पहुंचे लोगों के लिए आसान नहीं होता. अल-हसैनी ने एक संस्था स्थापित की है जो शरणार्थी कलाकारों की मदद करती है.

इस बीच अदवान ने एक जर्मन प्रकाशक मारियो म्युएन्स्टर के साथ मिलकर अंग्रेजी पत्रिका शुरू करने की योजना बनाई है जिसमें युवा जर्मन कलाकारों को सीरियाई शरणार्थी कलाकारों से जोड़ने की कोशिश की जाएगी.

वीके/ओएसजे (डीपीए)