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कम उम्र में ही क्यों ब्याह दी जाती हैं पाकिस्तानी लड़कियां

एस खान, इस्लामाबाद
२५ नवम्बर २०२२

पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में हाल में पांच साल की लड़की की शादी का मामला सामने आया है. इस घटना ने एक बार फिर बाल संरक्षण के साथ-साथ पारिवारिक मामलों में कट्टरपंथी मौलवियों की भूमिकाओं पर बहस तेज कर दी है.

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पाकिस्तान में बाल विवाह का शिकार बनती लड़कियां
पाकिस्तान में कम उम्र में लाखों लड़कियों की शादी हो जाती हैतस्वीर: Fareed Khan/AP/picture alliance

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में अक्टूबर महीने में पुलिस को यह सूचना मिली थी कि पांच साल की लड़की को शादी के अनुबंध के लिए मजबूर किया गया. पुलिस ने इस सूचना के आधार पर कार्रवाई करते हुए दो लोगों को गिरफ्तार किया है.

इस मामले पर लड़की के चाचा ने कहा कि एक स्थानीय व्यक्ति ने अपने बेटे की शादी उस लड़की से करने के लिए दबाव बनाया और लड़की के पिता को शादी का अनुबंध स्वीकार करने के लिए मजबूर किया. चाचा ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमने इस बात पर काफी जोर दिया कि लड़की की उम्र काफी कम है. अभी इसकी शादी नहीं की जा सकती, लेकिन वे नहीं माने. शादी का वीडियो रिकॉर्ड करने के बाद हमने इसकी सूचना पुलिस को दी.”

स्थानीय पुलिस प्रमुख ने कहा कि शादी की व्यवस्था करने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन यह मामला अभी बंद नहीं हुआ है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "हम अभी शादी कराने वाले मौलवी की तलाश कर रहे हैं.”

लाखों लड़कियां होती हैं बाल विवाह का शिकार

यह घटना महज एक उदाहरण है. यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान में करीब 1.9 करोड़ बालिका वधु हैं. सामान्य शब्दों में कहें, तो इनकी शादी काफी कम उम्र में कर दी गई. यूनिसेफ के अनुमान के मुताबिक, 46 लाख लड़कियों की शादी 15 वर्ष की उम्र से पहले और 1.89 करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी.

पाकिस्तान में लड़कियों के बाल विवाह का दंश
जाफराबाद, नसीराबाद जैसे सीमांत इलाके में बाल विवाह की घटनाएं ज्यादा होती हैंतस्वीर: Amer Hussain/REUTERS

पाकिस्तान के लाहौर में  मानवाधिकार आयोग की ताहिरा हबीब ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्हें 2022 में कम उम्र में शादी के 99 मामलों की जानकारी मिली. उन्होंने कहा, "यह आंकड़ा हिमशैल के ऊपरी हिस्से के समान है. हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. वजह यह है कि ऐसे मामलों की काफी कम रिपोर्ट की जाती है, क्योंकि ऐसा करने पर रिपोर्ट करने वाले परिवार को बदनाम किए जाने का डर होता है.”

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कबायली इलाकों में ज्यादा मामले

हबीब के मुताबिक, देश के कबायली इलाकों में कम उम्र में शादी के सबसे ज्यादा मामले देखने को मिलते हैं. पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत की राजनीतिज्ञ और पूर्व विधायक यास्मीन लहरी भी इस बात से सहमत हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि प्रांत के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में लगभग सभी लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है.

उन्होंने कहा, "शहरी क्षेत्रों में जागरूकता की वजह से लड़कियों की शादी 18 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र में की जाती है, लेकिन प्रांत के बाकी हिस्सों में स्थिति बहुत गंभीर है. हालांकि, इसकी अन्य वजहें भी हैं, जैसे कि गरीबी और दूसरी आर्थिक समस्याएं. युवा लड़कियों का अकसर मजदूर के रूप में काम करने के लिए परिवारों के बीच लेन देन किया जाता है.”

मौलवियों की भूमिका

नागरिक समाज पूरे पाकिस्तान में बाल विवाह की प्रथा को खत्म करने के लिए संघर्ष कर रहा है और कड़े कानून बनाने की मांग कर रहा है. साथ ही, बाल विवाह को लेकर समाज का दृष्टिकोण बदलने के लिए समुदायों, अधिकारियों और धार्मिक समूहों के साथ मिलकर काम कर रहा है.

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पाकिस्तानी सांसद किश्वर जेहरा ने कहा कि विवाह की न्यूनतम आयु तय करने का कानून बनाने के दौरान धार्मिक अधिकार सबसे बड़ा रोड़ा बना. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "जब देश की संसद में शादी की न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित करने वाला बिल पेश किया गया, तो धार्मिक विचारधारा वाले सांसदों ने इसका कड़ा विरोध किया.”

काउंसिल ऑफ इस्लामिक आयडियोलॉजी के पूर्व अध्यक्ष मौलाना शेरानी ने लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र तय करने वाले किसी भी कानून का सार्वजनिक रूप से विरोध किया है. यह परिषद सरकार को किसी भी तरह का कानून बनाते समय इस्लामी मान्यताओं का पालन करने की सलाह देती है.

2014 में, परिषद ने बाल विवाह रोकने वाले कानून को ‘गैर-इस्लामिक' करार दिया था, जिससे नागरिक समाज और मीडिया में आक्रोश फैल गया था. पूर्व विधायक यास्मीन लहरी ने कहा कि जब बलूचिस्तान विधानसभा में भी न्यूनतम आयु तय करने वाला बिल पेश किया गया, तो धार्मिक दलों ने इसका विरोध किया.

वहीं, पूर्व सांसद सामिया राहील काजी का भी कहना है कि लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल होनी चाहिए. हमें धर्म का हवाला देने और पश्चिमी मूल्यों पर दोषारोपण करने की जगह इस प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है.