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क्या ट्रंप वाकई पाकिस्तान को 'काबू' कर सकते हैं?

शामिल शम्स
३ जनवरी २०१८

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक बार फिर पाकिस्तान को जमकर खरी खोटी सुनाई है. लेकिन ट्वीट और आलोचना से परे देखें तो क्या अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप वाकई पाकिस्तान से अपनी मांगें मनवा सकते हैं?

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Pakistan Feierlichkeiten 70. Unabhängigkeitstag
तस्वीर: picture-alliance/abaca/S. Mazhar

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 2018 में अपना पहला ट्वीट पाकिस्तान के बारे में किया. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अमेरिका से "झूठ और धोखेबाजी" के बदले अरबों डॉलर लेता रहा है. उन्होंने लिखा, "अमेरिका ने पिछले 15 साल में पाकिस्तान को मूर्खता पूर्ण तरीके से 33 अरब डॉलर की मदद दी है जबकि उन्होंने हमें झूठ और धोखे के सिवाय कुछ नहीं दिया है. वे समझते हैं कि हमारे नेता मूर्ख हैं. वह उन आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह मुहैया कराता है, जिन्हें हम अफगानिस्तान में तलाश रहे हैं. अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा."

पाकिस्तान को चरमपंथी गुटों से खतरा है: अमेरिका

पाकिस्तान ने ट्रंप के इस बयान को सख्ती से खारिज किया है. पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत को तलब कर इस बारे में तीखा विरोध जताया गया. पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने मीडिया से बातचीत में कहा कि पाकिस्तान ने अमेरिका के लिए अब बहुत कर लिया. उन्होंने कहा, "हमने पहले ही अमेरिका को बता दिया है कि अब हम और कुछ नहीं करेंगे, इसलिए ट्रंप का 'अब और नहीं' हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता."

पाकिस्तान में नाराजगी

पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली. बहुत से पाकिस्तानी कह रहे हैं कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने सारे रिश्ते तोड़ दे. पाकिस्तान का कहना है कि उसने अफगानिस्तान में सक्रिय चरमपंथी गुटों के खिलाफ युद्ध में अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मदद के लिए हर संभव कदम उठाए हैं. लेकिन बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान की ताकतवर सेना बहुत से चरमपंथी गुटों को इस्तेमाल कर रही है ताकि अफगानिस्तान और भारत की सरकार पर दबाव बनाया रखा जा सके. कई पाकिस्तानी विश्लेषकों की भी यही राय है. लेकिन पाकिस्तान ऐसे सभी आरोपों से इनकार करता है.

अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का प्रशासन पाकिस्तान से निपटने के बारे में कहीं ज्यादा चौकन्ना था जबकि मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप खरी खरी सुनाने वाले व्यक्ति हैं. पिछले साल अगस्त में ट्रंप ने अफगानिस्तान पर अपने नीतिगत भाषण में पाकिस्तान को अमेरिका के लिए "बड़ी समस्या" बताया. अब उनके ताजा ट्वीट के बाद पाकिस्तान से अमेरिका के रिश्ते बिल्कुल रसातल में चले गए हैं. लेकिन पाकिस्तान को लगता है कि अमेरिका उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा क्योंकि उसे चीन का समर्थन हासिल है. इसके बाजवूद पाकिस्तान में एक असहजता जरूर है क्योंकि कोई भी अमेरिका की ताकत को कम करके नहीं आंकता है.

पाकिस्तान की अमेरिका से नहीं बन रही बात

लेकिन सवाल यह है कि ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान से अपनी मांगें मनवाने के लिए भला कर क्या सकता है? इस बात में कोई शक नहीं कि अमेरिका पाकिस्तान की मदद के बिना अफगानिस्तान में अपने सैन्य लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता है. इसके अलावा अगर परमाणु शक्ति से लैस पाकिस्तान अस्थिर होता है तो इससे पूरे क्षेत्र ही नहीं, बल्कि दुनिया भर की शांति के लिए खतरा पैदा हो सकता है. अकसर पाकिस्तानी परमाणु हथियारों के चरमपंथियों के हाथ में चले जाने को लेकर भी आशंका जताई जाती रही हैं. अमेरिका की तरफ से पाकिस्तानी सरजमीन पर किसी भी एकतरफा कदम या प्रतिबंध से भी अमेरिका के खिलाफ आग और भड़क सकती है. लेकिन ट्रंप के पास कुछ विकल्प तो जरूर हैं.

सैन्य मदद में कमी

ट्रंप प्रशासन ने पहले ही पाकिस्तान की सैन्य मदद में कटौती कर दी है. सोमवार को व्हाइट हाउस ने कहा कि पाकिस्तान अपने यहां मौजूद चरमपंथी नेटवर्कों के खिलाफ कार्रवाई करने को तैयार नहीं है, इसलिए अमेरिका उसे दी जाने वाली 25.5 करोड़ डॉलर की रकम को रोके रखेगा. अगस्त में अमेरिकी प्रशासन ने अस्थायी रूप से इस रकम पर रोक लगाई थी, जो कांग्रेस की तरफ से पाकिस्तान के लिए मंजूर 1.1 अरब डॉलर के सहायता पैकेज का हिस्सा है.

एक पाकिस्तानी रक्षा विश्लेषक और पूर्व सैन्य अधिकारी एजाज आवान कहते हैं कि अमेरिका अगर मदद में कमी करता है, तो फिर पाकिस्तान को रूस जैसे नए सहयोगी तलाशने होंगे. उन्होंने कहा, "अमेरिका अफगानिस्तान में नाकाम हो रहा है. अब वह अपनी सारी नाकामियों का ठीकरा पाकिस्तान के सिर फोड़ना चाहता है."

