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जो रोशनी से रचते हैं अविश्वनीय सच का मायाजाल

२० जनवरी २०१७

दुनिया भर में कई कलाकार आम जिंदगी में खास अनुभव देने की कोशिश कर रहे हैं. दो जर्मन कलाकार तकनीक की मदद से मायाजाल रच रहे हैं. वह भी बिना किसी कंप्यूटर एनीमेशन की मदद लिए बिना.

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DW Sendung Euromaxx Lichtkollektiv
तस्वीर: DW

जर्मन कलाकारों तारेक मवाद और फ्रीडरिष फान शूर की शॉर्ट फिल्म 'लुसिड' में अनछुई प्रकृति में जगमगाती आकृतियां नजर आती हैं. ये दोनों कलाकार सरियल यानी अविश्वनीय सच को दिखाने के लिए जाने जाते हैं. इसकी खासियत है कि यहां कंप्यूटर एनीमेशन का इस्तेमाल नहीं किया गया है. ये लोग ऐसी आर्ट इंसटॉलेशन बनाते हैं जो इस दुनिया की चीज ही नहीं लगते. समझ में न आने वाले इंस्टॉलेशन भी असली हैं. उन्हें सचमुच उन जगहों पर लगाया गया है.

तारेक मवाद और फ्रीडरिष फान शूर ने अपनी शारीरिक और रचनात्मक क्षमताओं का प्रदर्शन किया है. खुद चमकने वाली तारों और सतहों के अलावा वे अक्सर असाधारण चीजों का भी इस्तेमाल करते हैं ताकि मायाजाल रचा जा सके. तारेक मवाद कहते हैं, "हम दरअसल हर चीज का इस्तेमाल करते हैं जो चमकती हो. हर बार सवाल यह होता है कि आप क्या दिखाना चाहते हैं.”

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वहीं फ्रीडरिष फान शूर का कहा है, "जिन तकनीकों और मैटीरियल से हम काम करते हैं वे घरेलू चीजें होती हैं, जिन्हें थोड़ा बदल दिया जाता है, कभी लैंप तो कभी कोई और चीज, जैसे कि वह बॉल आईकेया का लैंप था. कभी कभी हम प्रोजेक्शन से भी काम करते हैं. जैसे कि यदि कोई त्रिकोण वाली जगह हो जिसे हमने कार्डबोर्ड से काटा हो, तो फिर उसे सामान्य रंग के साथ प्रोजेक्ट किया जाता है.”

दोनों आर्टिस्ट सामान्य लेकिन चतुराई भरे करतबों के साथ काम करते हैं. चमकने वाले तत्वों को नायलोन के धागों की मदद से टाइट किया जाता है और पतंग के सहारे ऊपर चढ़ाया जाता है. अपनी नई फिल्म के लिए दोनों आर्टिस्ट ऑस्ट्रिया और आइसलैंड गए. उन्होंने बियाबान में कई हफ्ते गुजारे. अकेले ही दो दीवाने. क्या चीज उन्हें खींचती है? जोखिम का रोमांच.

प्रकृति ही प्रकृति

तारेक मवाद कहते हैं, "हमें ये स्याह, धुंध पसंद है, जब सचमुच अंधेरा हो. और जब आप कुछ हद तक तन्हाई और उदासी के माहौल में हों.” फ्रीडरिष फान शूर की इस बारे में राय है, "मुझे लगता है कि इसकी वजह कहीं न कहीं यह भावना होती है कि आपका उस पर कोई नियंत्रण नहीं है. आप बाहर प्रकृति में हैं और वह उस समय जैसा है वैसा है. और ये बात है जो हमें अच्छी लगती है.”

इन दोनों ने 2014 में एक शॉर्ट फिल्म 'बायोल्युमिनेसेंट फॉरेस्ट' बनाई थी. इसमें भी रोशनी के सारे इफेक्ट्स को सीधे प्रोजेक्ट किया गया था. तारेक मवाद और फ्रीडरिष फान शूर इसके लिए अच्छी खासी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. इस प्रक्रिया को प्रोजेक्शन मैपिंग कहते हैं. इस तरह जंगल के एक हिस्से में रोशनी की जाती है. उन्हें असमान सतह और संरचना के अनुकूल बनाया जाता है. इसके लिए सटीक कंसेप्ट के अलावा संयम की भी जरूरत होती है, खासकर तब जब ऑब्जेक्ट न सिर्फ थ्रीडाइमेंशनल हों बल्कि हिलते डुलते भी हों.

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तारेक मवाद बताते हैं, "हमने मुख्य रूप से स्थिर ऑबजेक्टों पर प्रोजेक्ट किया है, लेकिन इस बात का ध्यान रखा कि वहां जानवर हों जो खुद हिल डुल सकते हैं या कम से कम खास समय पर स्थिर रह सकते हों. मेंढक के लिए हमें पांच घंटे लगे क्योंकि हर बार वह कूद कर भाग जाता था.” ये कलाकार भविष्य में भी छलावा रचते रहेंगे, अपनी मेहनत और आयडियाज के जरिए.