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बीएसएफ को मिले अधिकारों से सीमावर्ती इलाकों में चिंता बढ़ी

प्रभाकर मणि तिवारी
१८ अक्टूबर २०२१

केंद्र सरकार के ताजा फैसले के तहत सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को मिले अधिकारों से सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों की चिंता बढ़ गई है. उनका आरोप है कि बीएसएफ के जवान पहले से ही सीमावर्ती गांवों में अत्याचार करते थे.

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स्थानीय लोग बीएसएफ के जवानों पर कई तरह के आरोप लगाते हैंतस्वीर: Dipa Chakraborty/Pacific Press/picture alliance

केंद्र के फैसले से नाराज राज्य सरकारों ने भी केंद्र पर संघीय ढांचे को क्षतिग्रस्त करने का आरोप लगाया है. पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल में पहले बीएसएफ को 15 किलोमीटर के दायरे में कार्रवाई का अधिकार था जिसे अब बढ़ाकर 50 किलोमीटर कर दिया गया है.

दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 2011 में जब तत्कालीन यूपीए सरकार एक ऐसा ही विधेयक ले आई थी तब बीजेपी के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया था. इस विरोध ने मार्च 2012 में यूपीए को सीमा सुरक्षा बल (संशोधन) विधेयक को स्थगित करने के लिए मजबूर किया था. तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने उस फैसले का विरोध करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र तक लिखा था.

सीमावर्ती इलाकों के लोगों का दर्द

"बीएसएफ के जवान दिन-रात किसी भी समय तलाशी के नाम पर हमें परेशान करते रहते हैं. उनके खिलाफ महिलाओं के साथ छेड़खानी की शिकायतें भी अक्सर आती रही हैं. पहले उनकी गतिविधियां सीमा के 15 किलोमीटर के दायरे में ही सीमित थी. लेकिन अब केंद्र ने उसे बढ़ा कर 50 किलोमीटर कर दिया है. इससे आसपास के सैकड़ों गांव अब बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में आ जाएंगे.” यह कहना है पश्चिम बंगाल के उत्तर 24-परगना जिले में बांग्लादेश की सीमा से सटे एक गांव में रहने वाले शमशुल हक (बदला हुआ नाम) का. बीएसएफ जवानों के डर से उन्होंने अपना नाम नहीं छापने का भी अनुरोध किया.

शमशुल बताते हैं, "हम दशकों से बीएसएफ जवानों का अत्याचार सहते रहे हैं. पहले सीमा के 15 किलोमीटर के दायरे में बहुत कम गांव हैं. लेकिन दायरा पचास किलोमीटर होने पर हजारों गांव इसकी जद में आ जाएंगे."

असम में कछार जिले से लगी सीमा के पास रहने वाले अब्दुल शेख भी बीएसएफ जवानों पर अत्याचार का आरोप लगाते हैं. वह कहते हैं, "सीमावर्ती इलाकों में रहने की वजह से हमें अक्सर कई तरह की दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं. हमें हमेशा शक की निगाह से देखा जाता है और बीएसएफ के लोग झूठे आरोप लगा कर परेशान करते रहते हैं.”

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केंद्र सरकार कहती है कि मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है इसीलिए बहस की जरूरत नहीं हैतस्वीर: Musaib Mushtaq/Pacific Press/picture alliance

क्या है मामला

केंद्र सरकार ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) कानून में संशोधन कर उसे पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में अंतरराष्ट्रीय सीमा से 50 किलोमीटर के दायरे में तलाशी लेने, जब्ती करने और गिरफ्तार करने का अधिकार दे दिया है. इससे पहले यह अधिकार 15 किलोमीटर के दायरे तक ही सीमित था.

दूसरी ओर, पाकिस्तान की सीमा से लगे गुजरात के इलाकों में यह दायरा 80 किलोमीटर से घटाकर 50 किलोमीटर कर दिया गया है. राजस्थान में पहले से ही 50 किलोमीटर तक की सीमा थी उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस संबंध में 11 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की थी.

विपक्ष के विरोध पर केंद्र सरकार का कहना है कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और इसलिए इस पर बहस बेमतलब है. उसकी दलील है कि दुश्मन देश ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं और भारत के लिए बीएसएफ को सशक्त बनाना जरूरी था.

