अंतरराष्ट्रीय वाम सम्मेलन के बहाने
२३ नवम्बर २००९जन अधिकारों के पक्ष में एक व्यापक वैश्विक रणनीति बनाने और विश्व आंदोलन छेड़ने की बात भी की गई है. भारत की राजधानी दिल्ली में दुनिया भर के कम्युनिस्ट पहली बार एक महा सम्मेलन के लिए जमा हुए. 47 देशों के 55 वामपंथी दलों के 83 नेताओं ने इसमें भाग लिया.
भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, सीपीआईएम और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, सीपीआई ने इस सम्मेलन की मेज़बानी की थी. इस मौके पर पारित घोषणा पत्र में कहा गया कि दुनिया के वित्तीय संकट ने मार्क्सवादी आकलन को ही सही ठहरा दिया है और इसके विकल्प के लिए लड़ाई जारी रहेगी.
तीन दिन की कम्युनिस्ट और कामगार पार्टियों की 11वीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस के आखिरी दिन आह्वान किया गया कि जनअधिकारों के हितों की रक्षा के लिए और मंदी जैसी पूंजीवादी विकृति से निपटने के लिए लोकप्रिय ताक़तों को हर संभव स्तर पर एकजुट होना होगा. और नए आंदोलनों का रास्ता तैयार करना होगा. इन आंदोलनों का लक्ष्य होगा रोज़गार की गारंटी, मुफ़्त स्वास्थ्य सुरक्षा, मुफ़्त शिक्षा और सामाजिक कल्याण, लैंगिक असमानता और नस्लवाद के विरुद्ध संघर्ष और कामगार जनता के समस्त अधिकारों की रक्षा की मांग करना.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा की रोशनी में सीपीएम महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि अमेरिका चाहता है कि भारत उसकी कंपनियों के लिए अपने दरवाज़े पूर तरह खोल दे. करात के मुताबिक यहां तक कि अमेरिकी कंपनियां भारत के बीमा और रक्षा क्षेत्र में भी निवेश करने के लिए लालायित हैं. करात ने दावा किया कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए लंबे संघर्षों की ज़रूरत है. अंतरराष्ट्रीय मुश्किलों की चर्चा करते हुए प्रकाश करात, अपनी पार्टी की अगुवाई में पश्चिम बंगाल में चल रही सरकार के कामकाज पर टिप्पणी करने से बचे. उन्होंने सिंगूर और नंदीग्राम जैसे मामलों का भी ज़िक्र करने से परहेज़ किया जहां निजी कंपनियों के ठिकाने बनाने के लिए स्थानीय लोगों को उनकी ज़मीनों से बेदख़ल होने को कहा गया था.
सम्मेलन में क्यूबा, अमेरिका, रूस, इस्राएल और फ़लिस्तीनी वामपंथी पार्टियों सहित दुनिया भर से प्रतिनिधी मौजूद थे.
रिपोर्ट- एजेंसियां/एस जोशी
संपादन: ओ सिंह