अल्ताफ हुसैन ने सेना को तख्ता पलट का न्यौता दिया
३० अगस्त २०१०पाकिस्तान के इतिहास का आधा हिस्सा फौजी बूटों तले कुचले गए लोकतंत्र के ऐसे पन्नों पर लिखा गया है, जिन्हें लोकतंत्र समर्थक रद्दी की टोकरी में डाल देना चाहते हैं. लेकिन इस मुल्क की खूबी है कि यहां इस रद्दी की टोकरी को सिर पर उठा लेने की चाह रखने वाले कभी कम नहीं रहे. लोग बुलावे भेज भेज कर फौजी हुकूमत को बुलाते रहे हैं. ऐसे लोगों में नया नाम है मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के नेता अल्ताफ हुसैन का. हुसैन साहब ने एक इंटरव्यू में कहा कि देश को भ्रष्ट और सामंतवादी सत्ताधीशों से बचाने के लिए सेना के देशभक्त अफसरों को दखल देना चाहिए. सत्ता पलट देनी चाहिए. जिस देश में फौज को सत्ता में आने के मौके तलाशने के लिए जाना जाता रहा है, वहां इस तरह के बयान पर राजनीतिक बवाल होना लाजमी है. मुस्लिम लीग एन के प्रवक्ता अहसान इकबाल तो इसे देशद्रोह मानते हैं. वह कहते हैं, "इस मुल्क के अंदर संविधान को धता बताता है या इसके लिए किसी को उकसाता है तो वह देशद्रोह का दोषी है."
जब इस बयान पर हंगामा खड़ा हो गया तो अल्ताफ हुसैन ने सफाई पेश की कि वह देश में मार्शल लॉ की हिमायत नहीं कर रहे बल्कि उस जैसी स्थिति की बात कही है. लेकिन अपनी बात के लिए हुसैन इतने गंभीर हैं कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से भी कह डाला कि वह अपनी पावर का इस्तेमाल करते हुए सेना को देश के सिस्टम को साफ करने का आदेश दें. अल्ताफ खुद लंदन में रहते हैं और देश में उनकी पार्टी के लोग उनके बयान को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं. एमक्यूएम के नेता हैदर अब्बास रिजवी कहते हैं, "हम चाहते हैं कि पाकिस्तान को इन जागीरदारों से निजात दिलाई जाए ताकि पाकिस्तान बच सके, वर्ना जिन लोगों ने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए, वे फिर इसे बांट देंगे."
एमक्यूएम खुद पीपीपी के साथ केंद्र में सत्ता और उस सिस्टम का हिस्सा है, जिसे साफ करने की बात अल्ताफ हुसैन कर रहे हैं. इसलिए पीपीपी के लिए अल्ताफ का यह बयान न उगलते बन रहा है न निगलते. पीपीपी के प्रवक्ता कमरूज्जमा कायरा बड़े हल्के शब्दों में इस बयान को गलत बताते हैं. वह कहते हैं, "पाकिस्तान के लोगों ने बड़ी कुर्बानियों के बाद जम्हूरियत हासिल की है, लिहाजा इस तरह के बयान पर हमें ताज्जुब हुआ है"
कहते हैं सियासत में यूं ही कुछ नहीं होता. यानी अल्ताफ के बयान की भी वजह होगी. कुछ जानकार मानते हैं कि कराची में हुईं राजनीतिक हत्याओं में एमक्यूएम के कई कार्यकर्ता पकड़े गए हैं. इसलिए पीपीपी और एमक्यूएम के रिश्ते खराब हो चुके हैं और दोनों एक दूसरे से छुटकारे का बहाना चाहते हैं. लेकिन अगर बिल्लियों की इस लड़ाई में बंदर रोटी ले उड़ा, तो पूरे मुल्क की मुसीबत हो जाएगी.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए जमाल