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों की दलील है कि पंजाब में नशीली दवाओं और हथियारों की तस्करी की समस्या है तो असम और पश्चिम बंगाल में मवेशी और नकली मुद्रा की तस्करी के रूप में नई चुनौतियां हैं. इस अधिसूचना का एकमात्र मकसद बीएसएफ की कार्यकुशलता में सुधार करना और तस्करी में शामिल गिरोहों पर नकेल कसने में उसकी सहायता करना है.

बीएसएफ का पक्ष

बीएसएफ के एक अधिकारी बताते हैं, "हम पहले की तरह ही राज्य पुलिस के साथ काम करना जारी रखेंगे. हमारे अधिकार क्षेत्र को जरूर बढ़ाया गया है लेकिन उनके (राज्य पुलिस के) अधिकार क्षेत्र में कटौती नहीं की जा रही है. इसके अलावा बीएसएफ किसी को सिर्फ गिरफ्तार कर सकता है, मुकदमा चलाने का अधिकार राज्य पुलिस को ही होता है.”

बीएसएफ को वर्ष 1969 में सबसे पहले विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तारी का अधिकार दिया गया था. लेकिन यह मुद्दा अब राजनीतिक रंग लेने लगा है. बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र की कोई सीमा कागज पर तय नहीं है. अनुमान के आधार पर ही सीमा तय की जाती है कि कौन गांव या शहर उसके दायरे में है.

सूत्रों का कहना है कि खासकर पश्चिम बंगाल में सीमा पार पशुओं की तस्करी की समस्या बहुत गंभीर है. वहां सीमा के नजदीकी किसी गांव में तस्करों के पशुओं समेत जुटने की सूचना मिलने के बाद सीमा से दूरी कम होने की वजह से बीएसएफ के लिए कई बार तस्करी रोकना संभव नहीं होता. अब दायरा 50 किलोमीटर होने पर पहले से ही तस्करों की गतिविधियों की सूचना मिल सकेगी.

लंबे समय तक पश्चिम बंगाल में काम कर चुके बीएसएफ के एक पूर्व अधिकारी कहते हैं, "सीमावर्ती इलाको में मानवाधिकारों के मामले में बीएसएफ का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. इसलिए इलाके के लोगों की चिंता वाजिब है. अब केंद्र और राज्य सरकार को इस बात की निगरानी रखनी होगी कि अधिकारों का बेजा इस्तेमाल नहीं हो.”

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बीएसएफ भारत की सीमाओं का प्रहरी हैतस्वीर: Sonu Mehta/Hindustan Times/imago images

फैसले का विरोध

असम में बीजेपी सत्ता में है. इसलिए वहां सरकार ने इस बारे में कोई विरोध नही जताया है. लेकिन पंजाब और पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल इस फैसले के खिलाफ मुखर हैं. खासकर पश्चिम बंगाल में इसका ज्यादा विरोध हो रहा है. इसकी वजह यह है कि राज्य की करीब 2,216 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश से लगी है. फैसले से नाराज राज्य सरकार ने केंद्र पर संघीय ढांचे को क्षतिग्रस्त करने का आरोप लगाया है.

बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इस फैसले को राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण और देश के संघीय ढांचे पर हमला बताया है. टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष सवाल करते हैं कि राज्य सरकार को सूचित किए बिना बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में विस्तार करने की अचानक क्या जरूरत पड़ी? यह संघीय ढांचे पर हमला है. उनका कहना था, "अगर बीएसएफ को कहीं तलाशी लेनी है तो वह पहले की तरह राज्य पुलिस के साथ मिल कर ऐसा कर सकती है. लंबे समय से यही परंपरा रही है. यह संघीय ढांचे पर हमला है.”

उधर, बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने चेतावनी दी है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस कदम के नतीजे गंभीर हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में सीमा से 50 किलोमीटर तक बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में विस्तार करना राज्यों के क्षेत्र में खुलेआम उल्लंघन करना है. वह कहते हैं कि गृह मंत्रालय को राज्यों के अधिकार के साथ कोई छेड़खानी नहीं करनी चाहिए. पंजाब सरकार ने भी फैसले का विरोध करते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग उठाई है.