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यूपी के नक्सल प्रभावित जिलों में बंट रही है 'विश्वास पर्ची'

फैसल फरीद
७ फ़रवरी २०१७

उत्तर प्रदेश के तीन नक्सल प्रभावित जिलों में चुनाव के लिए विशेष तैयारियां की गई हैं. लोगों के बीच 'विश्वास-पर्ची' बांटी जा रही हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/M. Swarup

कहने को तो उत्तर प्रदेश में पिछले 12 साल में कोई बड़ी नक्सली घटना नहीं हुई है लेकिन प्रदेश के तीन जिलों में अभी भी नक्सल छाया मौजूद है. ये तीनों जिले चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र लाल गलियारे के अंतर्गत आते हैं जिनमें नक्सली प्रभावी रहते हैं. अब जब वक्त चुनाव का है तो में इन तीन जिलो में वोटिंग करवाना भी एक चुनौती है.

यहां के लोगों के भयमुक्त रखने के लिए प्रशासन ने इस बार एक पहल की है. पुलिस प्रशासन के अधिकारी गांव गांव जाकर लोगों को विश्वास दिला रहे हैं कि बिना डरे मतदान करें. लोगों के बीच पर्चियां भी बांटी जा रही हैं जिन्हें 'विश्वास-पर्ची' कहा जा रहा है. कोशिश पूरी है कि लोगों का डर खत्म हो और वे वोट डालने निकलें.

प्रशासन के लिए लाल गलियारे के जिलों में चुनाव करवाना हमेशा से टेढ़ी खीर रहा हैं. इस बार भी अतिरिक्त चौकसी बरती जा रही है ताकि चुनाव शांतिपूर्ण और नक्सली के प्रभाव से मुक्त रहे.

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नक्सलियों ने वर्ष 2004 में चंदौली जिले में बड़ा हमला किया था. नौगढ़ थाना क्षेत्र में हिनऊत घाट में नक्सलियों ने माइंस ब्लास्ट के द्वारा 17 पीएसी जवानों को शहीद कर दिया था. हालांकि उसके बाद भी छिटपुट घटनाएं होती रही हैं लेकिन ये घटनाएं अक्सर प्रशासन तक पहुच नहीं पातीं या फिर नजरंदाज कर दी जाती हैं. लेकिन इन घटनाओं में बहुत कुछ छिपा रहता है. कई बार गांव वालों को पीट दिया जाता है या फिर धमकाया जाता है. ऐसे में नक्सलियों द्वारा सन्देश दे दिया जाता है कि उनका प्रभाव कायम है और मतदान में लोग भयभीत रहें.

पिछले साल भाभ्नी थाना क्षेत्र में धमकी भरा पत्र मिलने की सूचना आई. कई जगह पर निर्माण कार्य में लगे ठेकेदारों से वसूली की धमकी की खबर आई. और चूंकि सोनभद्र की सीमा छतीसगढ़, झारखण्ड, बिहार और मध्यप्रदेश से सीधी लगी है, ऐसे में दूसरे राज्य के सीमावर्ती गांव से लोगों का आना जाना लगा रहता है. इन जगहों पर आपको दूसरे राज्य की नंबर प्लेट वाली गाड़ियां ज्यादा दिखेगी और उत्तर प्रदेश की कम. अब इन दूसरे प्रदेश के आसपास के गांव में भी अगर कोई नक्सली धमकाने की घटना करते हैं तो उसका सीधा असर इन तीन जिलो में पड़ता है. सन्देश चला जाता हैं कि नक्सली अभी प्रभावी हैं और भय व्याप्त हो जाता है.

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अभी दो महीने पहले नक्सलियों ने बिहार के रोहतास जिले के सलमा गांव में चरवाहों की पिटाई कर दी. इसका असर इन जिलों में भी पड़ा. ऐसे में विधान सभा चुनाव को इन तीन राज्यों के नक्सली भी प्रभावित कर सकते हैं. नक्सली दूसरे राज्य से आकर घटना को अंजाम देकर भाग जाते हैं. वैसे सोनभद्र को ऊर्जांचल भी कहा जाता हैं क्योंकि यहां प्रदेश के लगभग सभी थर्मल पावर प्लांट मौजूद हैं. फिर भी क्षेत्र पिछड़ा है, माइनिंग होती है लेकिन उसमें भी अवैध खनन से ठेकेदारों की पौ बारह रहती है.

पहली बार इस क्षेत्र में दो विधान सभा दुद्धी और ओबरा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं. क्षेत्र में अधिकांश लोगों का जीवन दुष्कर है क्योंकि स्वास्थ्य सेवाएं, शैक्षिक व्यवस्था सब पटरी से उतरी हुई हैं.

स्थानीय लोगों और खबरों की मानें तो पुलिस की लिस्ट में अभी भी लगभग 90 नक्सली हैं जिनमें 35 जमानत पर हैं. दो फरार बताये जाते हैं. अभी पिछले साल ही अक्टूबर में दो नक्सली नोएडा की हिंडन विहार कॉलोनी से पकड़े गए थे और हलचल यहां मच गयी थी. वैसे पोलिंग पार्टी पर डायरेक्ट हमला 2002 में नक्सलियों ने किया था जब नोनवट गांव में नक्सलियों ने हमला किया. कोई हताहत नहीं हुआ था. इस बार हालात बेहतर हैं लेकिन नक्सली प्रभाव को पूरी तरह से नाकारा नहीं जा सकता. पुलिस प्रशासन ने अपने स्तर से तैयारी  शुरू कर दी है. बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर बैरियर लगा कर वाहन चेकिंग चल रही है. पुलिस गश्त के साथ साथ तलाशी अभियान भी जारी है. प्रशासन ने ऐसे सभी बूथों को क्रिटिकल की श्रेणी में रखा दिया है. इन बूथों पर अर्धसैनिक बल के साथ साथ पीएसी के सशस्त्र जवान तैनात रहेंगे.

अखिलेश यादव, एक विनम्र बागी