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पाकिस्तान की अमेरिका से नहीं बन रही बात

ब्रजेश उपाध्याय, वाशिंगटन
९ अक्टूबर २०१७

ट्रंप प्रशासन ने अपनी नई अफगानिस्तान नीति में पाकिस्तान से जिस तरह की भूमिका की उम्मीद लगा रखी है, उसके पूरे होने के आसार फिलहाल नहीं नजर आ रहे हैं.

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Khawaja Muhammad Asif
तस्वीर: picture alliance / AP Photo

दोनों देशों के आपसी रिश्तों में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा कड़वाहट नजर आ रही है और आपसी विश्वास की जो खाई है उसमें भी और इजाफा ही हुआ है. पिछले हफ्ते जब पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ वॉशिंगटन के दौरे पर आये तो उम्मीद की जा रही थी कि वह ठंडे पड़ रहे रिश्तों में जान फूंकने की कोशिश करेंगे.

लेकिन थिंक टैंकों और कुछ अन्य मंचों पर जो उनके बयान आये उनमें टकराव और शिकायत के सुर मेल-मिलाप की बातों से कहीं ज़्यादा तेज थे और कुछ विश्लेषकों ने उसे एक हताशा की तौर पर भी देखा. ख्वाजा आसिफ ने उन अमरीकी आरोपों को "खोखला” कहा जिनमें कहा जा रहा है कि अभी भी पाकिस्तानी जमीन पर आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह मौजूद हैं और पाकिस्तान अपने पड़ोसियों  के खिलाफ आतंकवाद को एक अहम हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है. पाकिस्तानी विदेश मंत्री का कहना था, "अपने सत्तर साल पुराने दोस्तों के साथ इस तरह से बात नहीं की जाती.”

उन्होंने ख़ासतौर से अमरीकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस पर बगैर नाम लिए हुए निशाना साधते हुए कहा, "जब कोई हमसे यह कहता है कि हमें आखिरी मौका दिया जा रहा है, हमें यह बर्दाश्त नहीं है. आखिरी मौका, दूसरा मौका, पहला मौका ये सब हमें कबूल नहीं है. हमें और कुछ नहीं चाहिए, हम सिर्फ़ ये चाहते हैं कि हमारे साथ बराबरी का और सम्मानजनक बर्ताव हो.”

रक्षा मंत्री मैटिस ने अमरीकी सेनेट के सामने पिछले हफ्ते ही कहा था कि तालिबान को काबू में लाने के लिए वह "एक और बार” पाकिस्तान के साथ काम करने के हक में हैं लेकिन अगर वह नाकाम रहा तो "राष्ट्रपति हर संभव कदम उठाने के लिए तैयार हैं.”

मैटिस ने यह भी कहा कि इसमें पाकिस्तान को गैर-नाटो सहयोगी देश के दर्जे से हटाना भी शामिल होगा. अगर ऐसा होता है तो ये पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका माना जाएगा. अमरीका में काफी हद तक यह सोच जड़ पकड़ चुकी है कि अफगानिस्तान में मिली नाकामी के पीछे पाकिस्तान का अहम किरदार रहा है.

अमरीकी फौज के सर्वोच्च अधिकारी जनरल जोजफ डनफर्ड ने भी कांग्रेस के सामने कहा कि ये "स्पष्ट है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के तार आतंकवादी संगठनों से जुड़े हैं.” न्यूयॉर्क में एक सभा में बोलते हुए ख्वाजा आसिफ का कहना था कि यह कहना बेहद आसान है कि पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क, हाफिज सईद और लश्करे तैयबा का साथ देता है. उनका कहना था, "ये हमारे लिए सरदर्द हैं. हमें वक्त दें और हम इस सरदर्द को खत्म करेंगे. आप हमारा सरदर्द और बढ़ा ही रहे हैं.”

अफगानियों के जख्मों पर संगीत का मरहम लगाता अमेरिकी

उनका कहना था कि अमेरिका पाकिस्तान की कुर्बानियों को नजरअंदाज कर रहा है और इस बात को भूल रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की सबसे अहम भूमिका रही है. लेकिन ट्रंप प्रशासन और कांग्रेस दोनों ही जगह ये सोच बनती नजर आई है कि पाकिस्तान की बातों पर नहीं बल्कि वो जमीन पर क्या कर रहा है उस पर नजर रखी जानी चाहिए.

विश्लेषकों का कहना है कि फिलहाल ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है कि पाकिस्तान अपनी नीतियों में कोई बड़ी तब्दीली करेगा क्योंकि अभी भी उनकी अफगानिस्तान नीति भारत के खिलाफ एक रणनीतिक ढाल की तरह है. अमेरिका की तरफ से अफगानिस्तान में भारत की और बड़ी भूमिका की पैरवी ने भी पाकिस्तानी नीति-निर्धारकों में असुरक्षा की भावना को और मजबूत ही किया है और वे ऐसा कोई कदम शायद ही उठाएं जिससे अफगानिस्तान पर उनके प्रभाव में कमी आये.

आने वाले दिनों में दो बड़े अमरीकी प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान के दौरे पर जाएंगे और उसके फौरन बाद इस महीने के अंत में अमरीकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और फिर अगले महीने रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस भी पाकिस्तान के दौरे पर जा रहे हैं.

पाकिस्तान की घरेलू राजनीति में इसे अमरीका की नजरों में पाकिस्तान की अहमियत की तौर पर पेश किया जाएगा लेकिन वॉशिंगटन में माना जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन इन दौरों से पुरजोर तरीके से दबाव बनाने की कोशिश में है. विश्लेषकों की राय में अमरीका और पाकिस्तान के रिश्ते एक गंभीर संकट से गुजर रहे हैं और आने वाले दिनों में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए.