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'विज्ञान' में महिलाओं का प्रश्न

जुल्फिकार अब्बानी/आरजे३० जून २०१६

1901 से अब तक बंटे 900 नोबल पुरस्कारों में से महिलाओं के हिस्से महज 50 नोबल आए. इसकी वजह विज्ञान में महिलाओं की क्षमताओं में नहीं अवसरों और प्रोत्साहन में कमी है.

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Symbolbild Wissenschaft Forschung Labor Chemie Studenten
तस्वीर: Fotolia/Gennadiy Poznyakov

अगर 'बेस्ट न्यूज अलर्ट' का कोई अवॉर्ड होता तो मेरा वोट जाता 'द इकनॉमिस्ट' के 20 जून के न्यूज अलर्ट ''द फर्स्ट वुमन टु रूल रोम इन 3,000 इयर्स'' को. मुझे लगा था, क्या जबरदस्त खबर है. 3 हजार सालों में पहली महिला! यह खबर थी रोम की पहली महिला मेयर वर्जीनिया राज्जी की जीत की.

इसने मेरा बरबस ही ध्यान खींचा. लेकिन अगर इसमें '3,000 इयर्स' नहीं होता तो शायद मैं इस अलर्ट पर ध्यान भी नहीं देता. 'पहली महिला' पत्रकारिता में एक वैसा ही घिसा पिटा मुहावरा बन गया है जैसा दुखद सच यह समाज में है. अब भी समाज में ऐसी कुछ ही 'पहली महिलाएं' हैं जिनके 'पहली महिला' बन जाने पर हमें अब भी जश्न मनाने की जरूरत महसूस होती है. इस​लिए हमें मनाना चाहिए.

लेकिन 2016 में भी हम क्यों इस बात का जश्न नहीं मना पा रहे हैं कि ''सौवीं महिला [...अपनी ​इच्छा से किसी भी संस्थान का नाम भर लें…] की प्रमुख बन गई है"?

Frau Wissenschaft Mikroskop Fotolia
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/picture-alliance/AP Photo/A. Harnik

चाहे वह अमेरिका में किसी राजनीतिक दल की ओर से राष्ट्रपति पद की पहली महिला उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ही क्यों ना हों या ​फिर जर्मन ऐरोस्पेस सेंटर की पहली महिला प्रमुख पास्कल एरेनफ्रॉएंड हों, हमें इन्हें चुने जाने के लिए जश्न मनाने के बजाय चुप्पी साधनी चाहिए. हमें मनन करना चाहिए क्योंकि हम अपना पहला कदम भी इतनी मुश्किल से बढ़ा पाए हैं.

ठीक यही बात विज्ञान के क्षेत्र में भी है. और यहां तक कि ''विज्ञान में महिलाएं'' विषय पर बोल सकना भी महिलाओं के लिए इतना सरल नहीं है जितना कि शायद आप सोचते होंगे.

बात पर बात

कुछ महिलाएं और पु​रुष मानते हैं ​कि मुख्यधारा की बहसों में इस बात पर जोर दिए रखना जरूरी है कि महिलाओं के विज्ञान के क्षेत्रों मसलन, विज्ञान, तकनीकी, इं​जीनियरिंग और गणित या कंप्यूटिंग आदि में अपना भविष्य बनाने के लिए हालात कितने खराब हैं.

Universitäts-Absolventen in Hangzhou, China
तस्वीर: picture-alliance/dpa

लेकिन ऐसे भी कई लोग हैं जो कहते हैं कि यह बहस हमें उससे भटका देती है जो महिलाएं विज्ञान में कुछ कर पा रही हैं. इसलिए वे इससे दूर रहने की कोशिश करते हैं. डीडब्ल्यू ने ऐसी कई शीर्ष महिला वैज्ञानिकों से लिंडाउ नोबेल लॉरिएट मीटिंग में एक पैनल ​चर्चा में भाग लेने के लिए पूछा. एक नोबेल पुरस्कार विजेता, जिन्होंने चर्चा में भाग लेने से मना कर दिया, उनका कहना था कि वह युवा वैज्ञानिकों के साथ विज्ञान पर बातचीत करने को ज्यादा प्राथमिकता देंगी.