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अलबत्ता पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को अमेरिकी नाराजगी की भारी कीमत अदा करनी पड़ सकती है. पाकिस्तान विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पर बहुत निर्भर है और इन दोनों ही संस्थाओं पर अमेरिका का खासा प्रभाव है. अमेरिका अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा सकता है. अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके अशरफ जहांगीर काजी कहते हैं, "अमेरिका पाकिस्तान से नॉन-नाटो सहयोगी का दर्जा छीन सकता है. पाकिस्तान को भी वित्तीय मदद की जरूरत है और अमेरिका का अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों पर बहुत अधिक प्रभाव है. वह उनसे पाकिस्तान को ऋण न देने के लिए कह सकता है."

उधर, चीन पाकिस्तान में भारी निवेश कर रहा है, लेकिन उसकी तरफ से पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद का अमेरिकी सैन्य मदद से कोई मुकाबला ही नहीं किया जा सकता.

अहम लोगों पर प्रतिबंध

अमेरिकी सरकार कुछ पाकिस्तानी सैन्य और सरकारी अधिकारियों पर व्यक्तिगत प्रतिबंध लगा सकती है. यह पाकिस्तान, और खास कर पाकिस्तानी सेना के लिए खासा शर्मिंदगी वाला कदम होगा. माना जाता है कि बहुत से पाकिस्तानी आला सैन्य अधिकारियों के अमेरिका समेत अन्य देशों में बैंक खाते हैं. काजी कहते हैं, "अमेरिका हक्कानी नेटवर्क का हवाला देते हुए पाकिस्तान पर और प्रतिबंध लगा सकता है. दूसरी तरफ, पाकिस्तान अपने यहां से गुजरने वाली नाटो सप्लाई को रोक सकता है. फिलहाल अफगानिस्तान में 20 हजार अमेरिकी सैनिक और 50 हजार अमेरिकी कॉन्ट्रैक्टर मौजूद हैं. इससे अमेरिका को समस्या हो सकती है." अगर ट्रंप यह कदम उठाते हैं तो इससे पाकिस्तानी सेना को खासा नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि ऐसा लगता नहीं है कि नौबत यहां तक पहुंचेगी.

इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान को भी उन देशों की सूची में डाल सकता है जिनके नागरिकों के अमेरिका आने पर बैन है. अभी इनमें ईरान, सीरिया, यमन, सोमालिया और चाड शामिल हैं, जबकि उत्तर कोरिया और वेनेजुएला के कुछ सरकारी अधिकारी भी अमेरिका नहीं जा सकते. ट्रंप सरकार ने जब 2017 के शुरुआत में ट्रैवल बैन वाले देशों की सूची जारी की थी तो बहुत से लोग इनमें पाकिस्तान और सऊदी अरब का नाम न होने पर हैरान थे. ट्रंप प्रशासन ने कहा था कि इन देशों से चरमपंथी अमेरिका आ सकता हैं, इसलिए देश को सुरक्षित रखने के लिए यह कदम उठाया गया है.

आतंकवादी देश

अमेरिका पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर ड्रोन हमलों की संख्या बढ़ा सकता है. हालांकि पाकिस्तान में अमेरिकी ड्रोन हमलों का बहुत विरोध होता है. लेकिन इन हमलों में कई बड़े चरमपंथी नेता मारे गए हैं जिनमें मई 2016 में तालिबान के पूर्व प्रमुख मुल्ला अख्तर मंसूर की मौत भी शामिल है. 26 दिसंबर 2017 को पाकिस्तान के कबायली इलाके में ड्रोन हमले में हक्कानी नेटवर्क के एक बड़े नेता जमीउद्दीन की मौत हुई. हालांकि ट्रंप सरकार ने ज्यादा ड्रोन हमले नहीं किए हैं. लेकिन ट्रंप इन्हें भी पाकिस्तान के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं.

चरमपंथियों को रोकने में कामयाब होगा पाकिस्तान?

हालात अगर ज्यादा ही खराब होते हैं तो अमेरिका एकतरफा तौर पर पाकिस्तान को आतंकवाद का प्रायोजक देश घोषित कर सकता है, क्योंकि इस कदम पर संयुक्त राष्ट्र का समर्थन हासिल करना मुश्किल होगा. अभी अमेरिका ने ईरान, उत्तर कोरिया, सूडान और सीरिया को इस सूची में रखा हुआ है. जुलाई 2017 में जारी अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान भी उन देशों और क्षेत्रों में शामिल है जो आंतकवादियों को सुरक्षित पनाहगाहें मुहैया कराते हैं. रिपोर्ट कहती है कि 2016 में लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे गुट देश में खुले आम लोगों को भर्ती और उन्हें ट्रेनिंग देने के अलावा चंदा जमा करने की गतिविधियां चला रहे थे.

आतंकवाद के प्रायोजक के तौर पर चिन्हित देशों पर अमेरिका के कड़े प्रतिबंध लागू होते हैं जिनके तहत उन्हें हथियार संबंधी निर्यात और बिक्री पर रोक लगा दी जाती है और वे फिर आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं से भी लोन हीं ले पाते हैं. अहम लोगों और कंपनियों पर भी प्रतिबंध लागू होते हैं. जानकार कहते हैं कि यह पाकिस्तान के खिलाफ अमेरिका का आखिरी हथियार होगा.