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स्कूली बच्चों के बीच बढ़तीं ड्रग्स से जर्मनी परेशान

२४ जनवरी २०१७

स्कूलों के बाथरूम में नशीली सिगरेट पीना और मैदानों में बैठकर नशीली दवाएं खाना इस तेजी से बढ़ रहा है कि समाज और अधिकारी परेशान हो गए हैं.

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Symbolbild Drogen Spritze Junkie
तस्वीर: picture alliance/JOKER

जर्मन गृह मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि स्कूलों में नशीली दवाओं से जुड़े अपराध करने वाले बच्चों की संख्या जितनी अब है, उतनी पहले कभी नहीं थी.

मिसाल के तौर पर दक्षिण-पश्चिमी राज्य बाडेन-वुर्टेमबर्ग में 2011 से 2015 के बीच स्कूलों में ड्रग्स से जुड़े अपराध तीन गुना हो गए हैं. 2012 में ऐसे 348 मामले दर्ज हुए थे जबकि 2015 में ये बढ़कर 939 हो गए. यही हाल सैक्सनी राज्य का है जहां मामले 42 से बढ़कर 109 पर पहुंच गए. जर्मनी के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थराइन वेस्टफालिया में ऐसे अपराध 443 से बढ़कर 897 हो गये हैं. राइनलांड-पलैटिनेट, लोअर सेक्सनी और हेसे में भी ऐसे अपराधों में बढ़ोतरी हुई है.

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ज्यादातर मामले नशीली दवाएं रखने या खरीदने के हैं. और ऐसे मामलों में शामिल ज्यादातर छात्र 14 वर्ष से ज्यादा के थे. संघीय ड्रग कमिश्नर मार्लेने मोर्टलर ने कहा कि इन अपराधों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण समाज में नशीली दवाओं को कम करके आंकना है.

बावेरिया राज्य का गृह मंत्रालय मानता है कि नशीली दवाओं के इस्तेमाल को समाज ज्यादा गंभीरता से नहीं ले रहा है. गृह मंत्रालय के मुताबिक, "ये दवाएं ऐसे युवाओं के बीच फैलाई जा रही हैं जो इंटरनेट पर सक्रिय हैं. दवाओं को ऐसी मजेदार चीज के रूप में पेश किया जा रहा है जिसका कोई खतरा नहीं है." साथ ही, दवाओं को खरीदने में आसानी भी प्रसार की एक वजह है. इंटरनेट के नेटवर्क पर ऐसी दवाएं आसानी से खरीदी जा रही हैं.

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मोर्टलर कहती हैं, "खासकर युवा लोगों को इसके बारे में समझाना प्राथमिकता है." कई राज्यों ने ऐसे कार्यक्रम शुरू किए हैं. साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य शिक्षा केंद्र भी 'क्विट द शिट' नाम से एक प्रोग्राम चला रहा है जिसमें बच्चों को ड्रग्स के बारे में जागरूक किया जाता है. म्यूनिख की लुडविग माक्सिमिलान यूनिवर्सिटी की एफा होख बताती हैं कि रोकथाम के लिये कई कदम उठाए हैं लेकिन उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि ये कदम कितने प्रभावशाली हैं. जर्मनी में भांग के इस्तेमाल पर रिसर्च कर रहीं होख कहती हैं, "स्कूलों में इस बारे में चर्चा हुई. लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि चर्चा के बाद बच्चों में ये भावना पनपी कि एक बार करके देखते हैं? इसका हमें पता नहीं है."

वीके/एके (डीपीए)