हमने माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर इंफैक्शन बायोलॉजी की प्रोफेसर इमानुएल शार्पेंटियर के सामने भी इसी पैनल चर्चा का प्रस्ताव रखा. पहले से ही अपनी व्यस्तता के कारण शार्पेंटियर ने भी हमारा प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया. लेकिन उन्होंने हमें यह संदेश भेजा जो दर्शाता है कि इस बात का कोई आसान जवाब नहीं है. खासकर कि महिलाओं और पुरुषों के प्रतिनिधित्व में संतुलन कैसे लाया जाए. ईमेल से भेजे अपने जवाब में उन्होंने लिखा, ''हालांकि मुझे लगता है कि यह बहस विज्ञान से भटक सकती है, लेकिन महिला वैज्ञानिकों को अपने अनुभव साझा करने चाहिए. मैं यह नहीं मानती कि विज्ञान में महिलाओं का विमर्श पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन यानि सकारात्मक भेदभाव करने से हल होगा. बजाय इसके समाज में अंतर्निहित रूढ़िवादी बातों पर ध्यान देना होगा.''

USA Hillary Clinton in Denver
तस्वीर: WavebreakmediaMicro/Fotolia

विज्ञान के विषयों को कम चुनना

यह केवल महिलाओं की चिंता का विषय नहीं है कि वे विज्ञान के विषयों को कम चुनती हैं. यह सवाल पुरुषों के लिए भी है. इस ​महीने की​ शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन से लौटने के तीन दिन बाद ब्रिटिश अंतरिक्ष या​त्री टिम पीक ने विज्ञान से जुड़े कई मसलों पर पत्रकारों से बात की. डीडब्ल्यू ने उनसे महिलाओं के विज्ञान विषय कम चुनने पर यही सवाल पूछा तो उनका कहना था, ''महिलाओं को विज्ञान के बारे में प्रोत्साहित'' करना बेहद जरूरी है.

यूरो​पीय एस्ट्रोनॉट सेंटर के प्रमुख फ्रांक डे विने का भी कहना था कि क्योंकि महिलाएं विज्ञान विषय का चुनाव कम करती हैं तो इसका मतलब यह भी होता है कि एस्ट्रानॉट बनने के लिए आवेदन करने वालों में भी पुरुषों और महिलाओं के अनुपात में काफी अंतर होता है. उनका कहना था कि इस अंतर को पाटने के लिए ''हमें इस पर काम करने की जरुरत है. जिस साल टिम का चयन हुआ था उस साल शुरुआत में तकरीबन 10 से 15 प्रतिशत महिला अभ्यर्थी भी थीं. और यह ऐसे ही बरकरार रहा क्योंकि हम योग्यताओं के आधार पर चयन करते हैं. आखिर में उस बैच से हमारे पास 6 एस्ट्रोनॉट्स में से केवल एक महिला समांथा क्रिस्टोफोरेटी है. यही प्रतिशत लगातार बरकरार है.''

Astronauten Samantha Cristoforetti und Alexander Gerst mit Angela Merkel beim European Astronaut Center
तस्वीर: DW/Z. Abbany

अब तक के 48 अभियानों में से केवल दो महिलाएं आईएसएस कमांडर ​बनी हैं, पेगी विटसन और सुनीता विलियम्स. क्रिस्टोफोरेटी डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहती हैं कि वह इस मौके का स्वागत करती हैं ​लेकिन केवल इसलिए नहीं कि वह एक महिला हैं, ''बेशक आईएसएस के कमांडर के तौर पर काम करना एक बड़ा अवसर है, लेकिन केवल महिला होना ही योग्यता नहीं हो सकती. मुझे भी वही योग्यताएं हासिल करनी होंगी जो पुरुष सहयोगियों को चाहिए.''

इस तरह वह पॉजिटिव डिस्क्रिमिनेशन यानि सकारात्मक भेदभाव के पक्ष में भी नहीं हैं.

सकारात्मक बनाम नकारात्मक भेदभाव

इस बहस का एक और पहलू है जिस पर कम ही बात हो पाती है. और यह पहलू है रंग, संस्कृति, लिंग, यौनिक रूझान आदि के आधार पर होने वाले भेदभाव का. अं​तरिक्षविज्ञान का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है. यहां भी यौन उत्पीड़न के कई मामले काफी चर्चा में रहे.

Kasachstan - US Astronaut Sunita Williams
तस्वीर: dapd

यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज की एक एस्ट्रोनॉमर बताती हैं कि अक्सर ऐसा सोचा जाता है कि विज्ञान के क्षेत्र में यौन उत्पीड़न जैसे मामले नहीं होते पर वैज्ञानिक भी दूसरे लोगों की ही तरह हैं, उनमें भी दोष होते हैं. वहीं दूसरा पहलू रंग का भी है 2014 में अमेरिकी भौतिक विज्ञानी और एक्टिविस्ट डॉ. चंदा प्रेस्काड वान्स्टाइन ने लिखा था कि विज्ञान में महिलाओं की हुई तरक्की में भी गोरी महिलाओं को काली महिलाओं की तुलना में ज्यादा फायदा पहुंचा है.