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बूढ़े होते अफ्रीकी किसानों के सामने भविष्य की चिंता

२६ जनवरी २०१७

एक अनुमान के मुताबिक साल 2050 तक महाद्वीप की जनसंख्या 1.20 अरब से बढ़कर 2.40 अरब तक पहुंच जाएगी लेकिन इस मुताबिक खाद्य जरूरतों की तैयारी करना पूरे अफ्रीका के लिए एक चुनौती है.

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Kenia - Eine Frau auf dem Maisfeld
तस्वीर: CC-BY-SA-cimmyt

अगर अफ्रीका भविष्य में देश की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहता है तो इसे अगले 15 सालों में अपने उत्पादन को 60 फीसदी तक बढ़ाना होगा. एक अनुमान के मुताबिक साल 2050 तक महाद्वीप की जनसंख्या 1.20 अरब से बढ़कर 2.40 अरब तक पहुंच जाएगी लेकिन इस मुताबिक खाद्य जरूरतों की तैयारी करना पूरे अफ्रीका के लिए एक चुनौती है.

विश्व आर्थिक मंच में अफ्रीका का प्रतिनिधित्व करने वाली एल्सी केंजा के मुताबिक देश का कृषि क्षेत्र अब तक उत्पादन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने बताया कि वह खुद एक ऐसे परिवार से आती हैं जिसका मुख्य पेशा कृषि हुआ करता था. केंजा कहती हैं, "तमाम अफ्रीकी शिक्षित लोगों की ही तरह मैंने भी गांव में रहने की बजाय शहरी जिंदगी को चुना.” फिलहाल अफ्रीका में कृषि के लिए हालात ठीक नहीं हैं. यहां किसानों की औसतन उम्र 65 पर पहुंच गई है.

जर्मनी की राजधानी बर्लिन में एजीसीओ-अफ्रीका सम्मेलन में केंजा ने बताया कि अफ्रीकी कृषि क्षेत्र उम्रदराज लोगों की मार झेल रहा है, इनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर है और भविष्य की कोई जानकारी ही नहीं.

इस मौके पर जर्मनी के कृषि मंत्री क्रिस्टीन श्मिट ने अपने संबोधन में कहा कि अफ्रीका के कृषि कारोबार में बहुत संभावनाएं हैं. उन्होंने कहा कि अफ्रीका के कृषि क्षेत्र को ऐसे विकास की जरूरत है जो सतत हो लेकिन पर्यावरण के अनुकूल भी हो.

दरअसल अफ्रीका में अब भी कृषि कार्यों में उन्नत मशीनरी का प्रयोग नहीं किया जाता. इसलिए एजीसीओ का विशेष झुकाव इसके बाजारों की ओर है.

एक गैर लाभकारी संस्था के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कृषि उपकरणों के दो तिहाई बाजार में एजीसीओ और दो अन्य कारोबारी समूह का प्रभुत्व है. वहीं जर्मन सरकार भी अफ्रीका में कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देने पर जोर दे रही है. एक अनुमान के मुताबिक अफ्रीका की 60 फीसदी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है.

अफ्रीकी किसान संगठन के मुताबिक छोटे किसानों को नई तकनीकों के अपनाने के लिए पैसा चाहिए, लेकिन यहां का किसान पैसे की कमी से जूझ रहा है. यहां तक कि इनके पास पैसे की व्यवस्था करने के लिए कोई मॉडल ही नहीं है.

यही कारण है कि कई विशेषज्ञ इन छोटे किसानों को सहकारी समितियों में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं ताकि किसानों की क्रयशक्ति में इजाफा हो सके और इनके मौजूदा हालातों में सुधार आ सके.

डेनियल पीट्ज/एए