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असम में उग्रवाद, बातचीत के प्रयास

२८ फ़रवरी २०१०

असम में तीन दशक से भी ज्यादा पुरानी उग्रवाद की समस्या के हल के लिए हाल में शुरू हुई पहल सवालों के घेरे में है. उल्फा के सैन्य कमांडर परेश बरूआ शांति वार्ता के खिलाफ हैं. लेकिन अध्यक्ष अरविंद राजखोवा बातचीत के पक्ष में है

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उल्फा हिंसक संघर्ष कर रहा हैतस्वीर: AP

पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले असम में उग्रवाद की समस्या तीन दशक से भी ज्यादा पुरानी है. यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम (उल्फा) बीते तीन दशकों से संप्रभुता की मांग मनवाने के लिए हिंसा की राह पर चल रहा है. अब केंद्र और राज्य सरकार की कोशिशों से इस संगठन के साथ शांति वार्ता की दिशा में पहल हुई है. लेकिन यह पहल भी सवालों के घेरे में है.

उल्फा अध्यक्ष अरविंद राजखोवा और उपाध्यक्ष शशधर चौधरी समेत संगठन के ज्यादातर नेता जेलों में बंद हैं. राजखोवा और बहुत से अन्य नेता वार्ता के पक्षधर हैं, लेकिन उल्फा की सैन्य शाखा के प्रमुख परेश बरूआ शांति वार्ता के पक्ष में नहीं हैं. शांति वार्ता का रास्ता साफ करने के लिए असम सरकार ने बीते सप्ताह उल्फा के दो बड़े नेताओं को जेल से रिहा कर दिया. सरकार जल्दी ही कुछ और नेताओं को भी रिहा सकती है.

मुख्यमंत्री तरुण गोगोई इस बातचीत के प्रति आशावान तो हैं. लेकिन वे किसी जल्दबाजी में नहीं हैं. वे फिलहाल इंतजार करो और देखो की नीति पर चल रहे हैं. उनका कहना है कि असम के लोग हिंसा के लंबे दौर से आजिज आ चुके हैं. लोग शांति व विकास चाहते हैं, उग्रवाद नहीं.

असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई कहते हैं कि बातचीत के लिए हमारे दरवाजे खुले हैं. लेकिन इसके लिए उल्फा नेताओं को पहले हिंसा छोड़नी होगी. वे कहते हैं, "अगर उल्फा ने बेकसूर लोगों की हत्याएं जारी रखी तो हम उससे कड़ाई से निपटेंगे. हमने सुरक्षा बलों को भी सतर्क रहने को कहा है."

शांति प्रक्रिया का रास्ता साफ करने की रणनीति के तहत बीते सप्ताह जेल से रिहा किए गए उल्फा के केंद्रीय प्रचार सचिव मिथिंगा दैमारी कहते हैं कि सरकार का यह फैसला सकारात्मक है. "हमारे ज्यादातर नेता जेलों में बंद हैं. ऐसे में प्रस्तावित शांति वार्ता के बारे में कोई विचार-विमर्श संभव नहीं है." उन्होंने उम्मीद जताई है कि सरकार जेल में बंद संगठन के अध्यक्ष अरविंद राजखोवा समेत तमाम नेताओं को जल्दी रिहा कर देगी ताकि शांति वार्ता के बारे में ठोस प्रस्ताव तैयार किया जा सके.

मुख्यमंत्री गोगोई ने भी उम्मीद नहीं छोड़ी है. वे कहते हैं कि शांति वार्ता की प्रक्रिया सही दिशा में आगे बढ़ रही है. "एक सप्ताह के भीतर ही हमें कोई अच्छी खबर मिल सकती है." गोगोई का कहना है कि उल्फा से आम लोगों का भरोसा खत्म हो चुका है. असम के लोग शांति और विकास चाहते हैं. उग्रवाद नहीं. लेकिन क्या संगठन के सैन्य कमांडर परेश बरूआ के बिना होने वाली कोई शांति प्रक्रिया कामयाब होगी? इस सवाल पर गोगोई कहते हैं, "देखें क्या होता है. मैं किसी जल्दबाजी में नहीं हूं."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा